विशेषज्ञों का कहना है कि खजाने की तंग हालत और आम चुनाव से पहले लोकप्रियता हासिल करने की राजनीतिक मजबूरियों के बीच वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के लिये आम बजट को जवाबदेह बनाना बड़ी चुनौती है.
गिरती घरेलू वृद्धि दर, ऊंची मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटे तथा चालू खाते के घाटे के साथ साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकटों के बीच पेश किए जा रहे 2013-14 के बजट में निवेशकों का विश्वास बहाल करने के साथ ही राजकोषीय घाटे को सीमित रखने की बड़ी चुनौती है, ताकि वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को उंगली उठाने का अवसर न मिले.
चिदंबरम ने कहा है कि अगला बजट ‘दायित्वपूर्ण बजट’ होगा. बावजूद सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए 2014 के आम चुनाव से पहले इस आखिरी पूर्ण बजट में आम आदमी को खुश रखने की दरकार भी अस्वाभाविक नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार वित्त मंत्री के लिये राजस्व बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती है. दस वर्ष में सबसे कम वृद्धि कर रही मौजूदा अर्थव्यवस्था में नए कर लगाना या कर का बोझ बढाना वृद्धि और निवेश की धारणा दोनों ही दृष्टि से जोखिम भरा होगा. राजकोषीय संतुलन के उपाय के तौर पर योजनाओं के बजट में कटौती का विकल्प भी हो सकता है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, स्कूलों में मध्याह्न भोजन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसे कार्यक्रम संप्रग के प्रमुख कार्यक्रम हैं जिन पर बजट में बड़ा आवंटन करना होता है. कच्चे तेल के दाम बढने से सब्सिडी का बोझ भी बढ़ रहा है. अगले साल फरवरी में संसद में केवल लेखानुदान ही पारित होगा क्योंकि मई तक आम चुनाव होने हैं. वित्त मंत्री लगातार यह कह रहे हैं कि अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा कम करके 4.8 प्रतिशत पर लाया जायेगा. चालू वित्त वर्ष में इसे 5.3 प्रतिशत के दायरे में रखने के भरसक प्रयास है.
गत फरवरी में पेश बजट अनुमान में इसे जीडीपी के 5.1 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य था. वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम की प्रत्यक्ष कर समिति के अध्यक्ष वेद जैन के अनुसार सरकार देश में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू करने की दिशा में बढ़ रही है. जीएसटी में उत्पाद एवं सेवाशुल्क समाहित हो जायेंगे. और इनकी एक ही दर होगी. यह एक दर 14 प्रतिशत से ऊपर रहने का अनुमान लगाया जा रहा है. इस लिहाज से मौजूदा उत्पाद एवं सेवा कर की दरों को प्रस्तावित जीएसटी के अनुरूप लाने की दिशा में बजट में पहल हो सकती है.
सरकार ने वर्ष 2008-09 में वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरुप पेट्रोलियम को छोड़ अन्य उत्पादों पर उत्पाद शुल्क चरणबद्ध ढंग से कम करके 14 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत पर ला दिया था. वर्ष 2010-11 के बजट में इसे बढ़ाकर आठ से 10 प्रतिशत कर दिया गया था. राजकोषीय सुधार की जरुरत को देखते हुये पिछले बजट में इसे 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया. खजाने की पतली हालात को देखते हुये इसे आगामी बजट में फिर से 14 प्रतिशत किया जा सकता है. कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि कंपनी कर की दर में भी वृद्धि हो सकती है जबकि दूसरी तरफ संयत्र एवं मशीनरी पर मूल्यह्रास दर में रियायत देते हुये इसे मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया जा सकता है. वैश्विक बाजार में संकटों के कारण निर्यात की स्थिति भी अच्छी नहीं है.
पिछले साल अप्रैल के बाद से लगातार निर्यात में गिरावट का रुख बना हुआ है. बमुश्किल जनवरी में 0.82 प्रतिशत निर्यात वृद्धि दर्ज की जा सकी है. इससे पहले मई से दिसंबर तक निर्यात में लगातार गिरावट का रुख बना रहा. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा को आखिर कहना पड़ा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान निर्यात कारोबार 300 अरब डालर के आसपास रह सकता है. पिछले वित्त वर्ष में 306 अरब डालर का निर्यात किया गया. इस साल के लिय 360 अरब डालर का निर्यात लक्ष्य रखा गया था. निर्यातकों के शीर्ष संगठन ‘फैडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोटर्स ऑरगनाईजेशन (फियो)’ की मांग है कि सरकार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादों के आक्रमक विपणन के लिये एक ‘निर्यात विकास कोष’ बनाया जाना चाहिये जिसमें आयकर अधिनियम के तहत कर कटौती का लाभ मिलना चाहिये.
फियो ने कहा है कि विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के वास्ते निर्यात से जुड़ी इकाईयों के विस्तार और आधुनिकीकरण में मानक के अनुरूप भारित कटौती का लाभ मिलना चाहिये. संगठन ने निर्यात लागत को कम रखने के लिये निर्यातित माल पर राज्यों में लगने वाले मूल्य वर्धित कर (वैट), पेट्रोलियम पदार्थों के बिक्री कर, खरीद कर, कारोबार कर, चुंगी, इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी आदि रिफंड करने पर जोर दिया है. फियो के अनुसार इससे विशेषतोर पर उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यातकों को 2 से 3 प्रतिशत का फायदा होगा.