10 जनवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान में बीजेपी की रैली के दौरान जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने माइक संभाला तो उन्होंने एक ऐसा 'चतुर' दावा किया, जिससे राजनीति के जानकार मुस्कुराने पर मजबूर हो गए. दरअसल, उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में कई बार डीजल-पेट्रोल की कीमतें घटाईं.
यह सही है कि तेल की कीमत पिछले जून से अब तक 55 फीसदी कम हो चुकी है. 2009 की मंदी के बाद तेल की
कीमत अपने न्यूनतम स्तर पर है. फिर सोशल मीडिया पर यह सवाल उछला कि डीजल-पेट्रोल कीमतें बाजार के हवाले होने के बाद क्या वाकई कोई सरकार उनकी कीमतें घटा सकती है या उसका श्रेय ले सकती है? हम आपको बताते हैं, वे पांच वजहें, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें कम हो रही हैं और इसका असर भारत समेत पूरे एशिया पर पड़ रहा है.
1. अमेरिका में तेल का उत्पादन पिछले 6 सालों में दोगुना हुआ है. ऐसे में तेल आयात करने वाले देशों के सामने विकल्प के तौर पर अमेरिका भी उभरा है.
2. सउदी अरब, नाइजीरिया और अलजीरिया जैसे देश अब यूएस के अलावा एशियाई बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा करने उतर आया है. जिसके चलते तेल उत्पादकों लगातार तेल की कीमतें कम कर रहे हैं.
3. यूरोप और विकासशील देशों में कम ईंधन की गाड़ियों के इस्तेमाल पर भी जोर दिया जाने लगा है. जिससे तेल की खपत और मांग भी कम हुई है. पहले की तुलना में कुछ देशों में लोग अब सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल पसंद करने लगे हैं.
4. सउदी की तेल कंपनियों के अधिकारियों के मुताबिक, अगर तेल की कीमतों को वापस बढ़ाने के लिए तेल उत्पादन कम करेंगी तो इससे बाजार की प्रतिस्पर्धा में वो पिछड़ सकते हैं. जिसके चलते शेयर बाजार में कंपनी को घाटा हो सकता है.
5. तेल की कीमतें कम होने के पीछे एक वजह सउदी तेल कंपनियों के रूस और ईरान को नुकसान पहुंचाना भी बताया जाता है. जिसके पीछे यूएस की इस मंशा को जिम्मेदार माना जा रहा है कि वो इन दो देशों में तेल की कीमतें कम करवाकर उसका आर्थिक और राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है. लेकिन इस दावे के पीछे कोई तार्किक सच्चाई नहीं है. यह सिर्फ एक थ्योरी ही है.