राखी का त्यौहार मेक इन इंडिया के लिए एक अहम मॉडल साबित हो सकता है. जहां बीते साल तक देश में राखी के त्यौहार पर करोड़ों की राखी पड़ोसी देश चीन से निर्मित होकर बाजार में बिकती थी, 2017 में मेड इन इंडिया राखियों का बोलबाला रहा. इसके चलते बाजार में राखी की मांग सुस्त रही, कारोबारियों की सेल आधी रही और मुनाफा भी घट गया. राखी कारोबारी इसे जीएसटी का असर भी मान रहे हैं लेकिन जानकारों के मुताबिक, राखी कारोबार मेक इन इंडिया के लिए 'ब्लेसिंग इन डिसगाइज' साबित हो सकता है.
2016 तक देश में लगभग 15-20 करोड़ रुपये का राखी कारोबार था. इसमें लगभग 5 करोड़ रुपये तक की राखी चीन ले इंपोर्ट की जाती थी और चीन की इन इंपोर्टेड राखी से राखी ट्रेडर्स का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ जाता था. लेकिन 1 जुलाई से देश में जीएसटी लागू होने के बाद राखी मैन्यूफैक्चरिंग पर 12 फीसदी टैक्स प्रस्तावित कर दिया गया.
इसे भी पढ़ें: 36 साल से रक्षाबंधन पर PM मोदी को राखी बांधती आई हैं यह पाकिस्तानी बहन
वहीं त्यौहार से पहले भारत-चीन सीमा पर तनाव के असर से राखी ट्रेडर्स ने चीन में निर्मित राखियों के लिए बड़ा ऑर्डर प्लेस नहीं किया. वहीं देश में एंटी चाइनीज प्रोडक्ट कैम्पेन के चलते भी खरीदारों चीन की निर्मित राखी से बचते देखे गए.
इन दोनों कारणों से जहां बाजार में राखी की मांग के साथ-साथ सस्ती राखी के दिन खत्म होते दिखे वहीं बिक रही राखियों की कीमत में भी इजाफा देखने को मिला. जहां बीते साल तक चीन के प्रोडक्ट की मौजूदगी के चलते राखी स्टॉल पर सबसे सस्ती राखी 10 रुपये की थी, इस साल स्टॉल पर सबसे सस्ती राखी 20 रुपये की बेची गई. वहीं सादे धागे की राखी जहां बीते साल 5 रुपये की बिकी, इस साल स्टॉल पर उसकी कीमत 10 रुपये रखी गई. कारोबारियों का दावा है कि जीएसटी और मेड इन इंडिया राखी के चलते उन्हें कीमतों में इजाफा करना पड़ा.
इसे भी पढ़ें: कम होगी बंगाली मिठाई 'संदेश' की मिठास, लगा 5% GST
राखी कारोबारियों के मुताबिक, यह पूरा कारोबार अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में है. वहीं चीन के प्रोडक्ट से राखी ट्रेडर्स की झटपट कमाई खत्म हो चुकी है. लिहाजा अगले साल उन्हें देश में निर्मित राखियों में ही अपनी कमाई का मौका देखने की मजबूरी है. जीएसटी के दायरे में आने के बाद राखी कारोबारियों को मैन्यूफैक्चरिंग पर 12 फीसदी का टैक्स अदा करना होगा. लेकिन उनके लिए बाजार में बड़ी मांग मौजूद रहेगी क्योंकि चीन से आने वाली राखियों की स्थिति बाजार में मेक इन इंडिया के सामने फीकी पड़ सकती है.
गौरतलब है कि देश में राखी मैन्यूफैक्चरिंग के लिए वाराणसी, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, इंदौर और जयपुर अहम केन्द्र हैं. इन जगहों से कुल मिलाकर 50 से 60 तरह की राखियां निर्मित होती हैं जिनकी कीमत 10 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक है. राखी बनाने में निर्माताओं को सिल्क और कॉटन के धागों के साथ-साथ सस्ते-महंगे पत्थर, मोती, चंदन इत्यादि की जरूरत पड़ती है. वहीं हाई-एंड राखियों का बड़ा कारोबार जेश में ज्वैलर्स करते हैं जहां महंगे जेम्स एंड ज्वैलरी के साथ-साथ सोना और चांदी का भी इस्तेमाल किया जाता है.
बीते दशक के दौरान जिस तरह चीन में निर्मित प्रोडक्ट्स भारतीय त्यौहार पर अपनी पकड़ बना रहे थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दौरान महज राखी का एक-चौथाई से अधिक कारोबार चीन में निर्मित प्रोडक्ट के कब्जे में था. इसलिए, महज राखी के कारोबार में चीन के प्रोडक्ट की धाक कम होने से देश में निर्मित राखियों का कारोबार बढ़ने की उम्मीद है. इसके अलावा, अन्य त्यौहार जैसे होली, दीपावली इत्यादि को भी चीन के निर्मित प्रोडक्ट्स से बचा कर इस क्षेत्र में मेक इन इंडिया को बढ़ा दिया जा सकता है.