मंगलवार को देश के शेयर बाजार ताश के पत्तों की तरह ढह गए. मुंबई शेयर सूचकांक 850 अंक से भी ज्यादा गिर गया जबकि 50 शेयरों वाला निफ्टी 251 अंक यानी 3 प्रतिशत तक जा गिरा. बताया गया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट के कारण ऐसा हुआ.
कच्चे तेल की कीमतें लगभग छह महीनों में गिरकर आधी रह गई हैं. इससे तेल-गैस की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई. दूसरी ओर भारत में निवेश कर रहे संस्थागत निवेशकों यानी एफआईआई ने भारतीय बाजारों से 1,570 करोड़ रुपये निकाल लिए. यह रकम उनके लगाई हुई रकम से कहीं ज्यादा है. पहले तो यह समझा जा रहा था कि कच्चे तेल की कीमतें गिरने से भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को फायदा होगा और भारत को तो 100 अरब डॉलर तक की बचत होगी क्योंकि हम अपनी जरूरत का 75 प्रतिशत तेल आयात करते हैं. लेकिन अब इसका दूसरा पहलू दिख रहा है कि शेयर बाजार इसके धक्के से लुढ़क गए हैं.
दरअसल यह गिरावट कई तत्वों के मिलेजुले कारणों का परिणाम है. यह सच है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में तेजी दिख रही है लेकिन यूरोप में फिर से चिंताओं के बादल दिख रहे हैं. ग्रीस की अर्थव्यस्था एक बार फिर डगमगा गई है और वहां चुनाव के बाद पता चलेगा कि आगे क्या होना है. यूरोप-जापान में अर्थव्यवस्थाओं के डगमगाने से भारत पर भी असर पड़ता है क्योंकि हमारा एक्सपोर्ट प्रभावित होता है.
इसके अलावा अगर अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ी तो विदेशी निवेशक उस ओर रुख कर सकते हैं. भारत में नई सरकार के आने के बावजूद ऐसा कुछ बड़ा नहीं हुआ है कि विदेशी निवेशक भारतीय परियोजनाओं में पैसा लगाएं. अब तक यहां से ऐसे ठोस संकेत नहीं गए हैं कि यहां बड़े पैमाने पर निवेश करके लाभ उठाया जा सके. लेकिन दूसरी ओर बहुत से तथ्य ऐसे भी हैं जो हमें कहीं न कहीं से आश्वस्त करते हैं.
कच्चे तेल की गिरती कीमतों से बेशक शेयर बाजार पर असर पड़ा लेकिन यह तात्कालिक है और दीर्घकाल में इसका फायदा अर्थव्यवस्था को होगा. इससे राजस्व घाटे को नियंत्रण में रखने में मदद मिलेगी और रुपया स्थिर होगा. दूसरी बात यह है कि बेशक यूरोप में परेशानी है लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तेजी का फायदा हमें मिलेगा क्योंकि हम सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट वहां ही करते हैं.
एक्सपोर्ट बढ़ने से यहां की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. एक और बड़ी बात जो मोदी सरकार के लिए बड़ी राहत है वह है खाने-पीने की वस्तुओं की घटती कीमतें. इससे लोगों के पास दूसरी चीजों पर खर्च करने के लिए पैसे आएंगे. यह कंज्यूमर इंडस्ट्री के लिए बड़ा प्रोत्साहन होगा जो इस समय मांग की कमी से जूझ रहे हैं. लेकिन इन सबसे बड़ी बात है कि इस बड़ी गिरावट ने स्टॉक मार्केट को विदेशी निवेशकों के धन के मोह से दूर रहने का एक जबर्दस्त सबक दिया है.
सेंसेक्स की इस गिरावट में ऐसा कुछ नहीं है कि इसका दीर्घकालिक मतलब हो. यह तात्कालिक मामला है और जो दूर की सोचते हैं उनके लिए मैदान खुला है.