बीते दिनों रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सभी बैंकों से ब्याज दरों को रेपो रेट से लिंक करने की अपील की. लेकिन आरबीआई गवर्नर की अपील के बाद भी कुछेक बैंकों ने ही इस पर अमल किया. अहम बात ये है कि जिन्होंने रेपो रेट से ब्याज दरों को जोड़ने का फैसला लिया है, वो सभी सरकारी बैंक हैं.
HDFC, एक्सिस और ICICI समेत अन्य बड़े प्राइवेट बैंकों ने अब भी चुप्पी साधी हुई है. हालांकि बीते शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह जरूर बताया कि बैंक अब रेपो रेट को ब्याज दर से लिंक करने पर राजी हो गए हैं. लेकिन अब भी किसी प्राइवेट बैंक ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है.
लिंकिंग में SBI सबसे आगे
आरबीआई गवर्नर की सलाह मानने वालों में सबसे पहला बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) था. बीते मई महीने में SBI ने एफडी को रेपो रेट से लिंक कर दिया था. इसके बाद SBI के नए ग्राहकों को 1 जुलाई से होम या ऑटो लोन पर रेपो रेट लिंकिंग की सुविधा मिलने लगी. अब 1 सितंबर से एसबीआई ने अपने पुराने ग्राहकों को भी यह सुविधा देने की बात कही है.
SBI की तर्ज पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा और यूनियन बैंक ने भी लोन को रेपो रेट से लिंक करने का फैसला किया है. इसके अलावा बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम) ने भी रिटेल लोन को रेपो रेट से जोड़ दिया है. इसी तरह सिंडिकेट बैंक और इलाहाबाद बैंक भी अब रेपो रेट लिंक्ड लोन की पेशकश करने वाले हैं.
अभी क्या है स्थिति
मौजूदा वक्त में अलग-अलग लोन की ब्याज दरें बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (BPLR) और मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) जैसे इंटरनल बेंचमार्क के आधार पर तय होती हैं. इस बेंचमार्क पर भी बैंकों की ब्याज दरें रेपो रेट पर ही आधारित होती हैं लेकिन यह अनिवार्य प्रक्रिया नहीं होती. कहने का मतलब यह है कि मौजूदा स्थिति में आरबीआई के रेपो रेट कटौती के बाद भी बैंकों पर ब्याज दर कम करने का कोई दबाव नहीं होता है.वह अपने मुताबिक ब्याज दरों में कटौती करते हैं.
बता दें कि रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इसी आधार पर ग्राहकों को कर्ज मुहैया कराते हैं. रेपो रेट कम होने से बैंकों को राहत मिलती है. इसके बाद बैंक कर्ज को कम ब्याज दर पर ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं.
मौजूदा व्यवस्था की क्या है स्थिति?
दरअसल, साल 2016 में एमसीएलआर की व्यवस्था अपनाई गई थी. इसका मकसद, पॉलिसी दरों में बदलाव का फायदा बैंक ग्राहकों को तेजी से पहुंचाना था. लेकिन, इसके उम्मीद के मुताबिक अच्छे नतीजे नहीं मिले. मौजूदा स्थिति में बैंकों की मनमानी भी सामने आई है. उदाहरण के लिए बीते साल दिसंबर महीने से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चार बार मौद्रिक नीति समिति (MPC) की समीक्षा बैठक की है. आरबीआई ने हर बार रेपो रेट में कटौती की है. लेकिन इस कटौती का फायदा आम लोगों को उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला है. वर्तमान में रेपो रेट 5.40 फीसदी पर आ गया है.
नए बदलाव से आपको क्या होगा फायदा?
रेपो रेट को ब्याज दर से लिंकिंग की व्यवस्था लागू होने का सीधा फायदा आपको मिलेगा. दरअसल, जब-जब रिजर्व बैंक रेपो रेट में कटौती करेगा तब बैंकों के लिए भी ब्याज दर में कटौती करना अनिवार्य हो जाएगा. इसका असर यह होगा कि आपकी ऑटो लोन और होम लोन समेत अन्य लोन की ईएमआई दर में कमी आएगी. यही नहीं, रेपो रेट से लोन की लिंकिंग की व्यवस्था लागू होने के बाद सिस्टम पहले के मुकाबले ज्यादा पारदर्शी बनेगा. इससे हर कर्ज लेने वाले व्यक्ति को ब्याज दर के बारे में पता होगा. बैंक क्या मुनाफा ले रहे हैं, इसकी भी उन्हें जानकारी होगी. इसके अलावा ग्राहक बैंकों के लोन की ब्याज दरों की भी तुलना कर सकेंगे.
आरबीआई की बढ़ सकती है सख्ती
वैसे तो केंद्रीय बैंक की ओर से रेपो रेट से लिंक करने को लेकर बैंकों को कोई खास निर्देश नहीं दिया गया है. लेकिन, बीते दिनों गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसे अनिवार्य करने के संकेत जरूर दिए. हाल ही में शक्तिकांत दास ने कहा, " मुझे लगता है कि अब नए लोन को रेपो रेट जैसे बाहरी मानकों से जोड़ने को औपचारिक रूप देने का सही समय आ गया है. हम निगरानी कर रहे हैं और जरूरी कदम उठाएंगे." इसके साथ ही आरबीआई गवर्नर ने कहा कि हम नियामक के रूप में अपनी भूमिका निभाएंगे.