आसियान और चीन सहित कई अन्य देशों के साथ होने वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) पर बातचीत के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल आज यानी शुक्रवार को थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक जा रहे हैं. इस समझौते के लिए 8वीं मंत्रिस्तरीय बैठक होने जा रही है. इस व्यापार समझौते का संघ परिवार से जुड़ी संस्था स्वदेशी जागरण मंच (SJM) विरोध कर रही है. क्या है यह RCEP और क्या है पूरा मसला, इसके बारे में आइए विस्तार से जानते हैं.
16 देशों की आर्थिक ताकत
रीजनल कॉम्प्रीहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) एक ऐसा प्रस्तावित व्यापक व्यापार समझौता है जिसके लिए आसियान के 10 देशों के अलावा 6 अन्य देश-चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और न्यूजीलैंड के बीच बातचीत चल रही है. इसके लिए बातचीत साल 2013 से ही चल रही है और चल रही वार्ता को इसी साल नवंबर तक अंतिम रूप देने का लक्ष्य है.
आसियान के 10 सदस्य देशों में ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम शामिल हैं. आसियान के साथ बाकी छह देशों का मुक्त व्यापार समझौता पहले से है. 4 नवंबर को बैंकॉक में इन सभी देशों के लीडर्स की समिट होगी, जिसमें पीएम मोदी भी शामिल होंगे. उसके पहले यह अंतिम मंत्रिस्तरीय बैठक है.
क्या होगा इस समझौते से
आरसीईपी के द्वारा सभी 16 देशों को शामिल करते हुए एक 'एकीकृत बाजार' बनाए जाने का प्रस्ताव है, जिससे इन देशों के उत्पादों और सेवाओं के लिए एक-दूसरे देश में पहुंच आसान हो जाएगी. इससे व्यापार की बाधाएं कम होंगी. साथ ही, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, विवाद समाधान, ई-कॉमर्स आदि को बढ़ावा मिलेगा. इस समझौते के 25 चैप्टर में से 21 को अंतिम रूप दिया जा चुका है.
क्यों महत्वपूर्ण है समझौता
इसे दुनिया का सबसे प्रमुख क्षेत्रीय समझौता माना जा रहा है, क्योंकि इसमें शामिल देशों में दुनिया की करीब आधी जनसंख्या रहती है. इन देशों की दुनिया के निर्यात में एक-चौथाई और दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 30 फीसदी योगदान है.
भारत को क्या हो सकता है फायदा
जानकारों का मानना है कि इस समझौते से भारत को एक विशाल बाजार हासिल हो जाएगा. घरेलू उद्योगों को यदि प्रतिस्पर्धी बनाया गया तो इसे दवा इंडस्ट्री, कॉटन यार्न, सर्विस इंडस्ट्री को अच्छा फायदा मिल सकता है.
सबसे बड़ी चिंता चीन की
इस समझौते का संघ के आनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के साथ ही इंडस्ट्री के कई वर्ग भी विरोध कर रहे हैं. कई जानकारों का मानना है कि भारत को अपने बाजार की पहुंच देने के मामले में सतर्कता बरतनी चाहिए. ऐसी आशंका है कि इससे आरसीईपी देशों से आने वाले सस्ते उत्पादों से भारतीय बाजार पट जाएगा. इस तरह चीन के माल से पहले से भरे भारतीय कारोबार जगत के लिए समस्या और बढ़ जाएगी. इससे चीनी माल का आयात भी और बढ़ जाएगा.
आलोचकों का कहना है कि यह समझौता चीन के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते जैसा हो जाएगा. यह हाल तब है जब पहले से ही चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 54 अरब डॉलर के चेतावनीजनक स्तर पर पहुंच गया है.
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इस पर जगत के प्रतिनिधियों से कई दौर की बातचीत की है. असल में समझौते के द्वारा भारत पर यह दबाव है कि आसियान देशों से आयातित वस्तुओं पर आयात कर में 90 फीसदी तक और बाकी 6 देशों के उत्पादों पर आयात कर में 80 फीसदी तक कटौती करे.
जानकारों का कहना है कि आसियान देशों के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौते का अनुभव अच्छा नहीं रहा है और भारत इसका खास फायदा नहीं उठा पाया है. आरसीईपी पर दस्तखत होने के बाद आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा और बढ़ सकता है.
कृषि, डेयरी, स्टील सेक्टर, टेक्सटाइल जैसे कई औद्योगिक सेक्टर के लोग भी इस समझौते का विरोध कर रहे हैं और इससे संरक्षण की मांग कर रहे हैं. उनको आशंका है कि आरसीईपी से भारत आयातित माल से पट जाएगा. डेयरी इंडस्ट्री को खासतौर से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पाद से बाजार पट जाने का डर है.
स्वदेशी जागरण मंच करेगा विरोध प्रदर्शन
स्वदेशी जागरण मंच भी उपरोक्त आधार पर समझौते का विरोध कर रहा है. स्वदेशी जागरण मंच ने तो 10 से 20 अक्टूबर तक इसके राष्ट्रव्यापी विरोध का ऐलान किया है. SJM का कहना है कि अभी तक भारत ने जितने मुक्त व्यापार समझौते किए हैं उनसे देश में सस्ते आयातित माल पट गए हैं और भारतीय मैन्युफैक्चरिंग को बड़ा नुकसान हुआ है. SJM ने सरकार से आग्रह किया है कि वह RCEP पर दस्तखत न करे.