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रेपो रेट समेत RBI के ये 3 'शब्द' डालते हैं आप पर असर, जानिए मतलब

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समि‍ति ने बुधवार को रेपो रेट में कटौती नहीं की है और इसमें कोई बदलाव किये बिना इसे 6 फीसदी ही रखा है. इससे आम आदमी को सस्ते कर्ज के लिए कुछ और समय इंतजार करना पड़ेगा.

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आरबीआई रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट जैसे टर्म का इस्तेमाल करता है
आरबीआई रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट जैसे टर्म का इस्तेमाल करता है

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भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समि‍ति ने बुधवार को रेपो रेट में कटौती नहीं की है और इसमें कोई बदलाव किये बिना इसे 6 फीसदी ही रखा है. इससे आम आदमी को सस्ते कर्ज के लिए कुछ और समय इंतजार करना पड़ेगा.

जब  भी आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक होती है, तो रेपो रेट, र‍िवर्स रेपो रेट जैसे कई टर्म्स सुनने को मिलते हैं. हम आपको आरबीआई के तीन ऐसे टर्म का मतलब बता रहे हैं, जो अक्सर सुनने को मिलते हैं. इसके साथ ही आप जानेंगे कि कैसे इनके घटने बढ़ने से आप प्रभावित होते हैं.

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रेपो रेट

जब बैंकों के पास फंड की कमी हो जाती है, तो वे केंद्रीय बैंक (आरबीआई) से लोन लेते हैं. उन्हें यह लोन एक फिक्स रेट पर आरबीआई की तरफ से दिया जाता है. यही रेट रेपो रेट कहलाता है. रेपो रेट हमेशा आरबीआई ही तय करता है.  

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आरबीआई ऐसा क्यों करता है

जब देश में महंगाई का दबाव बना रहता है, तो ऐसे समय में इस पर नियंत्रण पाने के लिए रेपो रेट एक अहम हथ‍ियार साबित होता है.

ऐसे समझ‍िए

रेपो रेट  को बढ़ाने से महंगाई  पर नियंत्रण पाने में मदद मिलती है. दरअसल जब भी रेपो रेट बढ़ता है, तो ऐसे में बैंक आरबीआई से कम कर्ज लेते हैं. इससे इकोनॉमी में मनी सप्लाई में कमी आती है. इससे महंगाई पर नियंत्रण पाने में मदद म‍िलती है.

आप पर ऐसे पड़ता है असर

जब भी रेपो रेट बढ़ता है, तो इससे बैंकों के लिए आरबीआई से फंड लेना महंगा हो जाता है. इस दबाव को बैंक ग्राहकों तक पहुंचाते हैं. इसकी वजह से आपको मिलने वाला कर्ज महंगा हो  जाता है. जब भी यह रेट कम होता है, तो बैंकों को ज्यादा कर्ज देने का मौका मिलता है और वे आप से कम ब्याज वसूलते हैं.

रिवर्स रेपो रेट

रिवर्स रेपो रेट वह रेट होता है, जिस पर देश का केंद्रीय बैंक बैंकों से लोन लेता है. आसान शब्दों में कहें तो जिस तरह आप बैंक से लोन लेने पर इसके लिए  ब्याज चुकाते हैं, उसी तरह आरबीआई भी बैंकों से पैसे लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहन राशि (रिवर्स रेपो रेट) देता है. रेपो रेट जितना ज्यादा होगा, बैंकों को उतना ज्यादा फायदा मिलेगा. 

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आरबीआई ऐसा क्यों करता है

अर्थव्यवस्था में मनी सप्लाई को नियंत्र‍ित करने के लिए आरबीआई यह कदम उठाता है.

आप पर कैसे पड़ेगा असर

अगर रिवर्स रेपो रेट ज्यादा होगा, तो इससे बैंक आम आदमी को लोन देने में सख्ती बरत सकते हैं अथवा वे कम लोन देते हैं. दरअसल रिवर्स रेपो रेट बढ़ने से उन्हें आम आदमी को दिए गए लोन पर मिलने वाले ब्याज से ज्यादा फायदा मिलता है, तो वे लोने देना कम कर देते हैं.

कैश रिजर्व रेश‍ियो (CRR )

कैश रिजर्व  रेश‍ियो वह रेश‍ियो होता है, जिसके आधार पर बैंकों को कुछ पैसे आरबीआई के पास जमा रखने पड़ते हैं.

आप पर ऐसे पड़ता है असर

जब भी कैश रिजर्व  रेश‍ियो बढ़ता है, तो बैंक कम लोन देते हैं. दरअसल सीआरआर बढ़ने से उन्हें आरबीआई के पास ज्यादा पैसे रिजर्व में रखने पड़ते हैं. इससे बैंक कम कर्ज देते हैं और वह लेंडिंग रेट्स बढ़ा देते हैं. वहीं, जब  भी  सीआरआर में कटौती की जाती है, तो बैंकों पर ज्यादा कर्ज देने का दबाव बनता है.    

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