रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने अंतरिम बजट पेश तो कर दिया लेकिन सदन में इतना शोर शराबा था कि कोई उसे सुन भी नहीं पाया. यह वाकई शर्म की बात है कि जब इतने महत्व की बात और घोषणाएं की जा रही हों, उस समय मुट्ठी भर सदस्य अराजक तत्वों की तरह शोर मचा रहे थे. उन्होंने स्पीकर के आग्रह को दरकिनार करते हुए जिस तरह की बेशर्मी दिखाई, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है. बहरहाल रेल मंत्री ने जनता की वाहवाही लूटने का लोभ संवरण करते हुए एक ऐसा बजट पेश किया जिसकी तारीफ की जा सकती है. उन्होंने रेलवे की नाजुक आर्थिक स्थिति को समझा और उसके अनुरूप कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं रखा जिससे रेलवे की हालत और बिगड़े.
रेल मंत्री ने किराये बढ़ोतरी के मामले के लिए रेल टैरिफ प्राधिकरण की घोषणा करके आने वाले रेल मंत्रियों का काम आसान कर दिया क्योंकि अब किराये बढ़ाना या घटाना सीधे उनके हाथ में न होकर प्राधिकरण के पास होगा जो इस बाबत समय-समय पर सिफारिशें करता रहेगा. उन्होंने प्रीमियम रेल गाड़ियां चलाने की घोषणा करके एक बड़ा कदम उठाया है. इनसे न केवल अतिरिक्त ट्रेनें तो चलेंगी लेकिन उनके किराये सामान्य नहीं होंगे बल्कि वे मांग-आपूर्ति के सरल नियम पर आधारित होंगे. इनसे रेलवे को अतिरिक्त आय तो होगी ही, यात्रियों की भुगतान क्षमता के मुताबिक उन्हें विकल्प मिलेगा. हवाई जहाजों की तरह इनके किराये घटते-बढ़ते रहेंगे.
भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा नियोक्ता है. इस पर लाखों लोगों की रोजी-रोटी टिकी हुई है. इसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाना जरूरी है. पिछले कुछ समय से हम देख रहे हैं कि माल ढुलाई में रेलवे पिछड़ती जा रही है. देश में जिस तरह से उद्योगों की तादाद बढ़ी, उस हिसाब से रेलों को माल ज्यादा ढोना चाहिए था. इससे उसकी आर्थिक हालत बेहतर होती लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यह सड़क परिवहन से मुकाबला कर नहीं पा रही है जो ग्राहकों को ज्यादा प्रिय है. इसका इलाज इस बजट में बहुत थोड़ा दिखाई देता है. रेलवे के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वह ज्यादा से ज्यादा माल ढोए और उसका राजस्व बढ़े क्योंकि ज्यादातर यात्री ट्रेनें तो घाटे में चलती हैं. माल ढुलाई के लक्ष्य को रेल मंत्री ने बढ़ा तो दिया है लेकिन वह अपने लक्ष्य में कितने सफल हो पाते हैं, यह आने वाला समय बताएगा. दरअसल सामान भेजने की प्रक्रिया को आसान बनाने के अलावा उनकी समय पर डिलिवरी बहुत जरूरी है, ऐसा होने पर ही कारोबारी बड़े पैमाने पर रेलवे से जुड़ेंगे.
यात्री सुरक्षा रेलवे के लिए हमेशा ही बड़ा मुद्दा रहा है. इस बार के बजट में इस पर कोई खास जोर नहीं दिखता है. यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है और रेलवे को इसके लिए तमाम कदम उठाने चाहिए. ट्रेनों का सही समय पर परिचालन और यात्री सुरक्षा दो ऐसे मुद्दे हैं जिनमें किसी तरह की कमोबेश की गुंजाइश नहीं है. यह रेल बजट इस मायने में सराहा जा सकता है कि चुनाव सिर पर होने के बावजूद रेल मंत्री ने कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसे विशुद्ध पॉपुलिस्ट कहा जा सके.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और 'आज तक' के संपादकीय सलाहकार हैं)