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वक्त-वक्त की बात है, शान से लोग पहनते थे hmt घड़ी... फिर कैसे कंपनी हो गई बर्बाद!

Journey of HMT Watch: साल 1961 से शुरू हुआ hmt का शानदार सफर 90 के दशक की शुरुआत तक बदस्तूर जारी रहा. फिर 90 के दौर में एचएमटी को घड़ी मार्केट में एंट्री लेने वाली Tata Group की टाइटन (Titan) ने टक्कर देना शुरू कर दिया. इसके बाद से ही एचएमटी की घड़ियों को पुराने जमाने की तकनीक कहकर पुकारा जाने लगा.

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लंबे समय तक बाजार पर रहा था एचएमटी ब्रांड का दबदबा
लंबे समय तक बाजार पर रहा था एचएमटी ब्रांड का दबदबा

एक जमाना था जब लोगों के हाथ की कलाई में घड़ी स्टेटस सिंबल माना जाता था और अगर वो घड़ी एचएमटी (hmt Watch) होती थी, तो फिर कहने ही क्या... फिर दौर बदला और डिजिटलाइजेशन के चलते चाबी वाली घड़ियों की जगह आज स्मार्ट वॉच ने ले ली है. 90 का दशक ऐसा था जब घड़ी का मतलब ही एचएमटी बन चुका था. लोग शान से इसे अपने हाथ में पहनते थे. अब सवाल ये कि इतनी मार्केट डिमांड और बड़ा कारोबार आखिर देखते ही देखते कैसे बर्बाद हो गया और प्रोडक्शन ही बंद करना पड़ा? आइए एचएमटी घड़ी की शुरुआत से बंद होने तक के सफर पर नजर डालते हैं, जो बेहद दिलचस्प है.  

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90 के दशक में शान का प्रतीक थी hmt घड़ी
hmt ये नाम आज भले ही गुम हो गया है, लेकिन 90 के दशक में इसकी अलग ही धमक थी. शादी में दूल्हे को गिफ्ट देना हो, या फिर बच्चा अच्छे नंबर लेकर पास हुआ है और उसे उपहार देना हो. सबसे पहली पसंद एचएमटी की घड़ी (hmt Watch) ही होती थी. इस भारतीय ब्रांड का इतिहास गजब का रहा है और आज भले ही स्मार्ट वॉच का जमाना हो, लेकिन फिर भी कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो एचएमटी की सुई वाली घड़ी को एंटीक आइटम की तरह सहेज कर अपने पास रखे होंगे. करीब पांच दशक तक घड़ियों के बाजार में ये नाम लीडर के तौर पर जमा रहा था. 

ऐसे शुरू हुआ एचएमटी का सफर 
एचएमटी की घड़ी पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में बनना शुरू हुई थी. एचएमटी (हिंदुस्तान मशीन टूल्स) की स्थापना किए जाने के बाद साल 1961 में hmt Watch का प्रोडक्शन भारत में शुरू हुआ. कंपनी ने जापान की सिटिजन वॉच कंपनी (Citizen Watch Company) के साथ मिलकर hmt का निर्माण शुरू किया था.

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कंपनी ने पहली घड़ी चाचा प्रधानमंत्री नेहरू के लिए बनाई थी और फिर इसका कारोबार देखते ही देखते आसमान छूने लगा. 70 और 80 के दशक तक एचएमटी की घड़ियों का बिजनेस बुलंदियों पर पहुंच चुका था. 90 के दशक की शुरुआत तक इसका जलवा कायम रहा था. इसकी दीवानगी ऐसी थी कि हर वर्ग इसे शान से कलाई पर पहनता था. 

इतनी प्राइस रेंज में उपबल्ध थीं घड़ियां
hmt की पहली घड़ी जनता ब्रांड नाम से थी और ये मॉडल इस कदर फेमस हुआ कि दो दशक तक बाजार पर राज किया. हालांकि, इसके बाद कंपनी ने मॉडल्स में कई बदलाव किए और जवाहर समेत कई नाम से रिस्ट वॉच लांच कीं. कंपनी की गांधी घड़ी का सीनियर सिटीजंस में खासा क्रेज था. एचएमटी के कारोबार की बात करें तो देश में रिस्ट वॉच बेचने वाली इस पहली कंपनी ने शुरुआती 15 साल के बिजनेस के दौरान 11 करोड से ज्यादा घड़ियां बेची थीं.

hmt की घड़ियां हर वर्ग के लोगों के लिए उपलब्ध थीं. शोरूम्स पर 300 रुपये से लेकर 8000 रुपये तक की कीमत में एचएमटी ब्रांड के मॉडल्स मौजूद थे. इनमें कलाई घड़ी से लेकर पॉकेट वॉच तक शामिल थीं. 1970 में ही एचएमटी ने सोना और विजय ब्रांड के नाम के साथ क्वार्ट्ज घड़ियों को बनाना शुरू कर दिया था. 

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सालाना इतनी घड़ियों का होता था प्रोडक्शन
एचएमटी की पहली वॉच फैक्ट्री बेंगलुरु में 112 एकड़ के एरिया में स्थापित की गई थी. ये हिंदुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड और जापानी सिटीजन वॉच कंपनी के बीच हुई समझौते के बाद अस्तित्व में आई थी. इस बड़ी फैक्ट्री सालाना 3.6 लाख एचएमटी घड़ी बना सकती थी. इसके बाद उत्तराखंड के रानीबाग में एक बड़ी एचएमटी फैक्ट्री स्थापित की गई थी. जब भारत में इसका दबदबा था, तो उस समय इस ब्रांड के 3500 मॉडल बाजार में उपलब्ध थे. 

उदारीकरण के बाद बुरा दौर शुरू
एचएमटी घड़ी के लिए दी गई टैगलाइन भी खासी फेमस थी. इसे देश की धड़कन कहकर पुकारा जाता था. लेकिन 1961 से शुरू हुआ hmt का शानदार सफर 90 के दशक की शुरुआत तक बदस्तूर जारी रहा. फिर 90 के दौर में ही एचएमटी को घड़ी मार्केट में एंट्री लेने वाली Tata Group की टाइटन (Titan) ने टक्कर देना शुरू कर दिया. सिर्फ टाइटन ही नहीं बल्कि कई प्राइवेट कंपनियों ने इस सेक्टर में अपनी नई तकनीक और डिजाइन के साथ एंट्री ली. इसके बाद से ही एचएमटी की घड़ियों को पुराने जमाने की तकनीक कहकर पुकारा जाने लगा.

 

ये रही बर्बादी की वजह 
देश में उदारीकरण के बाद इस कंपनी का बुरा दौर शुरू हो गया. इसकी बिक्री कम होने लगी और घाटा बढ़ने लगा. ये वो समय था जब दुनिया के लिए भारतीय बाजारों के खुलने के बाद घड़ी समेत हर सेक्टर में कॉम्पटीशन शुरू हो गया था और एचएमटी से मुकाबले के लिए नई तकनीकों और डिजाइनों से लैस घड़ियां बाजार में पहुंचने लगी थीं. लेकिन एचएमटी इनके मुताबिक, खुद को अपग्रेड नहीं कर पाई.

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लोग भी नई तकनीकों और डिजाइनों के प्रति आकर्षित होने लगे और hmt बेरुखी का शिकार होती गई. कंपनी के लगातार बढ़ते घाटे के चलते देश में संचालित तमाम फैक्ट्रियों में प्रोडक्शन घटता गया. इसके बाद से लगातार एचएमटी घड़ी का क्रेज कम होता चला गया. घटती मांग और बढ़ते घाटे के चलते ही बेंगलुरु से लेकर रानीबाग तक की फैक्ट्री पर ताला लगा गया और देश के लोगों को घड़ी पहनाने की शुरुआत करने वाली ये कंपनी अब इतिहास बनकर रह गई. 

हालांकि, hmt ब्रांड ने कई प्राइवेट और विदेशी कंपनियों के आगाज के बावजूद कई सालों तक मार्केट में अपनी मौजूदगी कायम रखी. लेकिन, साल 2012-13 में भी इन घड़ियों का सालाना कारोबार 242 करोड़ रुपये से ज़्यादा का था. लेकिन बड़े कर्ज और लगातार घट रहे मुनाफे के कारण सरकार ने इन घड़ियों का उत्पादन बंद कर देने का फैसला ले लिया और देखते ही देखते एचएमटी घड़ी कंपनी को पूरी तरह बंद कर दिया गया.

बंद होने के बाद फिर शुरू हुई थी रानीबाद की फैक्ट्री
साल 2016 आते-आते बेंगलुरु मुख्यालय वाली एचएमटी कंपनी के देश में लगभग सभी फैक्ट्रीज बंद कर दी गई थीं. लेकिन, हल्द्वानी के नजदीक स्थित रानीबाग की फैक्ट्री को एक पुराना ऑर्डर पूरा करने के लिए 2016 में फिर से खोला गया था. ये ऑर्डर लगभग 5500 घड़ियों का था, जो करीब डेढ़ करोड़ की कीमत का था. इस ऑर्डर के पूरा होने के बाद इस यूनिट को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया. यहां बता दें कि कंपनी के बंद होने तक इस पर कर्ज का बोझ बढ़कर 2500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. 

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