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छत्तीसगढ़ में मेहनतकश मजदूर का बेटा बना डिप्‍टी कलेक्‍टर

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग परीक्षा- 2008 का मामला अदालत में लटक जाने के बाद गुड्डूराम ने सारा ध्यान आयोग की 2011 की परीक्षा पर केंद्रित किया. सपना था छत्तीसगढ़ राज्य सेवा में उच्च पद हासिल करने का. माता-पिता को दिनभर की कड़ी मेहनत से आराम देने का और बहनों को स्कूल भेजने का. इसके लिए गुड्डू ने दिन-रात एक किया और डिप्टी कलेक्टर का पद हासिल किया.

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Symbolic Image
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छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग परीक्षा- 2008 का मामला अदालत में लटक जाने के बाद गुड्डूराम ने सारा ध्यान आयोग की 2011 की परीक्षा पर केंद्रित किया. सपना था छत्तीसगढ़ राज्य सेवा में उच्च पद हासिल करने का. माता-पिता को दिनभर की कड़ी मेहनत से आराम देने का और बहनों को स्कूल भेजने का. इसके लिए गुड्डू ने दिन-रात एक किया और डिप्टी कलेक्टर का पद हासिल किया.

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आज प्रदेश के घर-घर में उसकी चर्चा है. गुड्डू के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि उनके माता-पिता को मजदूरी करने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था. यहां दूसरे के खेतों में मजदूरी करते, जिससे उनका गुजर-बसर नहीं हो पाता था. अन्य प्रदेश में उन्हें कुछ ज्यादा मजदूरी मिल जाया करती थी. गुड्डू जब छोटा था, तो वह भी मां-पिता के साथ जाया करता और ईंट लगाने, खेतों में काम करने में उनकी मदद करता. हालांकि उसने यह काम पेशेवर रूप से कभी नहीं किया.

गुड्डू की पढ़ने की ललक देखकर मामा बाबूराम उसे अपने साथ ग्राम मानिकचौरी ले गए. यहां सरकारी स्कूल से उसने प्राथमिक व माध्यमिक स्तर की शिक्षा की. फिर हाईस्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के लिए मस्तूरी ब्लॉक का रुख किया. पढ़ाई के दौरान उसने राज्य लोक सेवा आयोग का विज्ञापन देखा. मामा ने परीक्षा फार्म भरने और परीक्षा देने को प्रेरित किया.

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गुड्डू ने पहली बार विज्ञापन में पीएससी शब्द सुना था. उसने तैयारी शुरू की और प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद मुख्य परीक्षा में लग गया. परीक्षा दी, तो पता चला कि मामला हाईकोर्ट चला गया और रिजल्‍ट लंबित हो गया है. कुछ माह पहले हाईकोर्ट का फैसला आया और रिजल्‍ट निकले. उसका लेखाधिकारी पद पर चयन हो गया और गुड्डू डिप्टी कलेक्टर बन गया.

गुड्डू ने इसकी खुशखबरी अपने माता-पिता से पहले मामा को दी, फिर अपने गांव गया. मां सुखबाई और पिता भागवत प्रसाद जगत को जानकारी दी. उन्हें बेटे के डिप्टी कलेक्टर बन जाने की बात पर यकीन नहीं हो पा रहा है. मां-पिता तो सही से हिंदी भी नहीं बोल पाते हैं. वे छत्तीसगढ़ी में ही बताते हैं, 'मोर बेटा हर अब्बड़ मेहनत करे हावय साहब. रथिया भर पढ़त रहिस.'

उन्हें यह यकीन था कि बेटा कुछ न कुछ जरूर करेगा, लेकिन डिप्टी कलेक्टर बन जाएगा यह सपने में भी नहीं सोचा था.

पांच बहनों के इकलौते भाई गुड्डू का कहना है कि सबसे बड़ी ताकत पढ़ाई की होती है. आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के कारण उसकी किसी बहनों को पढ़ाई का मौका नहीं मिल पाया.

डिप्टी कलेक्टर गुड्डू अब सभी बहनों को स्कूल भेजेंगे और उनकी बेहतर ढंग से शादी करेंगे. उन्होंने आस-पास के लोगों को भी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने की सोची है.

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