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तीर-धनुष नहीं, अब हाथों में कलम-किताब

कई दशकों तक बीहड़ के बाशिंदे और तीर-कमान के साथ जंगलों में अपना जीवन बिताने वाले कोरबा और बिरहोर के जनजाति समुदाय के लोगों के जीवन में एक नया बदलाव आने लगा है. सामान्य परिवारों से अलग जीवनशैली में जीने वाला छत्तीसगढ़ का कोरबा समुदाय अब एक नई दिशा की ओर चल पड़ा है.

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किताबों से बदल रहा है जीवन
किताबों से बदल रहा है जीवन

कई दशकों तक बीहड़ के बाशिंदे और तीर-कमान के साथ जंगलों में अपना जीवन बिताने वाले कोरबा और बिरहोर के जनजाति समुदाय के लोगों के जीवन में एक नया बदलाव आने लगा है. सामान्य परिवारों से अलग जीवनशैली में जीने वाला छत्तीसगढ़ का कोरबा समुदाय अब एक नई दिशा की ओर चल पड़ा है.

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शिकार और जंगलों में मिलने वाले फल-फूल आदि से पेट भरने वाले कई परिवारों ने जहां खेती-किसानी को अपना लिया है, वहीं एक नई उम्मीद के साथ वे कुछ नया करने की राह पर हैं. कल तक जिन हाथों में तीर-कमान और चिड़िया मारने वाली गुलेल हुआ करती थी, आज उन्हीं हाथों में कलम और किताबें हैं.

कोरबा जिले में 610 से अधिक पहाड़ी कोरबा परिवार हैं. कोरबा विकासखंड में 590 परिवार दुर्गम इलाकों में रहते हैं, जहां इनके रहन-सहन की शैली कई परंपराओं से बंधी है. कोरबा परिवारों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की पहल लगातार जारी है.

कलेक्टर रजत कुमार इन इलाकों का दौरा कर न सिर्फ विकास कार्यों की जानकारी लेते रहते हैं, बल्कि इनकी बसाहटों के आस-पास चौपाल लगाकर उनकी अपेक्षाओं को भली-भांति समझने की कोशिश भी करते हैं. प्रशासन द्वारा पहाड़ी कोरबाओं के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई गई हैं.

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महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत जमीन को बराबर किया गया है. यहां कुएं आदि का भी निर्माण हुआ है. इसके अलावा वन अधिकार पट्टा देने, इंदिरा आवास, पेयजल की व्यवस्था करने के साथ ही इन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. इसके साथ ही कोरबा जनजाति के लोगों को नौकरी देने की पहल की गई है. इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि कोरबा जनजाति के परिवारों में एक नया बदलाव आया है.

पहाड़ी कोरबाओं में बदलाव की बानगी छात्र नत्थूराम की कहानी है. कोरबा विकासखंड के ग्राम दलदली में रहने वाला नत्थूराम अब 10वीं कक्षा तक पहुंच चुका है. इससे पहले इस क्षेत्र में या उनके गांव का कोई पहाड़ी कोरबा बालक कक्षा 10 तक नहीं पहुंचा था. कुछ बच्चे स्कूल गए लेकिन पांचवीं-छठी से आठवीं तक आते-आते स्कूल छोड़ दिया.

एक कोरबा बालक नत्थूराम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है और पुलिस बनना चाहता है. यहां के शिक्षक सिदार का कहना है कि 10वीं कक्षा में आकर नत्थूराम की सोच विकसित हुई है.

इसी तरह छातासराय निवासी कोरबा बालक सनीराम पिता कोलाराम अब नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है. उसकी भी इच्छा सरकारी नौकरी करने और एक अच्छा जीवन व्यतीत करने की है.

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ग्राम दलदली का छात्र राजाराम कक्षा 10वीं में पढ़ रहा है. बिरहोर जनजाति के बालक राजाराम की इच्छा शिक्षक बनने की है. इन सभी के परिवारों की रोजी का मुख्य साधन मजदूरी है.

ग्राम अजगर बहार के छात्रावास में रहकर हाई स्कूल में पढ़ाई कर रहे तीनों छात्रों का कहना है कि शासन द्वारा नि:शुल्क किताबें, यूनिफॉर्म समय पर मिलती हैं. साथ ही स्‍कॉलरशिप के साथ रहने-खाने की व्यवस्था उन्हें निश्चिंत होकर आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करती है.

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