पिछले साल गर्मियों में जब पंजाब नेशनल बैंक के डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी ने अपने रिटायरमेंट से ठीक पहले नीरव मोदी की कंपनियों को एक साल के लिए LOU जारी कर दिया, तभी उसके उच्चाधिकारियों को सचेत हो जाना चाहिए था. लेकिन पीएनबी के उच्चाधिकारी सोते रहे. आमतौर पर किसी हीरा कारोबारी को सिर्फ 90 दिनों के लिए ही एलओयू जारी किया जाता है. बैंक अफसर सतर्क रहते तो यह घोटाला पहले ही पकड़ में आ जाता.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, 11,300 करोड़ के महाघोटाले का केंद्रबिंदु शेट्टी ही था. शेट्टी असल में यह सुनिश्चित करना चाहता था कि साल 2011 से उसके द्वारा किए जा रहे इस फर्जीवाड़े की जानकारी उसके रिटायरमेंट के बाद कम से कम एक साल तक किसी को न हो, ताकि वह इस बीच अपने सुरक्षित होने का इंतजाम कर ले.
कैसे खुला मामला
लेकिन मामला इस साल जनवरी में खुला जब मोदी की कंपनी के अधिकारी मुंबई के ब्रैडी हाउस शाखा में इस सुविधा के नवीनीकरण के लिए गए. शेट्टी की जगह नए आए पीएनबी के एग्जीक्यूटिव ने LOU यानी एक तरह की गारंटी जारी करने के लिए कंपनी से भारी कैश मार्जिन बैंक में जमा करने की मांग की. लेकिन मोदी की कंपनियों के अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने पहले कभी ऐसा मार्जिन नहीं दिया है.
इस खुलासे से नया बैंक अधिकारी चकित रह गया. इसके बाद पीएनबी के अधिकारियों ने आंतरिक जांच शुरू की और आखिरकार एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ. पीएनबी के अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि यह वास्तव में बैंक के सिस्टम की खामी है और बैंक को इस बारे में काफी पहले ही सचेत हो जाना चाहिए था.
घोटालेबाज का नहीं हो रहा था ट्रांसफर
इससे यह सवाल भी खड़ा होता है कि कहीं इसमें पीएनबी के कुछ और अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं है, क्योंकि शेट्टी को एक ही शाखा में एक ही ड्यूटी पर लगातार कई साल तक रखा गया, जबकि नियम के मुताबिक शेट्टी स्केल-1 का अधिकारी था, इसलिए हर छह महीने पर उसका डेस्क बदला जाना चाहिए था और तीन साल में उसका दूसरे ब्रांच में ट्रांसफर करना चाहिए था.
CBS को SWIFT से क्यों नहीं किया कनेक्ट
साफ है कि पीएनबी अपने ही मानकों के पालन करने में विफल रहा. इसके अलावा सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर बैंक के कोर बैंकिंग सोल्युशन (CBS) को इंटरनेशनल मनी ट्रांसफर टूल SWIFT से क्यों नहीं कनेक्ट किया गया. इसकी वजह से ही शेट्टी को अपना पासवर्ड इस्तेमाल करते हुए फंड ट्रांसफर स्विच के द्वारा मैसेज भेजने में आसानी हुई. दोनों सिस्टम में इंटरकनेक्शन न होने की वजह से कोर बैंकिंग सॉफ्टवेयर में यह ट्रांजैक्शन नहीं दिखा.
बैंक से लेकर रिजर्व बैंक तक के ऑडिटर की ढिलाई!
यही नहीं, यह बात हजम नहीं होती कि बैंक के कुछ ही कर्मचारियों को इसकी जानकारी हो, क्योंकि सूत्रों के अनुसार जब भी ऐसे एलओयू जारी होते थे, बैंक को इसकी फीस भी मिलती थी. बैंक अधिकारियों को तब ही सतर्क हो जाना चाहिए था. इसके साथ ही बैंक के इंटर्नल ऑडिटर और रिजर्व बैंक की ऑडिट टीम भी शक के घेरे में आती है जो समय-समय पर बैंक की जांच करते रहते हैं.