टेस्ला अपनी इलेक्ट्रिक वेहिकल की मैन्यूफैक्चरिंग अब चीन के शंघाई में शुरू करने जा रही है. वहीं देश में मोदी सरकार बीते एक साल से टेस्ला और एप्पल जैसी कंपनियों को भारत में मैन्यूफैक्चरिंग करने की मंजूरी देने पर विचार कर रही है. क्या हम मेक इन इंडिया की शर्तों पर खरे उतरने वाली कंपनियों को पहचानते रह जाएंगे और एक-एक कर मल्टीनैशनल कंपनियां दूसरे देशों में अपनी फैक्ट्रियां लगाती रहेंगी?
टेस्ला इंक के प्रमुख इलॉन मस्क और चीन सरकार में नई फैक्ट्री लगाने के लिए शंघाई शहर को चुनने पर सहमति बन चुकी है. यह दावा वॉल स्ट्रील जर्नल ने किया है. अमेरिका से बाहर यह टेस्ला की पहली फैक्ट्री होगी जहां भविष्य के लिए एमीशन फ्री गाड़ियों का निर्माण किया जाएगा. इस सहमति के लिए चीन सरकार ने मेक इन चाइना की कई शर्तों को दरकिनार करते हुए शंघाई के फ्री ट्रेड जोन में टेस्ला की इस इकाई को मंजूरी दी होगी.
अब चीन में लगने वाली टेस्ला की यह फैक्ट्री न सिर्फ चीन की इलेक्ट्रिक कार बनाने की कोशिशों को साकार करेगी बल्कि यह भी दर्शाएगी कि कैसे मेक इन इंडिया जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रम के बावजूद हम दुनिया के मैन्यूफैक्चरिंग हव बनने की दौड़ में पिछड़ रहे हैं. लिहाजा सवाल है कि आखिर गलती कहां हो रही है? क्यों 2015 में प्रधानमंत्री मोदी के सामने भारत में कंपनी लगाने की पेशकश करने वाली टेस्ला अब चीन में फैक्ट्री लगाने जा रही है? 2015 में यह पेशकश करने के लिए इलॉन मस्क ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी. इसके बावजूद ऐसा क्यों हुआ कि इस दौड़ में भारत पिछड़ गया. इलॉन मस्क के कुछ ट्वीट को देखे तो जवाब मिलता है कि भारत एक सुस्त देश है और वह उनके साथ कारोबार करने वाली मल्टीनैशनल कंपनियों की वास्तविक जरुरतों को समझने की कोशिश भी नहीं करता.
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भारत अपनी सड़को पर इलेक्ट्रिक कार दौड़ाना चाहता है. उसकी कोशिश है कि 2030 तक वह देश में इलेक्ट्रिक कारों के ज्यादातर वैरिएंट को बेचे. इसके बावजूद उसने टेस्ला जैसी कंपनी को देश में फैक्ट्री लगाने के लिए प्रोत्साहित करने की कोई कोशिश नहीं की. लेकिन सवाल यह नहीं कि चीन में टेस्ला की फैक्ट्री लगाने का फैसला हो जाने के बाद अब भारत में टेस्ला की दूसरी इकाई नहीं लग सकती. लेकिन यहां समस्या यह है कि भारत मेक इन इंडिया की शर्त पर अड़ा है कि किसी भी विदेशी कंपनी को भारत में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत उत्पादन करना है तो उसे कम से कम 30 फीसदी कल-पुर्जे भारत से ही लेने होंगे.
लिहाजा, अभी जब भारत में इलेक्ट्रिक कारों का न तो नामो निशान है और न ही उसके कल पुर्जे कोई बना रहा है तो मेक इन इंडिया कार्यक्रम चाहता है कि देश में आकर इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनी पहले एक-तिहाई कल-पुर्जे बनाने की एंसिलियरी यूनिट भारत में लगाए और तब जाकर उसे मेक इन इंडिया के तहत देश में मैन्यूफैक्चरिंग करने की मंजूरी मिले.
इसी शर्त में फंसा एप्पल की आईफोन फैक्ट्री
मेक इन इंडिया की इस शर्त से टेस्ला अकेले नहीं परेशान है. ठीक ऐसा ही अमेरिकी स्मार्टफोन कंपनी एप्पल के साथ हो रहा है. बीते एक साल से एप्पल कोशिश में है कि वह अपने स्मार्टफोन समेत अन्य प्रोडक्ट की मैन्यूफैक्चरिंग भारत में करे. लेकिन उसके सामने भी मुसीबत एक तिहाई कल-पुर्जों को भारत से प्राप्त करने की है. एप्पल का मानना है कि उसके कल-पुर्जे बेहद की सूक्ष्म तकनीकि से विकसित हुए है और दुनिया के चुनिंदा जगहों पर उनकी मैन्यूफैक्चरिंग की जा रही है. लिहाजा, भारत में एप्पल के उत्पाद बनाने के लिए एप्पल के लिए जरूरी है कि वह अपने इन्हीं सप्लायर से कल-पुर्जों को प्राप्त करे क्योंकि भारत में ऐसे प्रोडक्ट के लिए पुर्जे तैयार करने की क्षमता अभी नहीं है. लिहाजा, इसी शर्त पर फिलहाल एप्पल और भारत सरकार की बातचीत चल रही है और उम्मीद है कि यह बातचीत की किसी निष्कर्श पर न पहुंचे.
अब चीन में भी किसी विदेशी कंपनी को मैन्यूफैक्चरिंग करने की मंजूरी देने के लिए बेहद कड़े नियम हैं. कुछ मामलों में तो चीन के नियम इतने कड़े हैं कि कोई मल्टीनैशनल कंपनियां चीन का रुख करने की पहल भी नहीं करती. इसके बावजूद उसे एप्पल और टेस्ला जैसी कंपनियों के पहल पर फैसला लेने में वक्त नहीं लगता और न ही इन कंपनियों को किसी तरह की रियायत देने में वह देरी करती है क्योंकि वह जानती है कि कहां शर्तों को थोपने से सिर्फ नुकसान होगा और कहां फायदा लेने के लिए वह शर्तों को हटा सकती है. यही समझ भारत में फिलहाल नहीं है और यही नतीजा है कि बीते तीन साल से मेक इन इंडिया जैसा कार्यक्रम मौजूद होने के बाद भी देश में फायदे और नुकसान के मसौदे पर फैसला नहीं लिया जा पा रहा है.