भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मंगलवार को होने वाली नीतिगत समीक्षा में प्रमुख दरों में कटौती की संभावनाएं कम हैं, क्योंकि आरबीआई जनवरी में पहले ही ब्याज दरों में अप्रत्याशित कटौती कर चुका है.
आरबीआई के गर्वनर रघुराम राजन ने जनवरी के मध्य में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी. इस कटौती के बाद रेपो दर आठ प्रतिशत से घट कर 7.75 प्रतिशत हो गई थी. रेपो दर वह दर है, जिस पर आरबीआई किसी व्यावसायिक बैंक को कर्ज देता है. रेपो दर में लगभग दो सालों में की गई यह पहली कटौती थी.
उस समय कटौती का ऐलान करते वक्त राजन ने कहा था, 'ब्याज दरों में आगामी कटौती उस आंकड़े पर निर्भर करेगा, जो इस बात की पुष्टि करेगा कि महंगाई के दबाव लगातार घट रहा है.'
सरकार ने राजकोषीय घाटे को मार्च तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.1 प्रतिशत तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य रखा है. शुक्रवार को जारी राजकोषीय घाटे के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष के शुरुआती नौ महीनों में वित्तीय घाटा बजट के अनुमान से अधिक रहा है. हालांकि उसी दिन सरकार को कोल इंडिया के विनिवेश के जरिए 22,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई.
लेखा महानियंत्रक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 531,000 करोड़ रुपये के वार्षिक बजट के अनुमान की तुलना में अप्रैल-दिसंबर की अवधि के दौरान वित्तीय घाटा 532,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा.
एनडीए सरकार का पहला विस्तृत बजट 28 फरवरी को संसद में पेश किया जाएगा, जिसमें मुख्य रूप से अगले वित्त वर्ष में विकास दर की रूपरेखा और नकदी के आवंटन का खाका पेश होगा.
राजन के लिए एक अन्य कारक यह है कि जनवरी में जिस दिन उन्होंने दरों में कटौती की थी, उस दिन के आंकड़े बताते हैं कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से दिसंबर में व्यापार घाटा पांच महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया था. कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 45 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई है.
उद्योग जगत द्वारा समर्थित सुधारों के संदर्भ में विकास को प्रोत्साहन देने के लिए राजन सरकार से आस लगा सकते हैं.
- इनपुट IANS