अगर आपने अपने घर पर लोन ले रखा है और आरबीआई के ब्याज दर कटौती के बाद आप उम्मीद कर रहे हैं कि आपकी ईएमआई घटेगी तो आपकी उम्मीद जायज है, लेकिन ये तभी मुमकिन जब बैंक इसका फायदा आपको दें. 5 साल के आंकड़े बताते हैं कि आरबीआई ने बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज यानी रेपो रेट में 2 फीसदी तक कमी की है लेकिन बैंकों ने अपने कर्जदारों को सिर्फ 1 फीसदी तक का ही लाभ दिया है.
गुरुवार को आरबीआई ने साल में तीसरी बार 0.25 फीसदी की ब्याज दर में फिर कटौती की, अब बैंक आरबीआई से शॉर्ट टर्म लोन 5.75 फीसदी की दर से ले सकते हैं. ये दरों 2010 की दरों के बराबर है. इंडिया टुडे डाटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) के विश्लेषण से पता चला कि पिछले 9 साल में बेस रेट में तो लगातार बदलाव हो रहे हैं लेकिन बैंक उसका फायदा ग्राहकों को नहीं देते और यही अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है.
2019 में रिजर्व बैंक ने करीब 0.75 फीसदी की दर में कमी की, लेकिन बैंकों ने अपनी दरों में कटौती नहीं की. कर्ज दरों में कटौती की बजाय बैंकों ने जमा धन पर ब्याज बढ़ा दिया जिससे ज्यादा फंड इकट्ठा किया जा सके. जानकार मानते हैं कि आरबीआई की कार्यवाई और बैंकों द्वारा उसका फायदा ग्राहकों तक न पहुंचने की वजह से घरेलू बचत में कमी आ रही है. हालांकि हाउसिंग इंडस्ट्री का मानना है कि रिजर्व बैंक के रेट कट का फायदा ग्राहकों को जल्द मिलेगा.
जेएलएल इंडिया के सीईओ रमेश नायर ने कहा, ‘रेपो रेट की दरों में कटौती का सीधा असर रियल इस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा, बशर्तें बैंक इसका फायदा ग्राहकों को दें. ऐसा देखा गया है कि पिछले दो रिव्यू में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती के बावजूद होम लोन की दरों में कोई बदलाव नहीं देखा गया, जिसका नतीजा ये हुआ कि ग्राहकों तक जरुरी फायदा नहीं पहुंचा’
मगर बैंक बैड लोन यानी लोन की रकम फंसने की समस्या से परेशान हैं तो गैर वित्तीय संस्थाएं सॉलवेंसी यानी लोन देने की क्षमता को लेकर फंसे हुए हैं. आईबीआई की रेट कटौती का फायदा इसी वजह से लोगों तक नहीं पहुंचता और ग्राहक अपनी खरीदारी को टाल देता है.
भारत में अब भी ग्राहकों की मांग सिर्फ कर्ज पर आधारित नहीं है. बकाया पर्सनल लोन (घर कर्ज नहीं) और प्राइवेट फाइनल कन्जमशन एक्सपैंडिचर (PFCE) का अनुपात 2019 की चौथी तिमाही में 35.7 फीसदी था जबकि 2012 की पहली तिमाही में ये आंकड़ा 28.2 फीसदी था.
उधर इस साल विकास दर भी 5 साल के न्यूनतम स्तर पर है. तिमाही के स्तर पर भी जीडीपी में गिरावट देखने को मिली- 2019 के चारों तिमाही में 2019 के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई. अर्थशास्त्री मानते हैं कि एशिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए काफी कुछ करने की जरुरत है.
इंडिया रेटिंग और रिसर्च (फिंच ग्रुप) के प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट डॉ सुनील सिन्हा का कहना है, ‘अभी 0.25 फीसदी की एक और कटौती की गुंजाइश है, और ये मॉनसून और साल 2019-20 के आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर करता है. बैंक रेट न घटाने के अपने फैसले का बचाव कर रहे हैं और ये भी मानते हैं कि ब्याज दरों में बदलाव अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होगी.’
देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई का कहना है, ‘ये सब कुछ नगदी पर निर्भर करता है, इस वक्त ये सरप्लस है. क्या ये बैंकों के लिए काफी है कि वो जमा दरों में कटौती करें. इस पर देनदारी की दरें निर्भर करती हैं क्योंकि आरबीआई की ओर से और कटौती हो सकती है. ( 50 से 75 बेसिस प्वाइंट तक कटौती संभव)’
इसी तरह देश के बड़े निजी बैंक भी मानते हैं कि दरों में कटौती से नगदी की समस्या कम होगी.
आईसीआईसीआई बैंक के ग्लोबल मार्केट्स, सेल्स और ट्रेडिंग रिसर्च के ग्रुप हेड बी प्रसन्ना का मानना है, ‘साल 2020 में विकास और मुद्रास्फीति की दरों को लेकर हमारी राय है कि महंगाई 4 फीसदी से कम होगी. इसी लिए हमने अपने विकास दर के अनुमान को सुधारा है.’
देश की एक और बड़े निजी बैंक एचडीएफसी भी आने वाले दिनों में एक और कटौती की उम्मीद कर रहा है. अपने आधिकारिक बयान में एचडीएफसी ने कहा है, ‘विकास दर में गिरावट को देखते हुए अगस्त तक एक और रेट कट की उम्मीद है. अगर महंगाई दर पर लगाम लगी रही तो अक्टूबर तक 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती और हो सकती है.’