कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है. राहुल गांधी ने कहा है कि मोदी सरकार लोगों के लिए ज्यादा राहत पैकेज इसलिए नहीं देना चाहती, क्योंकि उसे यह डर है कि इससे भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग गिर जाएगी. यानी देश की रेटिंग बचाने के लिए सरकार लोगों को बचाने से डर रही है. आइए जानते हैं कि क्या है रेटिंग का यह मामला.
क्या कहा राहुल गांधी ने
राहुल गांधी ने कहा कि सरकार डर रही है कि गरीबों, मजदूरों को ज्यादा पैसा दे दिया तो हमारे देश की रेटिंग खराब हो जाएगी. न्याय योजना का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा, 'सरकार की सोच है कि अगर हम गरीबों को नकद राशि देते हैं तो यह हमारी क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित करेगा. प्रवासियों में निराशा की भावना है.'
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राहुल गांधी ने कहा कि मैं सरकार से आर्थिक मोर्चे पर सकारात्मक कार्य करने का अनुरोध करता हूं, सरकार ने जो पैकेज की घोषणा की है, उससे किसी की मदद नहीं होगी. सरकार की सोच कि अगर हम गरीबों को नकद राशि देते हैं तो यह हमारी क्रेडिट रेटिंग को प्रभावित करेगा. प्रवासियों में निराशा की भावना है.
गौरतलब है कि हाल में फिच और स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स दोनों रेटिंग एजेंसियों ने भारत के लिए इनवेस्टमेंट ग्रेड दिया है. लेकिन यह रेटिंग जंक रेटिंग से सिर्फ एक पायदान उपर है. दूसरी तरफ मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस एकमात्र ऐसी रेटिंग एजेंसी है है जिसने भारत की रेटिंग को जंक से दो पायदान उपर रखा है.
क्या होती है सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग
इंटरनेशनल एजेंसियां देशों की सरकारों की उधारी चुकाने की क्षमता का आकलन करती हैं. इसके लिए इकोनॉमिक, मार्केट और पॉलिटिकल रिस्क को आधार बनाया जाता है. इस तरह की रेटिंग यह बताती है कि क्या देश आगे चलकर अपनी देनदारियों को समय पर पूरा चुका सकेगा. यह रेटिंग टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक ग्रेड तक होती हैं. जंक ग्रेड को डिफॉल्ट श्रेणी में माना जाता है.
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कैसे तय होती है रेटिंग
एजेंसियां आमतौर पर देशों की रेटिंग आउटलुक रिवीजन के आधार पर तय होती है. एजेंसियां आमतौर देशों की रेटिंग को फ्यूचर एक्शन की संभावना के हिसाब से तीन कैटिगरी में बांटती हैं. ये कैटिगरी नेगेटिव, स्टेबल और पॉजिटिव आउटलुक हैं. आउटलुक रिवीजन निगेटिव, स्टेबल और पॉजिटिव होता है. जिस देश का आउटलुक पॉजिटिव होता है, उसकी रेटिंग के अपग्रेड होने की संभावना ज्यादा रहती है. पूरी दुनिया में स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (एसऐंडपी), फिच और मूडीज इन्वेस्टर्स सॉवरेन रेटिंग तय करती हैं.
स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स इनवेस्टमेंट ग्रेड वाले देशों को BBB- या उससे उची रेटिंग देती है. इसी तरह स्पेकुलेटिव या 'जंक' ग्रेड वाले देशों को BB+ या उससे कम रेटिंग.
इसी तरह मूडीज इनवेस्टमेंट ग्रेड वाले देशों को Baa3 या उससे उंची रेटिंग देती है. इसी तरह इसी तरह स्पेकुलेटिव देशों को Ba1 या इससे कम रेटिंग देती है.
क्या फर्क पड़ता है रेटिंग से
असल में कई देश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दुनियाभर के निवेशकों से कर्ज लेते हैं. यह निवेशक कर्ज देने से पहले उस देश की सॉवरन रेटिंग पर गौर करते हैं. ज्यादा रेटिंग पर कम जोखिम माना जाता है. इसलिए ज्यादा रेटिंग वाले देशों को कम ब्याज दरों पर कर्ज मिल जाता है. अगर कोई सरकार विदेशी बाजार से कर्ज नहीं भी लेती है तो रेटिंग गिरने का असर सेंटीमेंट पर पड़ता है. कम रेटिंग के कारण स्टॉक मार्केट से विदेशी निवेशकों के बाहर जाने की संभावना बनी रहती है. नए निवेश के बंद होने की आशंकाभी रहती. इसी तरह एक्सर्टनल कॉमर्शियल बॉरोइंग (ईसीबी) के जरिए रकम जुटाने वाले वित्तीय संस्थानों और कंपनियों की उधारी लागत बढ़ जाती है.
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पहले भी हुई थी चर्चा
कुछ दिनों पहले न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से सबसे पहले यह खबर दी थी कि मोदी सरकार कोरोना से निपटने के लिए राहत पैकेज पर 4.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं खर्च करना चाहती, क्योंकि उसे यह डर है कि ज्यादा खर्च करने से देश की सॉवरेन रेटिंग गिर जाएगी.
20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान
हालांकि 12 मई को पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज देने का ऐलान किया और इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लगातार पांच दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर करीब 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर दी. हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से लेकर तमाम आलोचकों ने कहा कि सरकार का राहत पैकेज पर वास्तव में खर्च 1.5 से 3 लाख करोड़ रुपये का ही है.