छह महीने पहले से ही वैश्विक मंदी की आहट थी. धीरे-धीरे ये आहट आमद में बदलने लगी है. दुनिया भर के आर्थिक जानकारों की मानें तो इस आर्थिक मंदी का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर ही होगा. उसके बाद ब्रिटेन और यूरोप को मंदी की गहरी चोट पड़ सकती है. चीन भी लपेटे में आएगा. हालांकि भारत को बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है. यहां बहुत कम असर होगा.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है और आने वाले समय में भी जब वैश्विक अर्थव्यव्स्था (Global Economy) में गिरावट आएगी और मंदी की मार दुनिया के बड़े-बड़े देशों को अपनी जद में लेगी, उस समय भी भारत मजबूत स्थिति में नजर आएगा.
भारत बेहतर स्थिति में
हालांकि मंदी (Recession) के खतरे के बीच IMF ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर (Economic Growth Rate) के अनुमान को घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया है. लेकिन चीन, अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में भारत बहुत मजबूत स्थिति में है. IMF ने अनुमान लगाया है कि साल 2023 में चीन की GDP ग्रोथ 4.4 फीसदी रह सकती है. जबकि 2023 में भारत की अनुमानित वृद्धि दर 6.1 फीसदी रहेगी. मंदी के खतरे के बीच ये अनुमान भारत के लिए राहत देने वाला है.
IMF भी मान रहा है कि इकोनॉमी के फ्रंट पर सबसे बुरा दौर अभी आना बाकी है, जो साल 2023 साबित हो सकता है. बीते दिनों जापानी ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने एक रिपोर्ट में कहा था कि साल भर के अंदर दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में आ जाएंगी. खासकर टेक कंपनियों (Tech Companies) के लिए पिछले 5-6 महीने काफी बुरे साबित हुए हैं. अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट हावी है. अमेरिकी टेक कंपनियां गूगल, एप्पल, टेस्ला पर सबसे ज्यादा मार पड़ रही है.
दुनिया में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था अमेरिका की है. अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने मान लिया है कि अमेरिका में मंदी आ सकती है, तो फिर दुनिया भी इसकी जद में आएगी ही. हालांकि बाइडेन कहते हैं कि अमेरिकी इकोनॉमी पर इसका बहुत कम असर होगा, और इस संकट से उबरने के लिए हमारे पास पर्याप्त क्षमता है.
मंदी क्या है?
जब किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है, तो इसे अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है. वहीं अगर लगातार 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है, तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है, जो भयावह होता है. प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1930 के दशक में सबसे भयानक महामंदी आई थी, जिसे The Great Depression कहा जाता है.
मंदी के परिणाम-
आर्थिक मंदी जब भी आती है, जनजीवन पर व्यापक असर छोड़ जाती है. इससे जीडीपी का साइज घट जाता है, क्योंकि रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाती हैं. लोगों के खर्चे बढ़ जाते हैं. वहीं इस दौरान आमदनी (Income) गिर जाती है. जिससे लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो जाती है. सबसे भयावह दृश्य तब होता है कि जब पैसे बचाने के लिए कंपनियां कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने लगती हैं. जिससे बेरोजगारी बढ़ जाती है. ऐसे में सबसे ज्यादा असर छोटे व्यवसायों पर पड़ता है और बड़े पैमाने पर छोटी कंपनियां मंदी की मार के सामने दम तोड़ देती हैं.
इसके अलावा आर्थिक मंदी के डर से निवेशक शेयर बाजारों से पैसे निकालने लग जाते हैं. कंपनियों के सामने कच्चा माल महंगा हो जाने और बिक्री कम हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है. ऐसे में कंपनियां अपने आप को बचाने के लिए कर्मचारियों को नौकरी से निकालने लगती हैं.
मंदी आने के प्रमुख कारण-
1. बड़े देशों के सामने बड़ी समस्या: अमेरिका, यूरोप और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं का मंदी में फंसना लगभग तय लग रहा है. चीन को 'जीरो कोविड' पॉलिसी की वजह से आर्थिक तौर पर भारी नुकसान हुआ है. क्योंकि एक भी कोरोना के मामले सामने आते ही उस इलाके में सख्त पाबंदी लगा दी जाती है. इसका सबसे ज्यादा असर इंडस्ट्रीज पर पड़ता है. कारोबार ठप पड़ जाता है.
2. रूस-यूक्रेन युद्ध से बिगड़े हालात: रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी मंदी को दहलीज तक लाने का काम किया है. इस जंग की वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन पर प्रतिकूल असर पड़ा है. अचानक कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ गया. इस युद्ध के कारण दुनिया भर में कई जरूरी कमोडिटीज की कमी का संकट उत्पन्न हो गया. क्योंकि रूस और यूक्रेन गेहूं और जौ जैसे कई अनाजों के बड़े निर्यातकों में से है. युद्ध के चलते इनका निर्यात प्रभावित हुआ है.
3. महंगाई से सरकारें परेशान: महंगाई सरकारों को परेशान कर रही है. ब्रिटेन में महंगाई 40 साल में सबसे ऊपर है. अमेरिका भी लगातार महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है. भारत की भी बात करें तो खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी से ऊपर बनी हुई है.
4. महंगा होता कर्ज (Rising Capital Cost): महंगाई को कंट्रोल करने के लिए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं. पिछले कुछ महीने से कच्चे देल के दाम में आग लगी हुई है. यह लगातार 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बना हुआ है.
कब-कब आई मंदी
वैसे तो अनुमान लगाया जा रहा है कि इस मंदी का भारत पर कम असर होगा. भारत के संदर्भ में देखें तो आजादी के बाद हमारे देश में 2 बार मंदी आई है. पहली बार साल 1991 भयानक मंदी आई थी. उस समय भारत के पास इतनी ही विदेशी मुद्रा बची थी कि महज 3 सप्ताह के आयात के खर्चे भरे जा सकते थे. भारत कर्जों की किस्तें चुकाने में असफल हो रहा था. देश का सोना गिरवी रखना पड़ रहा था. एक तरह से अभी जो श्रीलंका में हालात है, उसे उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं. दूसरी बार साल 2008 में मंदी आई थी, जिसके विदेशी कारण थे.
अब आइए जानते हैं कैसे आप मंदी के प्रभाव को कम कर सकते हैं.
1. इमरजेंसी फंड: मंदी में सबसे बड़ा सहारा आपका इमरजेंसी फंड हो सकता है. इसलिए कम से कम 6 महीने के खर्च लायक इमरजेंसी फंड को अपने पास रखें. उदाहरण के लिए आपके जरूरी खर्चे मसलन किराया या EMI, खाने-पीने के सामान को मिलाकर हर महीने 40 हजार रुपये की जरूरत है, तो आपको कम से कम 2 लाख रुपये इमरजेंसी फंड के तौर पर रखना चाहिए.
2. फिजूलखर्ची पर लगाम: मंदी के खतरे से बचने के लिए सबसे पहले लोगों को फिजूलखर्ची पर लगाम लगानी चाहिए. उदाहरण के लिए रेस्टोरेंट में खाना, बाहर घूमना और मल्टीपैलेक्स में मूवी देखना कम कर दें. इसके अलावा ऐसी चीजें को खरीदने से बचें, जिसके बिना भी आपका काम चल सकता है.
3. क्रेडिट कार्ड और लोन को करें इग्नोर: अभी भारत में भी क्रेडिट कार्ड का चलन बढ़ा है. 'बाय नाउ, पे लेटर (BNPL)' जैसी सुविधाएं भी आ गई हैं. लेकिन मंदी में धड़ल्ले से इसके इस्तेमाल से संकट गहरा सकता है. साथ ही किसी भी तरह के लोन लेने से बचें. खासकर पर्सनल लोन के बारे में सोचें भी नहीं. क्योंकि मंदी में एक्स्ट्रा EMI बोझ बन सकता है.
4. शेयर बाजार में निवेश से बचें: मंदी के वक्त बचत राशि को शेयर बाजार में निवेश करने से बचें. क्योंकि मंदी का सबसे ज्यादा रिएक्शन शेयर बाजार में ही दिखने को मिलता है. हालांकि अगर इमरजेंसी फंड के अलावा पैसा बचता है तो फिर चुनिंदा शेयरों में थोड़ा-थोड़ा करके निवेश कर सकते हैं, निवेश तभी करें जब नजरिया लंबा हो. कहा जाता है कि कुछ लोग मंदी में कमाई का मौके तलाश लेते हैं, और गिरते शेयर बाजार में दांव लगाकार बड़ा फंड बना लेते हैं. लेकिन ऐसे काम में वित्तीय सलाहकार की मदद जरूर लें. मंदी के वक्त हमेशा गोल्ड सहारा बनता है, और लोगों गोल्ड में निवेश की सलाह दी जाती है.