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यूटिलिटी

म्यूचुअल फंड के निवेश में अक्सर लोग करते हैं ये पांच बड़ी गलतियां, आप बच कर रहें

म्यूचुअल फंडों में निवेश की दी जाती है सलाह
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शेयर बाजार से फायदा उठाने का म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) सबसे सुरक्ष‍ित और आसान रास्ता माना जाता है. शेयर बाजार में निवेश के लिए काफी रिसर्च और जानकारी हासिल करने की जरूरत होती है, इसलिए एक्सपर्ट नए लोगों को सलाह देते हैं कि सीधे शेयर बाजार में उतरने की जगह म्यूचुअल फंडों में निवेश कर शेयर बाजार (Share Market) से फायदा उठाने की कोश‍िश करनी चाहिए. (फाइल फोटो) 
 

थोड़ी-थोड़ी रकम लेकर शेयर बाजार में लगाते हैं
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म्यूचुअल फंड ऐसी योजनाएं होती हैं जिनमें कोई फंड हाउस (fund house) बहुत से निवेशकों से थोड़ी-थोड़ी रकम लेकर उसे शेयर बाजार या डेट साधनों में लगाते हैं और निवेशकों को अच्छा रिटर्न (good return) दिलाने की कोश‍िश करते हैं. इसके बदले फंड हाउस मामूली खर्च या फीस वसूल करते हैं. म्यूचुअल फंडों में निवेश करते समय अक्सर लोग पांच तरह की ऐसी गलतियां करते हैं जो बहुत कॉमन हैं. कहीं आप भी तो ऐसी गलती नहीं कर रहे? आइए जानते हैं कि ऐसी किन गलतियों से आपको बचकर रहनी चाहिए. (फाइल फोटो) 

पोर्टफोलियो को विविधता नहीं मिलती
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सेक्टोरल फंड का चुनाव: बहुत से लोग सिर्फ ऐसे सेक्टोरल म्यूचुअल फंड में पैसा लगाकर फुर्सत पा लेते हैं जो किसी एक खास सेक्टर के शेयरों में ही निवेश करते हैं, जैसे कि फार्मा, बैंकिंग, आईटी आदि. कई सेक्टोरल फंड का प्रदर्शन साल-दो साल में बहुत शानदार हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में देखें तो तस्वीर कुछ और हो सकती है.असल में सेक्टोरल फंड में जिस तेजी से बढ़त होती है उतनी तेजी से ही इसमें गिरावट भी आ सकती है. इसलिए किसी एक सेक्टर आधारित फंड में सिर्फ अपने निवेश को सीमित करना बड़ी गलती साबित हो सकती है. इससे आपके पोर्टफोलियो को विविधता नहीं मिलती. छोटे निवेशकों के लिए यह जरूरी सलाह है कि वे ऐसे फंड में पैसा लगाएं जो दो-तीन सेक्टर के शेयरों में निवेश करता हो. (फाइल फोटो) 

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एनएवी के कम या ज्यादा होने से अक्सर रिटर्न पर असर नहीं पड़ता
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लो एनएवी का मतलब ज्यादा यूनिट और ऊंचा रिटर्न: अक्सर लोग यह सोचते हैं कि किसी म्यूचुअल फंड का एनएवी यानी नेट एसेट वैल्यू (Net Asset Value) यदि कम है तो वह निवेश का अच्छा विकल्प है, क्योंकि इससे आपको ज्यादा यूनिट मिल जाता है और ज्यादा प्रॉफिट मिल सकता है. लेकिन सच तो यह है कि यह बात हमेशा सही नहीं होती. (फाइल फोटो: Getty Images) 

 

 रिटर्न पर असर नहीं
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मान लीजिए कोई म्यूचुअल फंड A है, जिसका एनएवी 100 रुपये है और कोई म्यूचुअल फंड B है, जिसका एनएवी सिर्फ 10 रुपये है. तो कोई व्यक्ति 10,000 रुपये में फंड A का 100 यूनिट खरीद सकता है. लेकिन इसी 10,000 रुपये में वह फंड B का 1000 यूनिट खरीद सकता है. एक साल बाद मान लीजिए दोनों फंड में 30 फीसदी की बढ़त हो जाती है. तो फंड A का एनएवी हो गया 130 रुपये और फंड B का एनएवी 13 रुपये हो गया. अब अगर व्यक्ति अपने फंड का रीडेम्पशन यानी पैसा निकालना चाहता है तो फंड A से उसे मिलेंगे  13,000 रुपये (100 X 130) और फंड  B से भी उसे मिलेंगे 13,000 (1000 X 13). यानी एनएवी के कम या ज्यादा होने से उसे रिटर्न पर कोई असर नहीं पड़ा. 

लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए
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बहुत ज्यादा म्यूचुअल फंड खरीद लेना: बहुत से लोग 10 से 15 म्यूचुअल फंड में एक साथ निवेश कर देते हैं. उनके सामने जो भी म्यूचुअल फंड आता है वे उसमें पैसा लगा देते हैं. इसका नुकसान यह होता है कि उन्हें बहुत सी कंपनियों का एवरेज रिटर्न ही मिल पाता है. यानी इन सभी फंडों के निवेश वाले कुछ शेयर बढ़ते हैं, तो कुछ घटते हैं. इस तरह औसत रिटर्न हासिल होता है. इससे अच्छा तो यह है कि आप किसी इंडेक्स फंड में पैसा लगा दें. म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय आपका लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए और अपने लक्ष्य के मुताबिक ही आपको निवेश करना चाहिए. (फाइल फोटो: Getty Images) 

 एक्सपेंस रेश्यो महत्वपूर्ण है
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लो एक्सपेंस रेश्यो वाले म्यूचुअल फंड में निवेश करना: बहुत से लोग यह सोचते हैं कि यदि किसी म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेश्यो कम है, तो उस फंड में निवेश करना सही है. एक्सपेंस रेश्यो महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन किसी म्यूचुअल फंड को चुनने का आधार सिर्फ यही नहीं होना चाहिए. किसी म्यूचुअल फंड का चुनाव करते समय उसके पास्ट रिकॉर्ड, उसके मैनेजर के प्रदर्शन और रिटर्न को देखना चाहिए. यदि ये सब बेहतर है तो ज्यादा एक्पेंस रेश्यो रहने पर भी आपको नुकसान नहीं होगा. यानी थोड़ा ज्यादा एक्सपेंश रेश्यो लेकिन अच्छे रिटर्न वाले म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना सही है, बजाय इसके कि कम एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड में पैसा लगाकर औसत रिटर्न हासिल किया जाए.(फाइल फोटो: PTI) 

कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ता है
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म्यूचुअल फंड को जल्दी-जल्दी बेचना: म्यूचुअल फंडों के मामले में अक्सर लोग एक गलती यह करते हैं कि उन्हें जल्दी-जल्दी बेचते रहते हैं. बिना किसी वजह से किसी पुराने म्यूचुअल फंड को बेचकर नए म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना अच्छी सोच नहीं है. लॉन्ग टर्म के फायदों के लिहाज से यह नुकसानदेह है. बार-बार म्यूचुअल फंड की बिक्री से आपको कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ता है. यानी आपके रिटर्न में कटौती हो जाती है. इसलिए बेहतर यही है कि अच्छे से रिसर्च कर किसी म्यूचुअल फंड में लॉन्ग टर्म के लिए पैसा लगाएं. आप जितना लंबे समय तक निवेश रखेंगे रिटर्न उतना ही बेहतर हो सकता है. (फाइल फोटो) 

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