पेंशन फंड विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) की निगरानी में चलने वाली ‘नयी पेंशन प्रणाली’ (NPS) के अंशधारकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में PFRDA इसके फंड मैनेजर्स की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है. इससे NPS के सब्सक्राइबर्स को अधिक फंड मैनेजर्स में से चुनाव का विकल्प मिलेगा.
अभी कितने फंड मैनेजर्स हैं NPS के
एनपीएस के फंड का प्रबंधन करने के लिए वर्तमान में 7 कंपनियां काम करती हैं. ये कंपनियां आदित्य बिड़ला सन लाइफ पेंशन मैनेजमेंट, एचडीएफसी पेंशन मैनेजमेंट कंपनी, यूटीआई रिटायरमेंट सॉल्युशंस, एसबीआई पेंशन फंड्स प्राइवेट, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल पेंशन फंड्स मैनेजमेंट, कोटक महिंद्रा पेंशन फंड और एलआईसी पेंशन फंड हैं.
अब कितनी हो जाएगी फंड मैनेजर्स की संख्या
PFRDA के चेयरमैन सुप्रतिम बंद्योपाध्याय ने जानकारी दी कि नए फंड मैनेजर्स के लिए PFRDA ने आवेदन मांगे हैं. इस काम में रुचि रखने वाली कंपनियां 22 जनवरी तक इसके लिए आवेदन कर सकती है. बंद्योपाध्याय ने कहा, ‘हमने कोई संख्या तय नहीं की है कि कितने फंड मैनेजर्स को प्रणाली से जोड़ा जाएगा.’ नए फंड मैनेजर्स के नाम की घोषणा मार्च के अंत तक की जा सकती है.
अंशधारकों को क्या फायदा
अभी अंशधारकों के पास सिर्फ 7 फंड मैनेजर्स में से ही चुनने का विकल्प है. इनकी संख्या बढ़ने के बाद अंशधारकों के पास ज्यादा विकल्प होंगे. संख्या बढ़ने से फंड मैनेजमेंट कारोबार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे कंपनियां बेहतर जोखिम प्रबंधन और ग्राहक उन्मुखी सेवाओं पर जोर देंगी. इससे ग्राहकों को बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना और उनके लिए अच्छी सेवाओं में बढ़ोत्तरी होगी. वहीं ग्राहकों से लिए जाने वाले फंड मैनेजमेंट शुल्क को लेकर भी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी.
क्या है फंड मैनेजमेंट फीस
NPS प्रणाली के तहत अभी फंड मैनेजर कंपनियां प्रत्येक 100 रुपये की परिसंपत्ति प्रबंधन पर एक पैसे का शुल्क लेती हैं. हालांकि PFRDA इसमें बदलाव करने जा रहा है. बदलाव के बाद फंड मैनेजमैंट कंपनियों के आकार के हिसाब से उनके लिए फंड मैनेजमेंट फीस का दायरा भी तय कर दिया जाएगा. यह चार स्लैब में होगा.
क्या होगा बदलाव
बंद्योपाध्याय ने कहा कि अभी NPS के तहत कुछ कंपनियां दो लाख करोड़ रुपये तक की परिसंपत्तियों का प्रबंधन कर रही हैं. वहीं सबसे छोटी कंपनी के पास मात्र 300 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों का ही प्रबंधन है. ऐसे में इन सभी के लिए एक जैसा शुल्क नहीं हो सकता. इसलिए PFRDA का प्रस्ताव है कि जिस कंपनी के पास कम मूल्य की परिसंपत्तियां हैं उसे अधिक फंड मैनेजमेंट फीस के दायरे में रखा जाए और जिसके पास अधिक परिसंपत्तियां हैं उसे कम शुल्क की सीमा में रखा जाए. इससे कंपनियों के बीच ज्यादा बाजार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं सुनिश्चित होंगी.
कितनी होंगी स्लैब
बंद्योपाध्याय ने कहा कि ये चार स्लैब 3 पैसे से लेकर 9 पैसे के बीच की होंगी. इसमें 10,000 करोड़ रुपये तक की परिसंपत्ति का प्रबंधन करने वाली कंपनियों के 9 पैसे की सीमा होगी. 10,000 से 50,000 करोड़ रुपये के लिए 6 पैसे, 50,000 करोड़ से 1.50 लाख करोड़ रुपये के लिए 5 पैसे और 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की परिसंपत्ति का प्रबंधन करने वाली कंपनियां अधिकतम 3 पैसे फंड मैनेजमेंट शुल्क ले सकेंगी.
कैसे करें फंड मैनेजर कंपनी का चुनाव
NPS के सब्सक्राइबर के तौर पर पेंशन फंड मैनेजर का चुनाव करना बहुत अहम है. अब जब इनकी संख्या बढ़ने जा रही है तो सावधानी भी अधिक देनी होगी. लुभावने ऑफरों से बचने की सलाह तो पुरानी हो चुकी है, सब्सकाइबर के तौर पर फंड मैनेजर के चुनाव में सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात उन कंपनियों का प्रदर्शन है.
बंद्योपाध्याय ने कहा कि अंशधारकों को किसी फंड मैनेजर के दीर्घकालिक प्रदर्शन को देखना चाहिए. ये भी देखना चाहिए कि अलग-अलग साइकिल के दौरान उनका प्रदर्शन कैसा है. उन्हें किसी फंड मैनेजर की एक-दो या छह महीने के प्रदर्शन को आधार नहीं बनाना चाहिए. यहां तक कि एक या दो साल के उनके रिटर्न को भी आधार नहीं बनाना चाहिए. बल्कि उन कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए जिनका रिटर्न भले सीमित रहा हो लेकिन प्रदर्शन सतत और स्थिर रहा हो.
(www.businesstoday.in के इनपुट पर आधारित)