
पेंशन (Pension) अब आम बात है, कई तरह की पेंशन मिलती हैं. अब तो प्राइवेट नौकरी में भी पेंशन की सुविधा है. दरअसल, सरकार भी हर किसी को वित्तीय तौर पर, खासकर बुढ़ापे में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह की पेंशन स्कीम्स चलाती हैं. ताकि कभी भी किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े.
लेकिन आपने कभी ये सोचा है कि पेंशन की शुरुआत सबसे पहले कब हुई थी, क्यों इसकी जरूरत पड़ी? किसे सबसे पहले दुनिया में पेंशन का लाभ मिला और वो राशि कितनी थी? शायद आपको पता नहीं होगा. हम आपको पेंशन का इतिहास बताने जा रहे हैं, जिसमें कई हैरान करने वाली बातें हैं.
सबसे पहले जानते हैं कि पेंशन है क्या? पेंशन एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी व्यक्ति को नियमित रूप से एक धनराशि दी जाती है, आमतौर पर उनकी सेवा या कार्यकाल पूरा होने के बाद से ये राशि मिलती है. पेंशन मुख्य रूप से सरकारी कर्मचारियों, सैनिकों, या निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए होती है. साफ शब्दों में कहें तो पेंशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति अपनी नौकरी छोड़ने या उम्र बढ़ने के बाद भी जीवनयापन कर सके, यानी बुढ़ापे का सहारा हो.
पेंशन की शुरुआत कैसे हुई?
इतिहास पर नजर डालें तो पेंशन व्यवस्थाओं का उल्लेख रोमन साम्राज्य में मिलता है. रोमन सम्राट ऑगस्टस (27 ईसा पूर्व - 14 ईस्वी) ने सैनिकों के लिए एक पेंशन योजना शुरू की थी. उस समय रोमन सेना में लंबे समय तक सेवा देने वाले सैनिकों को उनकी सेवा के बाद जमीन या फिर धन दिया जाता था, ताकि वे अपने जीवन के बाकी दिन सम्मानजनक तरीके से जी सकें. इसे एन्युटी (Annuity) के रूप में जाना जाता था, जो आधुनिक पेंशन का एक प्रारंभिक रूप था.
सबसे पहले किसे पेंशन मिली थी?
अब जब रोमन साम्राज्य में सबसे पहले पेंशन का जिक्र है, तो फिर स्वभाविक है कि सबसे पहले रोमन सैनिकों को इसका लाभ मिला था. ऑगस्टस ने यह व्यवस्था शुरू की थी, ताकि सैनिकों की वफादारी सुनिश्चित की जा सके और उन्हें रिटायरमेंट के बाद आर्थिक सुरक्षा दी जा सके. एक सैनिक जो 20 से 25 साल तक सेवा करता था. फिर बदले में उसे सम्मान में पेंशन के रूप में धन या जमीन मिलती थी.
आधुनिक पेंशन व्यवस्था
आधुनिक पेंशन सिस्टम का विकास 19वीं सदी में हुआ, खासकर यूरोप में औद्योगिक क्रांति के दौरान पेंशन स्कीम की बढ़ोतरी हुई. जर्मनी के चांसलर ओटो वॉन बिस्मार्क को आधुनिक पेंशन सिस्टम का जनक माना जाता है. उन्होंने 1889 में पहली बार एक सरकारी पेंशन योजना शुरू की, जिसमें 70 साल से अधिक उम्र के लोगों को राज्य से पेंशन दी जाती थी. यह योजना सामाजिक सुरक्षा का हिस्सा थी और इसका मकसद श्रमिकों को गरीबी से बचाना था.
भारत में पेंशन की शुरुआत कब हुई?
भारत में पेंशन की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई. 19वीं सदी में ब्रिटिश सरकार ने अपने कर्मचारियों, खासकर सिविल सेवकों और सैनिकों के लिए पेंशन योजना शुरू की थी. आजादी के बाद भारत सरकार ने इस व्यवस्था को अपनाया और फिर इसे विस्तार दिया गया. आज भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (OPS) और नई पेंशन योजना (NPS) जैसी व्यवस्थाएं मौजूद हैं.
भारत में पेंशन के इतिहास के खंगालें तो यह स्पष्ट है कि पेंशन की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में हुई, खासकर 18वीं और 19वीं सदी में, जब कंपनी ने अपने कर्मचारियों और सैनिकों के लिए पेंशन योजनाएं लागू कीं. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1770 के दशक में अपने यूरोपीय सैनिकों और अधिकारियों के लिए पेंशन की व्यवस्था शुरू की थी. बाद में यह सुविधा भारतीय सैनिकों (सिपाहियों) और सिविल कर्मचारियों तक विस्तारित हुई. 1837 में, ब्रिटिश सरकार ने 'पेंशन एक्ट' के तहत औपचारिक रूप से नियम बनाए, जिसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन दी जाने लगी. यह व्यवस्था मुख्य रूप से उन लोगों के लिए थी, जो लंबे समय तक सेवा में रहे हों.
सबसे पहले पेंशन किसे मिली?
आंकड़ों के मुताबिक भारत में सबसे पहले पेंशन उच्च पदस्थ ब्रिटिश अधिकारियों या सैन्य कमांडरों को मिली थी, जो कि ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन काम करते थे. इतिहास बताता है कि 18वीं सदी के अंत में रिटायर होने वाले ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों, जैसे कि लॉर्ड कॉर्नवालिस (जो 1786-1793 तक गवर्नर-जनरल रहे) या अन्य समकालीन अधिकारियों को पेंशन का लाभ मिला था. हालांकि, व्यक्तिगत रूप से किसी एक व्यक्ति का नाम सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है. लेकिन हम ये कह सकते हैं कि भारतीय सैनिकों में सबसे पहले पेंशनभोगी कोई सिपाही या हवलदार रहे होंगे, जो 19वीं सदी की शुरुआत में रिटायर हुए थे.
पेंशन की राशि
आज की तारीख में पेंशन की राशि शख्स के पद, सेवा की अवधि और वेतन पर निर्भर करती है, कुछ इसी तरह की व्यवस्था शुरुआत में थी. 19वीं सदी की शुरुआत में एक सामान्य भारतीय सिपाही को रिटायरमेंट के बाद मासिक 4 से 7 रुपये तक पेंशन मिलती थी. वहीं, उच्च पदस्थ ब्रिटिश अधिकारियों को उनकी अंतिम सैलरी का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 50% तक) पेंशन के रूप में मिलता था, जो उस समय सैकड़ों रुपये हो सकता था.
उदाहरण के लिए:
एक सिपाही की पेंशन: 4-7 रुपये हर महीने.
एक ब्रिटिश लेफ्टिनेंट या कैप्टन की पेंशन: 100-200 रुपये प्रति माह.
अब आप सोच रहे होंगे कि महज 4 से 7 रुपये तक पेंशन मिलती थी. लेकिन उस समय 1 रुपये की कीमत आज के मुकाबले बहुत अधिक थी. 19वीं सदी में 1 रुपये से एक परिवार का महीने भर का खर्च आसानी से चल जाता था, इसलिए यह राशि उस समय के हिसाब से पर्याप्त मानी जाती थी.
पेंशन का विस्तार
राज्य सरकार की ओर से इस योजना का और उदारीकरण करते हुए वृद्धावस्था पेंशन योजना-1991, शुरू की गई जिसे अब वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना के नाम से जाना जाता है. इसमें पात्रता की आयु 60 वर्ष है.
अब आइए जानते हैं कितने प्रकार के पेंशन होते हैं...
- सेवानिवृत्ति पेंशन: वह पेंशन जो एक सरकारी कर्मचारी को रिटायर्ड के बाद मिलती है.
- अशक्त पेंशन: वह पेंशन जो एक सरकारी कर्मचारी को शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण मिलती है, जो उसे सेवा के लिए स्थायी रूप से अक्षम कर देती है.
- मुआवजा पेंशन: अगर किसी सरकारी कर्मचारी को उसके पद के उन्मूलन के कारण सेवामुक्ति के लिए चुना जाता है, तो उसके पास यह विकल्प होगा कि वह मुआवजा पेंशन ले.
- अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेंशन: सक्षम प्राधिकारी द्वारा लगाए गए दंड के परिणामस्वरूप सेवा से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी कर्मचारी को स्वीकृत पेंशन.
- अनुकंपा भत्ते: कोई सरकारी कर्मचारी जिसे सेवा से बर्खास्त या हटा दिया जाता है, उसकी पेंशन और ग्रेच्युटी दोनों जब्त हो जाएगी, लेकिन यदि बर्खास्तगी/हटाने के लिए जिम्मेदार सक्षम प्राधिकारी विशेष विचार के योग्य मामलों में ऐसा निर्णय लेता है तो वह अनुकंपा भत्ता प्राप्त कर सकता है.
- असाधारण पेंशन: सेवा में रहते हुए शहीद होने वाले पुलिसकर्मी को स्वीकृत पेंशन.
- पारिवारिक पेंशन: सेवा में रहते हुए कर्मचारी की मृत्यु या पेंशनभोगी की मृत्यु के बाद, उसके कानूनी उत्तराधिकारी को पारिवारिक पेंशन मिलती है.