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यूटिलिटी

केंद्र सरकार की इस योजना से बदलेगी गांव की तस्वीर! 24 अप्रैल से देशभर में लागू

क्या है स्वामित्व योजना?
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अगर आसान शब्दों में समझा जाए तो इस योजना का मकसद ग्रामीण भारत में रिहायशी इलाकों का सर्वेक्षण कराकर ग्रामीण लोगों को उनकी रिहायशी संपत्ति का मालिकाना हक देना है. उन्हें उनकी संपत्ति के दस्तावेज सौंपना है ताकि उनकी रिहायशी संपत्ति एक वित्तीय एसेट के तौर पर काम कर सके.
(Photos: File/PTI)

लैंड रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण
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यूं तो अधिकतर राज्यों में जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण हो चुका है. लेकिन स्वामित्व योजना का एक लक्ष्य ग्रामीण विकास की बेहतर योजनाएं बनाने के लिए सटीक लैंड रिकॉर्ड तैयार करना है. ड्रोन के डेटा को एनालिसिस करके तैयार होने वाले मानचित्र को कई अन्य विभाग अपने उपयोग में ला सकते हैं और गांव के विकास की उचित योजनाएं बना सकते हैं.

 संपत्ति ऋण लेने में मदद
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सरकार की इस योजना से ग्राम पंचायतों और राज्य सरकारों को संपत्ति कर के निर्धारण में मदद मिलेगी. वहीं ग्रामीण आबादी इन दस्तावेजों के माध्यम से बैंक या अन्य वित्तीय संयस्थाओं से संपत्ति पर मिलने वाले ऋण का फायदा उठा सकेगी. इससे गांव के लोगों को महाजनों के जंजाल से भी मुक्ति दिलाने में मदद मिलेगी और वह सस्ते ब्याज पर घर के बदले ऋण पा सकेंगे.

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मालिकाना हक का फायदा
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इस योजना का ग्रामीणों को सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि उनके पास उनकी रिहायशी संपत्ति का मालिकाना हक होगा. इससे उन्हें अपनी संपत्ति को कई तरह से उपयोग में लाने की छूट मिलेगी. साथ ही साथ उनके जमीन के दस्तावेजों का भी डिजिटलीकरण हो जाएगा जिससे भविष्य में खरीद-फरोख्त इत्यादि में मदद मिलेगी.

कम होंगे जमीन के विवाद
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अक्सर गांवों में जमीन झगड़े का कारण बनती है. स्वामित्व योजना में लोगों को उनकी संपत्ति से जुड़े सही दस्तावेज मिल जाएंगे तो इससे संपत्ति से जुड़े विवाद और कानूनी मामले कम होंगे. इससे निचली अदालतों का बोझ भी कम होगा और ग्रामीण इलाकों में आपसी रंजिश, जमीन के झगड़े कम होंगे.

ड्रोन से सर्वेक्षण का काम
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सरकार की स्वामित्व योजना को लागू करने का काम पंचायती राज मंत्रालय को दिया गया. कोविड के हालातों को देखते हुए मंत्रालय ने ड्रोन से सर्वेक्षण कराकर लोगों की संपत्ति का मानचित्र तैयार कराया और उसके बाद उन्हें संपत्ति के दस्तावेज सौंपने का काम किया गया.

मिलेगा घर का डिजिटल पता
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स्वामित्व योजना में ड्रोन से सर्वेक्षण कराने से पहले गांव में बने हर घर की जियो टैगिंग की जाती है और प्रत्येक घर का क्षेत्रफल दर्ज किया जाता है. उसके बाद प्रत्येक घर को एक विशेष आईडी दी जाती है, यही उस घर का पता होता है. इस प्रक्रिया के माध्यम से लाभार्थी का पूरा पता डिजिटल भी हो जाता है. 

सर्वेक्षण से पहले दी जाती है सूचना
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जिस गांव में सर्वेक्षण होने वाला होता है, वहां पहले से इसकी सूचना दे दी जाती है. ताकि जो लोग गांव से बाहर हैं वो सर्वेक्षण वाले दिन वहां उपस्थित रहें. बाद में भी किसी तरह की आपत्ति दर्ज कराने के लिए 15 से 40 दिन का समय दिया जाता है.

मालिक की निगरानी में होता है सर्वेक्षण
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सर्वेक्षण के दौरान ग्राम पंचायत के सदस्य, राजस्व विभाग के अधिकारी, गांव के जमीन मालिक तथा पुलिस की टीम मौजूद रहती है. ताकि लोगों की आपसी सहमति से उन्हें अपने दावे की जमीन प्रदान की जा सके. इसके पश्चात दावे वाली जमीन पर निशानदेही की जाती है. जमीन मालिक चूना लगाकर अपने क्षेत्र पर घेरा बना लेता है. इसकी तस्वीर ड्रोन से खींची जाती है. ड्रोन के द्वारा यह प्रक्रिया गांव का चक्कर लगाकर पूरी की जाती है. इसके पश्चात कंप्यूटर की सहायता से जमीन का नक्शा तैयार किया जाता है.

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देश में 38,206 गांव का हो चुका है ड्रोन सर्वेक्षण
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योजना के तहत 21 अप्रैल 2021 तक देश के 38,206 गांव में ड्रोन से सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है और इतने ही गांव में लोगों की संपत्ति पर चूने से पैमाइश का काम भी पूरा हो चुका है. जबकि 3315 गांव में लोगों को संपत्ति के कार्ड बांटे गए हैं. 24 अप्रैल से अब इस योजना को प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में शुरू कर रहे हैं. उस दिन राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस भी है. पीएम मोदी योजना के विस्तार के मौके पर लाभार्थियों से बातचीत भी करेंगे और उन्हें डिजिटल तरीके से संपत्ति के दस्तावेज भी सौंपेंगे.

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