देश के लगभग सभी सरकारी बैंक बैड लोन की मार से त्रस्त हैं. हालांकि भारतीय स्टेट बैंक पर इसकी मार सबसे ज्यादा पड़ी है. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने 2016-17 में 20,339 करोड़ रुपये की लोन राशि (NPA) को बट्टे खाते में डाल दिया. सभी सरकारी बैंकों के मुकाबले यह सबसे ज्यादा राशि है, जो बट्टे खाते में डाली गई है.
2016-17 में इस तरह कुछ मिलाकर सरकारी बैंकों की तरफ से 81,683 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली गई. यह आंकड़े तब के हैं, जब भारतीय स्टेट बैंक के सहयोगी बैंकों का उसमें विलय नहीं हुआ था.
इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 में यह स्थिति इससे कम बद्तर थी और इस दौरान बैंकों का 27,231 करोड़ रुपये बट्टे खाते में शामिल था.
महज 5 साल के दौरान बट्टे खाते में डाली गई राशि में तीन गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह वित्त वर्ष 2013-14 में सरकारी बैंकों ने 34,409 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डाला था.
वित्त वर्ष 2013-14 के मुकाबले 2014-15 में यह राशि बढ़ गई. इस दौरान यह 49,018 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. 2015-16 में यह 57,585 करोड़ हुई. इसके बाद मार्च, 2017 को खत्म हुए वित्त वर्ष में इस राशि ने 81,683 करोड़ रुपये का आंकड़ा छू लिया.
स्टेट बैंक के बाद पंजाब नेशनल बैंक ने भी 2016-17 में 9,205 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली है. तीसरे नंबर पर बैंक ऑफ इंडिया ने 7,346 करोड़, केनरा बैंक (5,545 करोड़) और बैंक ऑफ बड़ोदा ने 4,348 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले हैं.
वहीं, चालू वित्त वर्ष की बात करें तो इसमें बैड लोन को बट्टे खाते में डालने का सिलसिला जारी है. सितंबर छमाही तक सरकारी बैंकों ने 53,625 करोड़ के कर्ज को बट्टे खाते में डाला है.
राइट ऑफ अथवा बट्टा खाता में बैंक उसी लोन राशि को डालता है, जो डूब जाती है. राइट ऑफ करने का मतलब है कि बैंक इसे अपनी बैलेंस शीट से हटा देता है. हालांकि इसको रिकवर करने के प्रयास जारी रहते हैं.