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सहारा ग्रुप की इन दो कंपनियों में फंसा है पैसा, तो यहां मिलेगा रिफंड

सहारा ग्रुप की दो कंपनियों में अगर आपका पैसा फंसा हुआ है, तो मार्केट रेग्युलेटर सेबी आपको इसे वापिस हासिल करने का एक मौका दे रहा है.  अपने निवेश से जुड़े जरूर दस्तावेज जमा कर आप अपने फंसे पैसे को वापस पा सकते हैं.

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सुब्रत रॉय
सुब्रत रॉय

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सहारा ग्रुप की दो कंपनियों में अगर आपका पैसा फंसा हुआ है, तो मार्केट रेग्युलेटर सेबी आपको इसे वापिस हासिल करने का एक मौका दे रहा है. अपने निवेश से जुड़े जरूरी दस्तावेज जमा कर आप अपने फंसे पैसे को वापस पा सकते हैं.

अगर आपने सहारा ग्रुप की सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) में निवेश किया था, तो यह सुविधा आपके लिए है.

बता दें कि इन कंपनियों ने तकरीबन 3 करोड़ निवेशकों के 17400 करोड़ रुपये जमा कराए थे, जो फंसे हुए हैं. अब ब्याज जुड़ने के बाद यह रकम बढ़ चुकी है. सेबी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अहम भूमिका निभाते हुए निवेशकों के पैसे की वसूली का काम निपटा रहा है.

अगर आप इन कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशक हैं, तो आपके पास 2 जुलाई तक का समय है. इस दौरान आपको सेबी की वेबसाइट पर जाना है. यहां आपको 'एप्ल‍िकेशन फॉर्म फॉर रिफंड-सहारा' पर क्ल‍िक करना है. यहां आपको हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में फॉर्म मिलेगा.

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सेबी ने इस संबंध में अपनी वेबसाइट और देश के प्रमुख अखबारों में भी विज्ञापन दिया है. भरा हुआ फॉर्म और इसके साथ आपको बॉन्ड की ऑरीजनल कॉपी भी भेजनी होगी. अगर इसकी जगह सहारा ने आपको पासबुक जारी किया हो, तो उसको भेजा जा सकता है. अगर आप इन दस्तावेजों के बिना अपना आवेदन भेजेंगे, तो सेबी आपकी एप्ल‍िकेशन को तवज्जो नहीं देगा.

सेबी ने अखबार में दिए विज्ञापन में बताया है कि निवेशकों का रिफंड ऑनलाइन ही वापस मिलेगा. इसलिए आपको इसमें बैंक डिटेल भी देनी होंगी. आपके दस्तावेज स्वप्रमाण‍ित भी होने चाहिए. इस संबंध में अध‍िक जानकारी के लिए आप सेबी की वेबसाइट पर पहुंच सकते हैं.

क्या है मामला?

सहारा ग्रुप की दो कंपनियों- सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) ने रियल एस्टेट में निवेश के नाम पर 3 करोड़ से भी ज्यादा निवेशकों से 17,400 करोड़ रुपए जुटाए. सहारा ने IPO लाने के लिए जो दस्तावेज सेबी के पास जमा कराए, उसमें गड़बड़ी सामने आई. इसके आधार पर 2010 में जांच के आदेश दिए गए. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

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