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पंजाब और तमिलनाडु में भी GST पास, अब बचा केरल और जम्मू-कश्मीर

पंजाब और तमिलनाडु ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) विधेयक अपनी-अपनी विधानसभाओं में पारित कर दिया है. जहां पंजाब ने जीएसटी बिल को आम सहमति से पारित किया वहीं तमिलनाडु विधानसभा ने विपक्षी दर द्रमुक सदस्यों की अनुपस्थिति में जीएसटी विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया.

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पंजाब और तमिलनाडु ने पारित किया जीएसटी कानून
पंजाब और तमिलनाडु ने पारित किया जीएसटी कानून

पंजाब और तमिलनाडु ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) विधेयक अपनी-अपनी विधानसभाओं में पारित कर दिया है. जहां पंजाब ने जीएसटी बिल को आम सहमति से पारित किया वहीं तमिलनाडु विधानसभा ने विपक्षी दर द्रमुक सदस्यों की अनुपस्थिति में जीएसटी विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया.

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गौरतलब है कि संसद से निकले जीएसटी कानून को पूरे देश में लागू करने से पहले सभी राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों के विधानसभाओं से हरी झंडी मिलना जरूरी है. पंजाब और तमिलनाडु के साथ अब तक देश के लगभग सभी राज्य जीएसटी विधेयक को पारित कर चुके हैं. अब सिर्फ जम्मू-कश्मीर और केरल की विधानसभाओं को इसे पारित करना है.

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पंजाब में मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने विधानसभा में जीएसटी विधेयक पेश किया. विधेयक के पारित होने से पहले पूर्व वित्त मंत्री तथा शिरोमणि अकाली दल के नेता परमिन्दर सिंह ढींढ़सा, आप नेता कंवर संधु तथा भाजपा विधायक सोम प्रकाश ने इस पर अपनी-अपनी बात रखी.

GST से पंजाब के किसानों को ये समस्या
संधु ने जीएसटी के तहत उच्च कर के कारण कृषि कच्चे माल तथा उपकरणों के महंगा होने को लेकर चिंता जतायी. आप विधायक ने यह भी कहा कि जीएसटी लागू होने के बाद पंजाबी सिनेमा पर असर पड़ेगा. उन्होंने केन्द्र से यह जानना चाहा कि क्या जीएसटी के अमल में आने के साथ राज्य की वित्तीय स्वायतता प्रभावित होगी. ढींढ़सा ने कृषि कच्चे माल पर शून्य कर की मांग की. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य के किसान प्रभावित होंगे.

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विपक्ष के बायकॉट के बाद GST पास
तमिलनाडु विधानसभा में जीएसटी बिल आने के बाद द्रमुक सदस्य विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने और बाद में इस पर चर्चा कराए जाने की मांग करते हुए सदन से बाहर चले गए. उनकी अनुपस्थिति में बिल को पारित कर दिया गया. हालांकि द्रमुक की सहयोगी कांग्रेस तथा आईयूएमएल सदन में मौजूद रहे. चर्चा में भाग लेते हुए विपक्ष के नेता और द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन ने विधेयक को विचार के लिये प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की और बाद में उस पर चर्चा की मांग की.

 

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