किंगफिशर लोन मामले में लंबे समय से देश से फरार शराब कारोबारी विजय माल्या ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए एक बार फिर अपनी सफाई पेश की है. माल्या ने यह सफाई पेश करते हुए दावा किया है कि पूरे मामले में वह बेगुनाह हैं. इसके बावजूद देश के नेताओं और मीडिया ने उन्हें कर्ज लेकर फरार कारोबारी घोषित कर दिया है.
माल्या ने दावा किया है कि मीडिया द्वारा चलाए गए ट्रायल के बाद कुछ बैंकों ने भी उन्हें विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने का फैसला किया है. खासबात है कि माल्या ने दावा किया कि मौजूदा सफाई उनके द्वारा 15 अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली कि लिखे गए पत्र के आधार पर है और उनके बयान में दोनों को लिखी गई चिट्ठी के अंश शामिल हैं.
अपनी सफाई में माल्या ने कहा कि लंबी खामोशी के बाद अब उनके ऊपर लगे आरोपों पर पक्ष रखने का समय आ गया है. माल्या ने दावा किया कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने सरकार के आदेश पर उनके खिलाफ गलत आरोप लगाए और चार्जशीट दायर की. वहीं ईडी ने उनके और उनके परिवार की 13,900 करोड़ रुपये की संपत्ति को जब्त कर लिया है. इसके साथ ही बैंकों ने उन्हें धोखाधड़ी का पोस्टर बॉय बनाकर देश के सामने पेश किया है. अपनी सफाई में माल्या ने सिलसिलेवार ढंग से उनपर लगे एक-एक आरोपों पर अपना पक्ष रखा है.
बैंकों का कितना कर्ज?
माल्या ने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में 17 बैंकों के संघ ने किंगफिशर एयरलाइंस को करीब 5,500 करोड़ रुपये का लोन दिया था. इस लोन को देने के लिए बैंक के प्रत्येक स्तर पर नियम के मुताबिक उन्हें मंजूरी दी गई. इसके बाद लोन के लिए गिरवी रखी गई संपत्ति को बेचते हुए 600 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा चुकी है. इसके अलावा 2013 से 1,280 करोड़ रुपये कर्नाटक हाईकोर्ट में सिक्योरिटी डिपॉजिट में पड़े हैं. लिहाजा कुल मिलाकर 1,880 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा चुकी है.
माल्या ने दावा किया कि 2010 के दौरान जब देश में एविएशन सेक्टर सुस्ती के दौर में था तब रिजर्व बैंक की मंजूरी से किंगफिशर को दिए गए कर्ज को रीस्ट्रक्टचर करने का कदम उठाया गया. इसके बाद खुद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जनवरी 2012 में आरबीआई को लिखा कि माल्या ने पर्याप्त मात्रा में किंगफिशर एयरलाइन्स में निवेश किया है लेकिन मौजूदा सुस्ती के चलते एयरलाइन्स को घाटे से जाने में रोकना संभव नहीं है.
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इसके बाद जब किंगफिशर एयरलाइंस घाटे में चली गई तब कर्ज देने वाले बैंकों के संघ ने कर्ज की रिकवरी के लिए ट्राइब्यूनल का दरवाजा खटखटाते हुए 5000 करोड़ रुपये के कर्ज और 1200 करोड़ रुपये के ब्याज की रिकवरी की मांग की. लिहाजा, बैंकों की तरफ से कुल 6,200 करोड़ रुपये की रिकवरी की बात कही गई लेकिन मीडिया में अतिशयोक्ति के साथ देनदारी की रिपोर्ट का प्रसार किया गया.
विलफुल डिफॉल्ट का आरोप?
माल्या ने दावा किया कि बैंकों द्वारा ट्राइब्यूनल जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जरिए सेटेलमेंट के दो प्रस्ताव दिए. यह प्रस्ताव 29 मार्च 2016 और 6 अप्रैल 2016 को दिए गए. इन प्रस्तावों में बैंक के 5,000 करोड़ रुपये के कर्ज के ऐवज में 4,000 करोड़ रुपये और 2,000 करोड़ रुपये एक अन्य लंबित मामले में क्लेम भरने की पेशकश की. इस प्रस्ताव को अगले महीने 4,400 करोड़ और 2,000 करोड़ रुपये के संशोधन के साथ पेश किया गया. लेकिन जहां पहले प्रस्ताव को बैंक के शीर्ष स्तर पर ठुकरा दिया गया वहीं दूसरे प्रस्ताव को बैंक के एक छोटे कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में ही ठुकरा दिया.
विजय माल्या ने दावा किया कि इन प्रस्तावों को ठुकराए जाने के बाद उन्होंने 10 मई 2016, 2 जून 2016 और 10 जून 2016 को एसबीआई प्रमुख को पत्र लिखते हुए समझौते पर चर्चा करने के लिए कहा. लिहाजा माल्या का दावा है कि ऐसी स्थिति में बैंकों द्वारा उन्हें विलफुल डिफॉल्टर घोषित करना उचित नहीं है क्योंकि उन्होंने लगातार बैंकों के कर्ज को निपटाने की पहल की है.