अक्सर बैंक अपने ग्राहकों को मैसेज के जरिये आगाह करता है कि वे अपने क्रेडिट और डेबिट कार्ड से जुड़े डिटेल्स किसी के साथ शेयर नहीं करें. खासकर सीवीवी (CVV) और ओटीपी नंबर शेयर नहीं करने की सलाह दी जाती है. आए दिन क्रेडिट और डेबिट कार्ड के साथ फर्जीवाड़े के मामले सामने आत रहते हैं. (Photo: Getty Images)
सुरक्षा के लिहाज से CVV नंबर बेहद अहम है. छोटी-सी चूक से बैंक अकाउंट खाली हो सकता है. इसलिए आरबीआई की ग्राहकों को सलाह रहती है कि डेबिट या क्रेडिट कार्ड मिलते ही सबसे पहले अपने CVV नंबर को याद कर लें. याद करने के बाद हो सके तो CVV नंबर को कार्ड से मिटा दें. इससे फ्रॉड की संभावना कम हो जाती है. (Photo: Getty Images)
ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का पूरा खेल तीन डिजिट वाला CVV नंबर पर आधारित होता है. दरअसल, जब आप घर बैठे शॉपिंग के साथ-साथ कई तरह के पेमेंट करते हैं, और इसके लिए क्रेडिट या डेबिट का इस्तेमाल करते हैं. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के दौरान CVV और CVC कोड का इस्तेमाल किया जाता है. बिना इसके ट्रांजैक्शन को रिजेक्ट कर दिया जाता है. (Photo: Getty Images)
क्या है CVV या CVC कोड?
लेकिन आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि CVC कोड क्या होता है और ये क्यों महत्वपूर्ण है? यह एक तरह का कोड होता है, जो क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड के पिछले हिस्से में होता है. यह नंबर आपको अक्सर ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करते समय पूछा जाता है. CVV की फुल फॉर्म (Card Verification Value) और CVC की फुल फॉर्म (Card Verification Code) होती है.
CVV एक ऐसा नंबर है, जो डिजिटल ट्रांजैक्शन के समय इस बात की पुष्टि करता है कार्डधारक ही इस पेमेंट के लिए जिम्मेदार है. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के दौरान इसका इस्तेमाल होते ही पेमेंट कंफर्म हो जाता है. CVV भी ओटीपी की तरह ही एक सिक्योरिटी लेयर है, जो आपकी पेमेंट को सुरक्षित रखता है. हर वित्तीय संस्थान अपने की तरफ से ग्राहकों को सीवीवी (CVV) कोड दिया जाता है. (Photo: Getty Images)
रेल टिकट बनाते समय या Paytm समेत तमाम ऐप्स के जरिये ट्रांजैक्शन के दौरान जब आप अपने कार्ड की डिटेल भरते हैं तो आपसे CVV कोड पूछा जाता है. अगर आप ये कोड नहीं भरते हैं तो पेमेंट अधूरी ही रह जाती है. यानी बिना CVV किसी तरह का ट्रांजैक्शन संभव नहीं है. (Photo: Getty Images)
CVV कोड क्यों जरूरी?
वैसे तो CVV कोड सिर्फ सिक्योरिटी के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये कार्ड के पिछले हिस्से में होता है और जब भी हम कार्ड को कहीं सार्वजनिक जगहों पर निकालते हैं तो उसका ऊपरी भाग सामने होता है, जिसमें कार्ड का नंबर और एक्सपायरी डेट अंकित होता है. ऐसे में CVV कोड कार्ड के पिछले हिस्से में होने की वजह से लोग ठगी के शिकार होने से बच जाते हैं.
CVV का इतिहास
डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड पर कुछ कोड होते हैं, जिन्हें कार्ड सिक्योरिटी कोड (CSC) कहते हैं. इसका अविष्कार 1995 में यूके में माइकल स्टोन ने किया था. CSC की जांच होने के बाद 'एसोसिएशन ऑफ पेमेंट क्लीयरिंग सर्विसेज' ने इस सिक्योरिटी कांसेप्ट को अपना लिया. शुरुआती दौर में CVV कोड 11 अंकों के होते थे. लेकिन बाद में इसे 3 से 4 अंकों तक रखा गया.