कच्चे तेल की कीमतों में कमी के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम में कमी आई है, लेकिन सरकार इसका पूरा लाभ जनता को नहीं लेने देना चाहती. सरकार उत्पाद शुल्क बढ़ाकर बचत का बड़ा हिस्सा अपनी जेब में रखना चाहती है.
दरअसल इस खेल में हो ये रहा है कि पेट्रोल की कीमत से लोग टैक्स ज्यादा दे रहे हैं, यानी तेल बेचने वाली सरकारी कंपनियां रिफाइनरी से जिस कीमत में पेट्रोल खरीद रही हैं, उससे ज्यादा का टैक्स है.
उदाहरण के लिए दिल्ली में पेट्रोल कीमत 58 रुपए 91 पैसे प्रति लीटर है. तेल बेचने वाली सरकारी कंपनियां रिफाइनरी से पेट्रोल सिर्फ 29 रुपए 26 पैसे में खरीद रही थी. यानि पेट्रोल की कीमत का बाकी हिस्सा या करीब 29 रुपए 65 पैसे तमाम टैक्सों, सरचार्ज, डीलर कमीशन और कंपनी मार्जिन में जाते है, जो उसकी रिफाइनरी कीमत से भी 39 पैसे ज्यादा है.
यानि आप हर लीटर पेट्रोल की जो कीमत चुकाते हैं, वो आधे से भी ज्यादा सिर्फ इस पर लगी तमाम टैक्सों और लेवियां में जाती है.