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सरकार के पास फंड नहीं, अच्छी सड़कें चाहिए तो टोल चुकाना होगा: गडकरी

नितिन गडकरी ने लोकसभा में कहा कि टोल जिंदगी भर बंद नहीं हो सकता है.अगर आपको अच्‍छी सड़कें चाहिए तो टोल देना ही होगा.

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नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार के पास पर्याप्त फंड नहीं है
नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार के पास पर्याप्त फंड नहीं है

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केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि जनता को अच्छी सड़कें चाहिए तो टोल चुकाना पड़ेगा. दरअसल, मंगलवार को नितिन गडकरी लोकसभा में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के फंडों की मांगों को लेकर सवालों का जवाब दे रहे थे. इसी दौरान उन्‍होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि टोल जिंदगी भर बंद नहीं हो सकता.  कम ज्यादा हो सकता है. गडकरी ने आगे कहा कि टोल का जन्मदाता मैं हूं. अगर आपको अच्छी सेवाएं चाहिए तो कीमत चुकानी पड़ेगी क्‍योंकि सरकार के पास पर्याप्त फंड नहीं है.

नितिन गडकरी ने इसके साथ ही कहा कि मोदी सरकार में सड़क, पोत परिवहन और जल संसाधन के क्षेत्रों में 17 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को अवार्ड किया गया, लेकिन एक रुपये का भ्रष्टाचार नहीं हुआ. गडकरी ने कहा, ‘‘मैं सदन को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जो प्राथमिकता तय की थी उसके बहुत अच्छे नतीजे आए हैं.’’ गडकरी के मुताबिक राजमार्ग और भवन निर्माण क्षेत्र में प्रगति दोगुनी हो चुकी है. यह बहुत बड़ी प्रगति है. हर परियोजना हमारे लिए प्राथमिकता है. हम उसे पूरा करेंगे.

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22 ग्रीन एक्सप्रेसवे पर हो रहा काम

सड़क परिवहन मंत्री ने बताया कि हम 22 ग्रीन एक्सप्रेसवे बना रहे हैं. इनमें से दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे एक है. गडकरी ने बताया, 'दिल्ली-मुंबई मार्ग देशभर में तैयार किए जा रहे ग्रीन एक्सप्रेस हाइवे नेटवर्क का ही एक हिस्सा है. यह गुड़गांव से शुरू होकर सवाई माधोपुर, अलवर, रतलाम, झाबुआ, बड़ोदरा से होकर मुंबई जाएगा.'  गडकरी के मुताबिक ग्रीन हाइवे के जरिए माल ढुलाई की लागत घट जाएगी क्योंकि इसपर ट्रेनों जैसा इलेक्ट्रिक सिस्टम से ट्रकों का संचालन किया जाएगा. गडकरी ने बताया कि अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को, जर्मनी और स्वीडन आदि के तर्ज पर देश में भी माल ढुलाई का अनोखा रास्ता तैयार होगा. 

हालांकि भूमि अधिग्रहण थोड़ी समस्या है.नितिन गडकरी ने बताया कि कहा कि सरकार ने पहले से रुकी हुई परियोजनाओं से संबंधित 95 फीसदी समस्याएं खत्म की हैं. इससे बैंकों का 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक एनपीए (गैर निष्पादक संपत्तियां) होने से बचा.  

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