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इंफोसिस विवाद: सीएफओ का रुतबा, कंपनी छोड़ने पर मिला 17 करोड़ का मुआवजा

राजीव बंसल ने 2015 में इंफोसिस को पनाया डील विवाद के बाद छोड़ दिया था. कंपनी छोड़ते वक्त सीईओ विशाल सिक्का ने बंसल को 17.38 करोड़ रुपये का हर्जाना (सेवेरेंस अलाउंस) देना मंजूर किया और 2015 तक उन्हें बतौर हर्जाना 5 करोड़ रुपये दे दिए.

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कंपनी का सीएफओ, नोकरी छोड़ी तो मिली 2 साल की सैलरी
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इंफोसिस में फाउंडर्स और बोर्ड के विवाद की मुख्य वजह है कंपनी के पूर्व चीफ फाइनेनशियल ऑफिसर (सीएफओ) राजीव बंसल. बंसल ने 2015 में इंफोसिस को पनाया डील विवाद के बाद छोड़ दिया था. कंपनी छोड़ते वक्त सीईओ विशाल सिक्का ने बंसल को 17.38 करोड़ रुपये का हर्जाना (सेवेरेंस अलाउंस) देना मंजूर किया और 2015 तक उन्हें बतौर हर्जाना 5 करोड़ रुपये दे दिए.

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राजीव बंसल को इतनी महंगी डील के तहत हर्जाना देना नारायण मूर्ति समेत इंफोसिस के अन्य फाउंडर्स को नागवार गुजरा. इसके बाद 2015 में इंफोसिस ने बंसल को पेमेंट देना बंद कर दिया. इंफोसिस छोड़ते वक्त कंपनी ने बंसल को 24 महीने की सैलरी बतौर हर्जाना देने का वादा किया था. इतनी महंगी डील पर आपत्ति उठाते हुए फाउंडर्स ने सीईओ विशाल सिक्का पर किसी दबाव में बंसल से इतनी बड़ी रकम पर समझौता करने की बात कही.

इंफोसिस फाउंडर्स ने बंसल को दिए गए बड़े हर्जाने के अलावा सीईओ विशाल सिक्का की सैलरी में किए गए बड़े इजाफे को भी गलत बताया था. लेकिन फाउंडर्स और इंफोसिस बोर्ड में टकराव की स्थिति सबसे पहले सामने फरवरी 2015 में तब आई जब कंपनी ने इजराइल की सॉफ्टवेयर कंपनी पनाया को 200 मिलियन डॉलर में खरीद लिया था.

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गौरतलब है कि फरवरी 2015 में इजराइल के साथ हुई पनाया डील के वक्त इंफोसिस के सीएफओ राजीव बंसल थे लेकिन उन्होंने इस डील को कंपनी के लिए नकसान घोषित कर दिया था. इसके बाद भी सीईओ विशाल सिक्का ने पनाया डील को पूरा किया और नतीजतन राजीव बंसल को कंपनी छोड़ना पड़ी. ऐसी स्थिति में कॉरपोरेट नियमों के तहत कंपनी ने दो साल की सैलरी बतौर हर्जाना देने की बात पर सहमति दी. अब इन उदाहरणों के साथ इंफोसिस फाउंडर्स का कहना है कि बोर्ड ने फैसलों में कंपनी के हित को ध्यान में नहीं रखा.

क्या है कंपनी में सीएफओ का काम?
सीएफओ या चीफ फाइनेंनशियल ऑफिसर कॉरपोरेट जगत में कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण अफसर होता है. उसका मुख्य काम कंपनी के फाइनेनशियल रिस्क को मैनेज करना है. कंपनी की फाइनेनशियल प्लानिंग के साथ-साथ कंपनी का पूरा वित्तीय हिसाब-किताब रखना और समय-समय पर कंपनी के टॉप मैनेजमेंट को कंपनी की फाइनेनशियल स्वास्थ की रिपोर्ट देना भी सीएफओ का अहम काम होता है.

 

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