दुनिया के बाजार में खड़ा रो रहा है रुपया. रुपया बहा रहा है मुद्रा बाजार में अपनी लगातार गिरती साख के आंसू. ये गिरावट पिछले कई महीनों से जारी है. सोमवार को हालत ये थी कि डॉलर के मुकाबले रुपया 61 से भी ज्यादा तक गिर गया. रुपये का गिरना सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि रोते रुपये के आंसुओं का असर चौतरफा पड़ेगा.
हालत ये हो गई है, कि अपने ही बाजार अपनी साख का रोना रो रहा है रुपया क्योंकि डॉलर के मुकाबले लगातार गिरते भाव की वजह से कारोबारी भी रुपये से मुंह मोड़ने लगे हैं. रुपये के मुकाबले डॉलर जैसे डॉलर नहीं सोना हो गया हो.
रुपये के आंसू सिर्फ कागज के इस टुकड़े तक सीमित रहते, तो कोई बात होती. सभी जानते हैं कि पूरे देश का कारोबार इसी रुपये पर टिका है, लिहाजा रुपये के पीछे जार-जार कर रो रहा है बाजार, डरा और सहमा हुआ है आम आदमी. हालांकि बहुत कम लोगों समझ पाते हैं, कि ये डॉलर हमारे रुपये की कीमत क्यों तय करता है. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने का मतलब क्या है. तो इसे आसान भाषा में कुछ यूं समझा जा सकता है.
क्यों गिरता है रुपये का भाव?
रुपये के भाव गिरने की मुख्य वजह होती है देश के खजाने में डॉलर की कमी. अब सवाल यह है कि डॉलर की कमी क्यों होती है, तो इसकी वजह है आयात में बढ़ोत्तरी. क्योंकि जितना आयात बढ़ेगा, उतना ही ज्यादा डॉलर का खर्चा बढ़ेगा. देश के कुल आयात का बड़ा हिस्सा खर्च होता है कच्चे तेल की खरीदारी पर.
इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से साथ डॉलर का खर्च बढ़ता चला जाता है.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देश में डॉलर की कमी की वजह सिर्फ कच्चे तेल के दामों में बढ़ोत्तरी है. इसकी वजहें और भी है, जिसे सरकार काबू में कर सकती हैं, लेकिन प्रति डॉलर 61 रुपये का रिकार्ड रेट पार करने के बाद भी सरकार सोई दिख रही है.
पिछले एक महीने में रुपया हर रोज गिरावट का नया रिकार्ड बना रहा है. लेकिन वित्त मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक कहते सुने जाते हैं, कि इससे घबराने की जरूरत नहीं. जबकि जानकरों की माने तो रुपये के दाम में गिरावट का यही हाल रहा तो, न सिर्फ कारोबार प्रभावित होगा, बल्कि आम आदमी का जीना भी मुहाल हो जाएगा.
यानी रुपये का रोना जैसे जैसे बढ़ते जाएगा, आम आदमी की मुमसीबतें बढ़ती जाएंगी. सबसे पहले तो भारतीय तेल कंपनियां महंगे होते डॉलर की वजह से पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ाने का दबाव बनाती है. अगर ऐसा होता है, तो दूसरी चीजों की कीमत बुरी तरह से प्रभावित होती है. यानी रुपये के आंसुओं के साथ महंगाई और आसमान छूने लगेगी.
कैसे रुकेगी रुपये की रुलाई?
*आयात के मुकाबले निर्यात को बढ़ावा देना होगा.
*लंबे समय से अटके एनआरआई बॉन्ड्स को मंजूरी देनी होगी.
*विदेशों में नॉन ट्रेड पेमेंट पर अंकुश लगाना होगा.
*विदेश में रखा गया पैसा वापस मंगाने का आदेश भी कारगर हो सकता है.
*कच्चे तेल की खरीदारी पर रिजर्व बैंक को डॉलर की डायरेक्ट फंडिंग करनी होगी.
इस दिशा में सरकार की कोशिश सिर्फ एक ही दिखती है, सोने के आयात पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाना. डॉलर का भंडार बढ़ाने का दूसरा कारगर तरीका एफडीआई भी हो सकता था, लेकिन विपक्ष के विरोध के बाद ये भी अधर में लटका है. ऐसे में ये आशंका बेवजह नहीं कि आने वाले समय में भारतीय रुपया और कमजोर हो सकता है.