साल 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोकस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने पर रहा है. सरकार लगातार एफडीआई के जरिये निवेश को बढ़ाकर से अर्थव्यवस्था में मजबूती लाने की कोशिश में जुटी है. जिसमें कोरोना संकट के बीच भी सरकार को इस मोर्चे पर कामयाबी मिली है.
दरअसल, FDI आर्थिक विकास का एक प्रमुख हिस्सा है. सरकार का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वह एक सक्षम और निवेशकों के अनुकूल एफडीआई नीति लागू करे. यह सब करने का मुख्य उद्देश्य एफडीआई नीति को निवेशकों के और अधिक अनुकूल बनाना तथा देश में निवेश के प्रवाह में बाधा डालने वाली नीतिगत अड़चनों को दूर करना है.
पिछले 6 वर्षों के दौरान इस दिशा में उठाए गए कदमों के परिणाम से देश में FDI तेजी से बढ़ा है. एफडीआई के उदारीकरण और सरलीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई से संबंधित सुधार किए हैं.
एफडीआई में नीतिगत सुधारों, निवेश सुगमता और व्यापार करने में आसानी के मोर्चों पर सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों की वजह से देश में एफडीआई का प्रवाह बढ़ा है. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के क्षेत्र में निम्नलिखित रुझान वैश्विक निवेशकों के बीच एक पसंदीदा निवेश गंतव्य के तौर पर इसकी स्थिति की पुष्टि करते हैं.
पिछले 6 वर्षों की अवधि (2014-15 से 2019-20) के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 55 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. आंकड़ों के मुताबिक 2008-14 में 231.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2014-20 में 358.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुआ.
एफडीआई इक्विटी निवेश भी 2008-14 के दौरान 160.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. जिसमें (2014-20) के दौरान 57 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, यह बढ़कर 252.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2014-20) में हो गया.
वित्तीय वर्ष 2020-21 (अप्रैल से अगस्त- 2020) के दौरान 35.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कुल एफडीआई प्राप्त हुआ है. यह किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों में सबसे अधिक है और 2019-20 के पहले पांच महीनों (31.60 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में 13 फीसदी अधिक है.