भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी अप्रैल मौद्रिक नीति में सलाहकार समिति की सिफाऱिश के बावजूद ब्याज दरों में कटौती करने से मना कर दिया था. अर्थव्यवस्था में रियायत देने के लिए रेपो रेट को मौजूदा 7.5 फीसदी से कम करने के लिए रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने 4 शर्ते रखीं थी. इसके साथ ही रघुऱाम राजन ने यह भी कहा था कि ब्याज दरों पर किसी तरह का फैसला लेने के लिए वह अमेरिका में मौद्रिक नीति पर नजर रखेंगे.
गवर्नर रघुराम राजन की 4 शर्तें
1. कॉमर्शियल बैंक अपने ब्याज दरों में कटौती करें
2. खाद्य महंगाई में संतुलन कायम हो
3. उर्जा और भूमि अधिग्रहण में बाधाओं को दूर करने के लिए सरकार कारगर पहल करे
4. सरकार सब्सिडी खर्च को कम करते हुए निवेश करे
इन शर्तों पर कितनी खरी उतरी सरकार
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों के बावजूद साफ आर्थिक रिकवरी की कोशिशें जारी है, लिहाजा अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने साफ कर दिया है कि इस साल के अंत तक वह ब्याज दरों को बढा सकता है. इसके अलावा रघुराम राजन की 4 शर्तों में तीन को पूरा कर लिया गया है. ज्यादातर कॉमर्शियल बैंकों ने अपने बेस रेट या न्यूनतम लोन रेट या डिपॉजिट रेट में कटौती कर दी है. वहीं बेमौसम बारिश के बावजूद देश में खाद्य महंगाई पर नियंत्रण बना हुआ है. साथ ही विपक्ष के दबाव के बावजूद सरकार अर्थिक गतिविधियों को तेज करने के लिए जरूरी कानूनी पहल कर रही है.
क्यों उठ रही है ब्याज दरों को कम करने की मांग
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और केन्द्र सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन के साथ-साथ कॉरपोरेट जगत से लगातार ब्याज दरों को कम करने की मांग की जा रही है. इस मांग के लिए तर्क दिया जा रहा है कि खुदरा महंगाई दर अप्रैल में चार महीने के निचले स्तर 4.87 फीसदी पर पहुंच गया है. वहीं पिछले महीने खाद्य महंगाई भी मार्च के 6.3 फीसदी के स्तर से फिसलकर अप्रैल में 5.4 फीसदी पर पहुंच गई है. वहीं फैक्ट्री ग्रोथ मार्च में 5 महीने के निचले स्तर 2.1 फीसदी पर है जबकि फरवरी में यह 4.9 फीसदी रही. लिहाजा, खुदरा महंगाई उम्मीद से कम रहने और फैक्ट्री ग्रोथ में जारी कमजोरी के चलते ब्याज दरों को कम करने की मांग तेज हो रही है.
इन 3 कारणों से राजन टाल सकते हैं ब्याज दरों में कटौती
1. मॉनसून में देरी और अलनीनों का बढ़ता खतरा
खाद्य कीमतों में कमी से खुश होने से पहले ही एक बार फिर मानसून की देरी सरकार को परेशान कर रही है. मौसम विभाग आशंका जता रहा है कि इस बार लगातार दूसरे साल मानसून के कमजोर रहने की उम्मीद है. लिहाजा कमजोर मानसून से खाद्य महंगाई एक बार फिर बेकाबू हो सकती है. इसके साथ ही देश के प्रमुख फसल सीजन खरीफ के दौरान देश पर अल-नीनो का कहर भी पड़ सकता है. मौसम विभाग के मुताबिक अल-नीनों की 70 फीसदी संभावना है.
2. अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने की उम्मीद
फेड से मिल रहे साफ संकेतों से माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक अमेरिका में ब्याज दरों को बढ़ाने पर फैसला लिया जाएगा. वहीं अगर भारत में ब्याज दरों को कम किया जाता है तो वैश्विक निवेशकों को रोकने में भारत को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
3. ग्लोबल मार्केट में बढ़ रही है कच्चे तेल की कीमतें
अप्रैल में आई रिजर्व बैंक की पिछली मौद्रिक नीति के बाद से अबतक ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 20 फीसदी का इजाफा हुआ है. जहां पिछले एक साल से केन्द्र सरकार को कच्चा तेल खरीदने में राहत मिल रही है और अपना घाटा कम करने में बड़ी मदद मिली है वहीं बढ़ती कीमतों से एक बार फिर दबाव बढ़ने का खतरा बन रहा है.