सोमवार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. मंगलवार को कारोबार बंद हुआ तो डॉलर 13 महीने के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. बाजार के जानकारों के साथ-साथ फॉर्च्यून मैग्जीन ने दावा किया कि डॉलर को मजबूती डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने से मिल रही है.
डॉलर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की सबसे अहम करेंसी है. रुपये के स्वास्थ का आंकलन डॉलर की चाल पर किया जाता है. जिस बीच ग्लोबल मार्केट में डॉलर छलांग मार रहा था भारत का रुपया उलटी दिशा में गोते खा रहा था. मंगलवार को मुद्रा बाजार के बंद होते ही रुपया 20 महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया. डिमॉनेटाइजेशन प्रक्रिया शुरू होने के बाद मुद्रा बाजार में रुपया लगभग 2 रुपये तक लुढ़क चुका है.
बढ़ सकती है रुपये में गिरावट
मंगलवार को एक डॉलर के मुकाबले रुपया 67.74 पर
बंद हुआ. हालांकि बुधवार को रुपये ने 6 पैसे की मजबूती
के साथ शुरुआत की लेकिन उसका 20 महीने का
न्यूनतम स्तर बरकरार है. मुद्रा बाजार के जानकारों का
दावा है कि भारत में डिमॉनेटाइजेशन की जारी प्रक्रिया से
रुपया को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में जब
डॉलर की रफ्तार पर ट्रंप की बनने वाली सरकार सीधा
फायदा पहुंचा रही है, जानकार मान रहे हैं कि रुपये
में गिरावट बढ़ सकती है और वह डॉलर के मुकाबले 70
के स्तर को आसानी से पार कर लेगा.
अब सवाल यह है कि आखिर यह कैसे संभव है कि जिस डोनाल्ड ट्रंप के चुने जाने के असर से दुनियाभर के शेयर बाजार में मायूसी छाई है वह डॉलर को मजबूत कर रहा है?
मजबूत हो रही रिपब्लिकन पार्टी
डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ-साथ कांग्रेस में रिपब्लिकन
पार्टी मजबूत हो चुकी है. चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी ने
न सिर्फ अपने उम्मीदवार को राष्ट्रपति बना लिया, बल्कि
हाउस ऑफ रिप्रेसेंटेटिव में डेमोक्रैट पार्टी के 161 सीटों
के मुकाबले 221 सीटों पर जीत दर्ज की है. कांग्रेस के
इस सदन पर रिपब्लिकन पार्टी 2011 से लगातार बहुमत
में है. इसके चलते बराक ओबामा सरकार को महत्वपूर्ण
बिलों पर विरोध झेलना पड़ा है.
अब जब रिपब्लिकन पार्टी की सरकार बन रही है तो बाजार में कयास लगाया जा रहा है ट्रंप सरकार आने वाले दिनों में चुनावी वादों के मुताबिक टैक्स में कटौती के साथ-साथ सरकारी खर्च में कटौती करने का फरमान दे सकती है. इन दोनों कटौती के असर से डॉलर मजबूत होने की उम्मीद पर बीते दो दिनों से मुद्रा बाजार में डॉलर सबकी पसंद बना हुआ है. लिहाजा अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग तेज है. रुपये पर पहले से ही डिमॉनेटाइजेशन का दबाव है. अब डॉलर की मजबूती उसके लिए दोहरी चोट साबित हो रही है.