जापान के ओसाका में शुक्रवार से 14वें जी-20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत हो रही है. दो दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेंगे. यह लगातार छठी बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं. वहीं शिखर सम्मेलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु भारत के ''शेरपा'' होंगे. लेकिन सवाल है कि आखिर ''शेरपा'' क्या है और इसका काम क्या होता है. आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में..
क्या है शेरपा?
दरअसल, शेरपा जी-20 सदस्य देशों के नेताओं का प्रतिनिधि होता है जो सम्मेलन के एजेंडे के बीच समन्वय बनाता है. शेरपा सदस्य देशों के साथ मिलकर आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक चर्चा के एजेंडे को लेकर बात करता है. इसके अलावा सम्मेलन से पहले की बैठकों में हिस्सा लेता है. यह पहली बार नहीं है जब सुरेश प्रभु बतौर शेरपा जी 20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने वाले हैं. इससे पहले वह साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शेरपा बने थे. सुरेश प्रभु तब रेल मंत्री थे.
कहां से आया शेरपा?
यह शब्द नेपाली शेरपा से लिया गया है. शेरपा लोग हिमालय में पर्वतरोहियों के लिए बतौर गाइड काम करते हैं. समिट में हर सदस्य देश से एक ही शेरपा शामिल हो सकता है. इसकी नियुक्ति देश की सरकार की ओर से की जाती है. इस पद पर देश का राजनयिक, राजनीतिक अनुभव रखने वाला नेता या वरिष्ठ सरकारी अधिकारी में से कोई भी नियुक्त हो सकता है. भारत की ओर से मोंटेक सिंह अहलूवालिया, शक्तिकांत दास और अरविंद पनगढ़िया भी बतौर शेरपा जी 20 समिट में शामिल हो चुके हैं.
जी-20 के बारे में
जी-20 की स्थापना साल 1999 में हुई थी. पहले इस सम्मेलन में अलग-अलग देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर हिस्सा लेते थे. साल 2008 में इसमें देशों के प्रमुखों को शामिल किया गया. इस फैसले का तात्कालिक मकसद 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट पर प्रभावी तरीके से मंथन था. हालांकि इसके बाद से यह अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के प्रधान वैश्विक मंच के रूप में उभरा है. जी-20 के सदस्य देश दुनिया के 85 फीसदी सकल घरेलू उत्पादन, 75 फीसदी वैश्विक व्यापार और दुनिया की दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. भारत अब तक जी-20 के सभी सम्मेलनों में हिस्सा ले चुका है. भारत पहली बार 2022 में जी-20 समिट की मेजबानी करेगा.
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