कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार के लिए पहली बार जीडीपी के मोर्चे पर अच्छी खबर आई है. वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों ने पिछले तीन दशक के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. GDP किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे सटीक पैमाना है.
दरअसल, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में रिकॉर्ड GDP ग्रोथ रेट रिकॉर्ड 20.1 फीसदी रही है. जो कि 1990 से लेकर अब तक की यह किसी एक तिमाही में आई सबसे बड़ी ग्रोथ है. इससे पहले के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. जीडीपी में तेज रिकवरी से इकोनॉमी की गाड़ी पटरी पर लौटने के संकेत मिल रहे हैं.
FY22 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की रफ्तार 20.1 फीसदी रही है, इस ग्रोथ की वजह लो बेस इफेक्ट है. क्योंकि पिछले साल कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से पूरे देश में आर्थिक गतिविधियां ठप थीं. जिससे पिछले साल की पहली तिमाही में निगेटिव 23.9 फीसदी ग्रोथ रेट थी.
गौरतलब है कि कोरोना संकट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा लगा था. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी. उसके बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 फीसदी की गिरावट आई. जबकि तीसरी तिमाही में 0.4% जीडीपी रही. जबकि चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी ग्रोथ रेट 1.6 फीसदी दर्ज की गई. इस तरह से वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट -7.3% फीसदी रही.
क्या होती है जीडीपी?
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया.
जीडीपी ग्रोथ की अच्छी बात
जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर काफी असर पड़ता है. जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है तो बेरोजगारी कम रहती है. लोगों की तनख्वाह बढ़ती है. कारोबार जगत अपने काम को बढ़ाने के लिए और मांग को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की भर्ती करता है, यानी तेजी से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं.
जीडीपी में गिरावट से बढ़ जाती है गरीबी
अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी मानी जाती है. जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्त पड़ जाती है. आर्थिक सुस्ती की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है. वहीं लोगों की बचत और निवेश भी कम हो जाता है.
जीडीपी का इतिहास
जीडीपी को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक बुक सिस्टम ऑफ नेशनल एकाउंट्स (1993) में तय किया गया है, जिसे SNA93 कहा जाता है. इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD), संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों ने तैयार किया है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है.