चीन में कोरोना का कहर सामने आने से महंगाई (Inflation) और मंदी (Recession) का सामना कर रही दुनिया में चिंता की लहर दौड़ गई है. चीन से आ रही खबरों के मुताबिक वहां पर हालात भारत में आई दूसरी लहर जितने भयावह नजर आ रहे हैं. ऐसे में एक बार फिर दवाओं के मामले में दुनियाभर की निगाहें भारत पर हैं. दरअसल, सस्ती कीमत पर दवाओं (Medicine) का उत्पादन करने की वजह से भारत को दुनिया के दवाखाने के तौर पर पहचाना जाता है. खास बात है कि भारत से दवाएं केवल अफ्रीका के गरीब देशों को ही निर्यात नहीं की जाती हैं बल्कि अमेरिका (America) और यूरोप के संपन्न देशों में भी भारत से दवाओं का एक्सपोर्ट होता है.
जेनेरिक दवाओं (Generic Medicine) के लिए भारत पर भरोसा
भारत से अफ्रीका में जेनेरिक दवाओं की कुल डिमांड का करीब आधा हिस्सा सप्लाई किया जाता है. अमेरिका की जेनेरिक दवाओं का 40 फीसदी और ब्रिटेन की 25 फीसदी दवाओं की सप्लाई भारत से की जाती है. यही नहीं जिस वैक्सीन ने भारत समेत दुनियाभर के देशों को कोरोना से लड़ने में मदद की है, उसी तरह से तमाम दूसरी बीमारियों के लिए भी भारत से वैक्सीन सप्लाई की जाती है. जरूरी टीकाकरण योजनाओं के लिए भारत करीब 60 फीसदी वैश्विक टीकों की सप्लाई करता है. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की जरूरी टीकाकरण योजनाओं के लिए 70 फीसदी टीकों का उत्पादन भारत में होता है. ऐसे में भारत दवाओं के मोर्चे पर तो खुद के साथ साथ दुनियाभर की मदद करने में सक्षम है.
चीन में कोरोना ने महंगा किया API
चीन में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण का असर भारत की भारत की फार्मा इंडस्ट्री पर पड़ने लगा है. भारत की फार्मा इंडस्ट्री सक्रिय दवा सामग्री यानी API और थोक दवाओं के लिए चीन के भरोसे है. चीन में कोरोना के मामले बढ़ने से इन प्रॉडक्ट्स के दाम में भारी तेजी दर्ज की जा रही है. पिछले कुछ दिनों में प्रमुख API 12 से 25 फीसदी महंगी हो गई हैं. कारोबार जगत को डर है कि इससे सप्लाई चेन पर ब्रेक लग सकता है जिससे मार्जिन कम होगा और दवाओं के दाम बढ़ जाएंगे. आशंका है कि इससे दवाओं की कमी भी हो सकती है
कई ज़रुरी दवाओं के दाम बढ़ना तय!
कोरोना के साथ ही चीनी न्यू इयर के दौरान भी जनवरी में चीन से आने वाली सप्लाई अनियमित हो जाती है. पहले से ही चीन में कोरोना विस्फोट होने से वहां से API की सप्लाई बाधित हुई है जिससे उनके दाम बढ़ गए हैं और इससे भारत में भी दवाएं महंगी होने का खतरा है. बीते दो-तीन हफ्तों में पेरासिटामोल के एपीआई की कीमत 450 रुपये से बढ़कर 550 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. एजिथ्रोमाइसिन की कीमत 15 फीसदी इजाफे के साथ 8,700 रुपये से बढ़कर 10,000 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. एंटीबायोटिक एमोक्सिसिलिन के लिए एपीआई 2,850 रुपये से 13 फीसदी बढ़कर 3,200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है. एपीआई पोटेशियम क्लैवुलनेट की कीमत 17 हज़ार रुपये से बढ़कर 19,500 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है.
API के लिए चीन पर निर्भर है भारत
भारत में API समेत जैविक रसायनों का आयात 2021-2022 में 39 फीसदी बढ़कर साढ़े 12 अरब डॉलर हो गया. ये दवाओं को बनाने में काम आने वाले कच्चे माल के लिए हमारी चीन पर निर्भरता का सबूत है. ल्यूपिन, सन फार्मा, ग्लेनमार्क, मैनकाइंड, डॉ. रेड्डीज, टोरेंट जैसी घरेलू कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन से आयात पर निर्भर हैं. हालात बिगड़ने की बड़ी वजह है कि पहले तो जीरो कोविड पॉलिसी की तहत चीन में प्रॉडक्शन में गिरावट आई थी और अब कोविड की नई लहर के चलते इसमें कमी आ रही है। आशंका है कि अगर चीन में यही हालात बने रहे तो अगले कुछ महीने भारतीय फार्मा जगत के लिए बेहद मुश्किल भरे साबित हो सकते हैं.