प्राइवेट सेक्टर में देश के सबसे बड़े बैंक HDFC Bank ने अपने ग्राहकों को बड़ी सौगात दी है. बैंक की ओर से कर्ज की ब्याज दर यानी मार्जिनल कॉस्ट बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में 85 बेसिस प्वाइंट तक की कटौती का ऐलान किया गया है. ये कटौती अलग-अलग टैन्योर के लोन के लिए की गई है और नई दरें 10 अप्रैल से प्रभावी कर दी गई हैं. बैंक के इस फैसले से लोन लेने वाले ग्राहकों को राहत मिली है.
नए वित्त वर्ष में राहत देने वाला पहला बैंक
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों (Repo Rate) में एक के बाद एक लगातार छह बार बढ़ोतरी किए जाने के बाद इस बार नए वित्त वर्ष की पहली एमपीसी बैठक में इसकी रफ्तार पर ब्रेक लगाया गया. इसके बाद अपने ग्राहकों को राहत देने में एचडीएफसी बैंक ने पहला कदम उठाया है. इससे बैंक के उन ग्राहकों को लाभ होगा जिनके लोन इन टैन्योर के एमसीएलआर से जुड़े हुए हैं. इनमें पर्सनल और ऑटो लोन शामिल है. हालांकि, होम लोन लेने वालों को इस फैसले से राहत मिलने की उम्मीद कम है, क्योंकि ज्यादातर Home Loan एचडीएफसी लिमिटेड (HDFC Limited) से ही लिए गए हैं.
बदलाव के बाद नई दरें
HDFC Bank की ओर से MCLR में की गई कटौती के बाद नई दरों पर नजर डालें, तो एक रात के लिए गए लोन के लिए एमसीएलआर 8.65 फीसदी से कम होकर 7.80 फीसदी रह गया है. इसके अलावा एक महीने का एमसीएलआर अब 70 बेसिस प्वाइंट कम होकर 8.65 फीसदी की जगह 7.95 फीसदी रह गया है. बैंक ने तीन महीने के लोन पर एमसीएलआर में 40 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है और ये 8.7 फीसदी की जगह 8.3 फीसदी रह गया है. इसके अलावा छह महीने का एमसीएलआर 8.8 फीसदी से 8.7 फीसदी कर दिया गया है.
इन टैन्योर के लोन पर राहत नहीं
वहीं एक साल, दो साल और तीन साल की अवधि के लोन पर MCLR को अपरवर्तित रखा गया है. बता दें अप्रैल के पहले हफ्ते में हुई आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला लिया गया था. फिलहाल, Repo Rate 6.50 फीसदी पर यथावत रखा गया है. एचडीएफसी बैंक की ओर से कर्ज की दरों में कटौती के फैसले के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि और भी बैंक आने वाले दिनों में ग्राहकों को राहत दे सकते हैं.
MCLR को इस तरह समझें
मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट्स या एमसीएलआर दरअसल, RBI द्वारा लागू किया गया एक बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर तमाम बैंक लोन के लिए अपनी ब्याज दरें तय करते हैं. जबकि Repo Rate वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है.
रेपो रेट के कम होने से बैंको को कर्ज सस्ता मिलता है और वे एमसीएलआर में कटौती कर लोन की EMI घटा देते हैं. वहीं जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है तो बैंकों को कर्ज आरबीआई से महंगा मिलता है, जिसके चलते उन्हें एमसीएलआर में बढ़ोतरी का फैसला लेना पड़ता है और ग्राहक का बोझ बढ़ जाता है.