राजनीतिक दलों द्वारा लिए जाने वाले चंदों में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को लोकसभा में पेश किए गए बजट में राजनीतिक दलों द्वारा नकदी में चंदा लेने की अधिकतम सीमा 2000 रुपये करने की घोषणा की. अभी तक राजनीतिक दल किसी भी बेनामी स्रोत से 20 हजार रुपये तक का चंदा नकद ले सकते थे. हालांकि विपक्षी दलों ने इसे बेतुका कहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों में हुए भारी-भरकम खर्च के स्रोत पर सवालिया निशान उठाए.
साल 2017-18 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए जेटली ने कहा कि सरकार ने राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने के लिए निर्वाचन आयोग की सिफारिशें मान ली हैं, अब राजनीतिक दल चेक और डिजिटल भुगतान के जरिए ही 2,000 रुपये से अधिक चंदा ले सकते हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि एक अतिरिक्त कदम के रूप में सरकार ने चुनावी बांड जारी करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है. जेटली ने कहा कि दानदाता चेक के जरिए बांड खरीद सकते हैं और यह धनराशि संबंधित राजनीतिक पार्टी के पंजीकृत खाते में चली जाएगी.
सरकार के इस फैसले के बाद अब राजनीतिक दलों को 2,000 रुपये से अधिक का चंदा देने वालों के नाम बताने होंगे, अब तक अधिकांश राजनीतिक पार्टियां उन्हें मिले अधिकांश चंदे को नकदी में 20,000 से कम राशि की श्रेणी में दिखाती रही हैं क्योंकि 20,000 रुपये तक चंदा देने वालों की पहचान उजागर करने को वे बाध्य नहीं थीं. जेटली ने कहा कि यह सुधार राजनीतिक वित्त पोषण में काफी पारदर्शिता लाएगा और आगे कालेधन पर रोक लगाएगा.
वित्त मंत्री ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी राजनीतिक वित्त पोषण में कोई पारदर्शिता नहीं थी, अधिकांश चंदे नकद में लिए जाते थे और दानदाता भी अपनी पहचान बताने से परहेज करते थे. अब कोई भी व्यक्ति राजनीतिक दल को नकदी में 2 हजार रुपया ही बतौर चंदा दे सकता है.
कांग्रेस बोली, यह एक निर्थक कदम
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि दिशाहीन बजट में यह निर्थक से कदम की तरह है, अगर वे सचमुच राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाना चाहते हैं तो उन्हें निर्वाचन आयोग और देश के मुख्य राजनीतिक दलों से राय मशविरा कर एक राष्ट्रीय निर्वाचक कोष गठित करना चाहिए था. उन्होंने कहा कि एक एकीकृत कोष का इस्तेमाल देश के सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के वित्त पोषण में किया जाना चाहिए.
येचुरी बोले कि कॉर्पोरेट चंदे पर लगे रोक
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी आनंद शर्मा की बात दोहराई और कहा कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले कॉर्पोरेट चंदे पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए. येचुरी ने कहा कि सीधे राजनीतिक दलों को चंदा देने की बजाय कारोबारी इस राष्ट्रीय निर्वाचक कोष को चंदा दे सकते हैं. येचुरी ने चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों के खर्च की सीमा तय किए जाने की मांग भी की. उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ प्रत्याशियों पर खर्च करने की सीमा तय है, लेकिन पार्टियों पर कोई सीमा नहीं है. राजनीतिक दल जितना चाहें खर्च कर सकते हैं, उदाहरण के लिए आप प्रधानमंत्री की बेहद खर्चीली चुनावी रैलियां देख सकते हैं.
येचुरी ने कहा कि अब लोग राजनीतिक दलों को नकदी में चंदा नहीं दे सकेंगे, लेकिन वे निशुल्क सेवाएं तो दे ही सकते हैं, जैसे किसी रैली के लिए मुफ्त में बस सेवा या 10 लाख लोगों के लिए खाने के पैकेट. उन्होंने कहा, "इसकी जवाबदेही कैसे तय होगी?" समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी इसे खास कदम नहीं बताया. सपा के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल ने इसे महज 'जुमला' बताते हुए कहा कि जमीनी स्तर पर इससे कुछ नहीं बदलेगा. अग्रवाल बोले कि इससे पहले जहां राजनीतिक दल पांच लोगों से एक लाख रुपये का चंदा दिखाते थे, अब वे 50 दानदाता दिखाएंगे. इससे कुछ नहीं बदलने वाला और इससे कोई पारदर्शिता नहीं आने वाली.
बसपा के राज्यसभा सांसद वीर सिंह ने कहा कि उनके लिए यह कदम निर्थक है, क्योंकि उनकी पार्टी को मिलने वाला अधिकांश चंदा छोटी-छोटी राशियों में आता है, जो 2,000 रुपये से भी कम होता है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बसपा एकमात्र ऐसा दल है जिसने 2004-05 से 2014-15 तक लगातार अपने सारे चंदे 20,000 रुपये से कम की राशि में प्रदर्शित किए.