रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य (Viral Acharya) के महंगाई के लिए अंबानी-अडानी, टाटा-बिड़ला को जिम्मेदार ठहराने वाले दावे को SBI के ग्रुप चीफ इकॉनमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष (Soumya Kanti Ghosh) ने खारिज कर दिया है. दरअसल, देश बीते 1 साल से ज्यादा समय से महंगाई को लेकर कड़ी मुश्किलों का सामना कर रहा है. इन चुनौतियों के बीच आचार्य ने कहा था कि देश में महंगाई (Inflation) बढ़ने की बड़ी वजह देश की 5 बड़ी कंपनियां हैं. उन्होंने रिलायंस ग्रुप, टाटा ग्रुप, आदित्य बिड़ला ग्रुप, अडानी ग्रुप और भारती टेलीकॉम जैसी कंपनियों को देश में बढ़ती महंगाई की वजह बताया था.
विरल आचार्य ने क्या कहा था?
विरल आचार्य का दावा था कि रिटेल, रिसोर्सेज और टेलीकम्युनिकेशन सेक्टर में इन कंपनियों के पास कीमतों को तय करने की ताकत है. ऐसे में अगर इन कंपनियों के मुकाबले में इन सेक्टर्स में कुछ और कंपनियां खड़ी हो जाएं तो इनका एकाधिकार खत्म हो सकता है. ऐसे में दाम तय करने की इनकी क्षमता को घटाने के लिए विरल आचार्य ने इन 5 दिग्गज कंपनियों को तोड़ने का सुझाव दिया था.
सौम्य कांति घोष ने विरल आचार्य का सुझाव खारिज किया
इस बीच RBI के डिप्टी गवर्नर रहे विरल आचार्य के इस सुझाव को एसबीआई के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने खारिज कर दिया है. सौम्य कांति घोष के मुताबिक ये कहना सही नहीं है कि कुछ कंपनियों के हाथ में दाम तय करने का उनके सेक्टर में एकाधिकार है. महंगाई बढ़ने के जो कारण हैं उनका, इन 5 बड़ी कंपनियों से कोई सीधा रिश्ता नहीं है. ऐसे में विरल आचार्य का इन कंपनियों को तोड़कर इनके मुकाबले की दूसरी कंपनियां खड़ी करने का सुझाव ठीक नहीं है.
आखिर क्यों बढ़ी महंगाई?
सौम्य कांति घोष के मुताबिक कोरोना काल में महंगाई बढ़ने की वजह सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स की समस्याएं रही हैं. जैसे ही कोरोना का खतरा घटा तो उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सामानों की कीमतों में तेजी आई है. ऐसे में ये कहना एकदम गलत है कि कंपनियों की दाम तय करने की ताकत महंगाई में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है. यानी कंपनियां कीमतें तय नहीं करती हैं और इनकी कार्यप्रणाली देश में महंगाई की वजह नहीं है. घोष का कहना है कि खुदरा महंगाई के लिए खाद्य महंगाई जिम्मेदार है, कोर इंफ्लेशन नहीं.
आचार्य ने कार्यकाल खत्म होने से पहले दिया इस्तीफा
RBI के डिप्टी गवर्नर के पद पर कार्यरत रहे विरल आचार्य ने जून 2019 में अपना कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था. विरल आचार्य मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के अहम सदस्य थे और कई मौकों पर उन्होंने आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के फैसलों से असहमति जताई थी. महंगाई के लिए 5 दिग्गज कंपनियों को जिम्मेदार बताने पर उन्होंने तर्क दिया था कि कच्चे माल की कीमत में कमी का फायदा पूरी तरह भारतीय ग्राहकों को नहीं मिलेगा क्योंकि ये कंपनियां मेटल, कोक, रिफाइंड पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ रिटेल ट्रेड और टेलिकम्युनिकेशंस को कंट्रोल करती हैं. ऐसे में उन्होंने सुझाव दिया है कि भारत को मैक्रोइकनॉमिक बैलेंस को बहाल करने की जरूरत है. उन्होंने आगाह किया है कि कि कंपनियों की बढ़ती ताकत से महंगाई के लगातार उच्च स्तर पर बने रहने का जोखिम है.