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टाटा नैनो की ब्रां‍डिंग ही गलत, बुरे दिनों से पार पाना मुश्किल

टाटा मोटर्स की छोटी कार नैनो एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है, जहां उसके बारे में कंपनी को कोई बड़ा निर्णय लेना होगा. टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने की योजना के तहत निर्मित इस कार ने खूब तहलका मचाया, लेकिन बिक्री के मामले में यह कोई चमत्कार नहीं कर पाई और अब इसके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं.

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टाटा मोटर्स की छोटी कार नैनो एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई है, जहां उसके बारे में कंपनी को कोई बड़ा निर्णय लेना होगा. टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने की योजना के तहत निर्मित इस कार ने खूब तहलका मचाया, लेकिन बिक्री के मामले में यह कोई चमत्कार नहीं कर पाई और अब इसके अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं.

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नामी गिरामी ब्रैंड स्ट्रेटिजिस्ट इसके भविष्य और अस्तित्व पर भी सवाल उठाने लगे हैं. अंतरराष्‍ट्रीय ब्रैंड स्ट्रेटिजिस्ट जैक ट्राउट ने दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस में कहा कि इसे बचाना अब मुश्किल है क्योंकि इसकी ब्रांडिंग ही गलत हुई. सस्ती कार का नाम देने से ग्राहक इससे दूर हो गए, क्योंकि इस देश में लोग कारें स्टेटस दिखाने के लिए खरीदते हैं. यहां कारों से लोगों का सम्‍मान जुड़ा हुआ है. वे नहीं चाहते कि उनके पड़ोसी उनकी सस्ती कार देखें. उन्होंने कहा कि नैनो को एक चीप कार के रूप में स्थापित करना एक गलती थी.

रतन टाटा ने एक लाख रुपये कीमत पर इस कार को बनाकर यह उम्मीद ज़ाहिर की थी कि हर कोई इसे खरीद लेगा. इस कार की सारी दुनिया में इंजीनियरिंग के उदाहरण के रूप में प्रशंसा हुई, लेकिन यह कभी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी और अब इसकी औसतन बिक्री 2,500 प्रति माह पर जा पहुंची है. इसके लिए कंपनी ने गुजरात के आणद में इतना बड़ा प्लांट लगाया. इसी कार के प्लांट के लिए ज़मीन देकर नरेन्द्र मोदी ने देश के बड़े कारोबारियों में अपना सिक्का जमाया. लेकिन अब इतने बड़े प्लांट में हर महीने महज 2500 कारें बनाना कंपनी को घाटा पहुंचा रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि जून, जुलाई और अगस्त में महीनों में हर महीने लगभग 2,000 नैनो कारें बिकीं.

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कंपनी ने इस कार को बेचने के लिए तमाम प्रयास किए. ईजी फाइनेंस की सुविधा भी दी लेकिन इस कार की बिक्री नहीं बढ़ी. कंपनी को आशा थी कि छोटे शहरों और गांवों में यह कार ज्यादा बिकेगी, क्योंकि वहां लोग मोटर साइकिल और स्कूटरों से आगे बढ़कर छोटी कार खरीदेंगे लेकिन वहां यह कार नहीं बिकी. उल्टे शहरों में लोगों ने इसे दूसरी कार के रूप में अपना लिया. यानी जिसके पास पहले से एक कार थी, उसने शौकिया यह कार खरीदी. कंपनी ने अक्टूबर महीने में नैनो का सीएनजी वैरिएंट भी पेश किया, जिसकी कीमत इस नैनो से 35,000 रुपये ज्यादा थी, लेकिन यह कार भी कोई खास जलवा नहीं दिखा पा रही है.

अब कंपनी इसके डीजल वैरिएंट को पेश करने की तैयारी में है और हो सकता है कि अगले साल ऑटो फेयर में इसका एक मॉडल पेश किया जाए. शायद यही कारण है कि टाटा मोटर्स ने फिर से सिंगूर में नैनो प्लांट लगाने की इच्छा जताई है. उसने सुप्रीम कोर्ट में अपने वकील हरीश साल्वे के जरिये यह बात कही है. उन्होंने शीर्ष अदालत को बताया कि कंपनी नैनो प्लांट के विस्तार के इरादे से वह जमीन अपने पास रखना चाहती है.

फिलहाल तो कंपनी इसका एक बेहतर मॉडल शीघ्र ही पेश करेगी, जिस पर वह काम कर रही है. इस कार के आगे और पीछे के हिस्से को और बेहतर बनाया गया है.

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