वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में किए जाने वाले निवेश के मामले में रिजर्व बैंक द्वारा किए गए उपायों को 'पूंजी पर नियंत्रण नहीं माना जाना चाहिए और केंद्रीय बैंक समय आने पर इसकी फिर समीक्षा करेगा.'
चिदंबरम ने बताया, 'रिजर्व बैंक के परिपत्र (विदेशों में किए जाने वाले प्रत्यक्ष निवेश के बारे में) को घरेलू कंपनियों पर पूंजी नियंत्रण के तौर पर नहीं देखना चाहिए.' उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि ये उपाय तात्कालिक हैं और मुझे पूरा भरोसा है कि रिजर्व बैंक इनकी समय पर फिर से समीक्षा करेगा. इसलिए इसे पूंजी नियंत्रण न समझा जाये.'
रिजर्व बैंक ने बुधवार को सार्वजनिक तेल उपक्रम को छोड़कर घरेलू कंपनियों द्वारा विदेशों में किए जाने वाले खुद स्वीकृत मार्ग के तहत प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) की सीमा को 400 प्रतिशत से घटाकर 100 प्रतिशत कर दिया. चिदंबरम ने कहा कि मेरा मानना है कि इन उपायों के जरिए हम भारतीय कंपनियों को विदेशों में निवेश करने से हतोत्साहित नहीं कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने मात्र ओडीआई को नेटवर्थ के 400 प्रतिशत से घटाकर नेटवर्थ का 100 प्रतिशत किया है. चिदंबरम ने कहा कि लेकिन अगर कोई भारतीय कंपनी कहती है कि विदेशों में आस्तियों का अधिग्रहण करने के लिए उसे अधिक धन की आवश्यकता है तो रिजर्व बैंक उसे मंजूरी देगा, इसलिए इसे पूंजी नियंत्रण न समझा जाए.
रिजर्व बैंक का यह उपाय रुपये को मजबूती प्रदान करना है और देश से विदेशी मुद्रा को खुले हाथ से विदेश में जाने से रोकने का तात्कालिक उपाय है क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये का निरंतर अवमूल्यन हो रहा है. बुधवार को रुपया 24 पैसे की गिरावट के साथ 61.43 रपये प्रति डॉलर के सर्वकालिक निम्न स्तर पर बंद हुआ.
रिजर्व बैंक ने उदारीकृत प्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत व्यक्तिगत निवासी द्वारा किए गए ‘रेमिटेन्स’ की सीमा को भी दो लाख डॉलर से कम कर 75,000 डॉलर प्रति वर्ष किया है.