आज सुबह ही मैंने घर फ़ोन मिलाया, मै इधर से हैलो-हैलो करता रहा पर उधर से कोई आवाज ही नहीं आयी. फिर घर से फ़ोन आया तो भी हालत जस की तस रही. अपने तीसरे प्रयास में घर से बात कर पाया. दोस्तों से बात की तब पता चला कि ये उनके साथ भी होता है. ऑफिस में आया तो इत्तफाकन इसी पर बात हो रही थी और टीवी पर दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी इसी मुद्दे पर बात करते सुना तब पता चला कि मामला कॉल-ड्राप का है.
आखिर क्यों हो रहा है कॉल ड्राप ?
टेलीफोन कंपनियों का कहना है कि उनके पास पूरे स्पेक्ट्रम नहीं है. मंत्री जी कह रहे कि पर्याप्त स्पेक्ट्रम हैं. खैर स्पेक्ट्रम की बात न भी करे तो देश में मोबाइल टावर लगाने वाली कपंनियों के शीर्ष संगठन टाइपा (TAIPA) के प्रमुख उमंग दास का कहना है कि देश में सवा 6 लाख टावरों की जरूरत है पर अभी मात्र सवा 4 लाख टावर ही मौजूद हैं. अगर प्रति टावर 5 लाख का हिसाब भी लगाएं तो 10 हज़ार करोड़ रुपये तक के तत्काल निवेश की आवश्यकता है जो टेलीकॉम कपंनियों के मुनाफे के मुकाबले कुछ भी नहीं हैं.
कॉल ड्राप से आपको कितना नुकसान हो रहा हैं?
ट्राई के क्वार्टरली रिपोर्ट पढ़ी तब कुछ-कुछ गणित समझ में आने लगा कि किस तरह टेलीकॉम कंपनियां हम सभी को ठग रही हैं. भारत में 97 करोड़ से ज्यादा टेलीफोन उपभोक्ता है जिनमें 94 करोड़ मोबाइल यूज़र्स है. हम-आप इसी गणना का हिस्सा है. रिपोर्ट कहती कि हम एक दिन में औसतन 10 मिनट से ज्यादा बात करते हैं. और अगर मन लिया जाए पूरे दिन में आपका 1 कॉल ड्राप ही होता है और प्रति कॉल 10 पैसे (जो कि न्यूनतम हैं) ही देने पड़ते हैं. तो भी सालाना तकरीबन तीन हज़ार करोड़ से भी ज्यादा का मुनाफा टेलीफोन कपनियां सिर्फ कॉल ड्राप से उठा रही हैं. ये हम सभी को अपनी जेब से चुकाना पड़ रहा है.
बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी फिसड्डी?
कॉल ड्राप की शिकायत सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि हमारे पडोसी देशों में भी हैं. पर वंहा ना तो लोग हमारी तरह शांत बैठे और न उनकी दूरसंचार विनियामक संस्था ही और शायद इसी कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान की टेलीकॉम कंपनियां हर कॉल ड्राप पर एक फ्री कॉल देती हैं.
ऐसे में सवाल ये है कि भारत में कॉल ड्राप के लिए ऐसे प्रावधान क्यों नहीं हैं ?