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Cost of Thali: नॉन वेज थाली महंगी... जानिए खाने-पीने की क्या चीजें हुईं सस्ती!

Feb Thali Price: क्रिसिल की रिपोर्ट नॉन वेज थाली की कीमतों को लेकर जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक इसके दाम में 6 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है, जिसकी मुख्य वजह ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में आई 15 परसेंट की तेजी रही है. 

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Food Inflation in India
Food Inflation in India

फरवरी में घर में बनी शाकाहारी थाली सस्ती हो गई. लेकिन नॉन वेज थाली की कीमतों में बीते महीने बढ़ोतरी दर्ज की गई है. क्रिसिल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक तरफ टमाटर और एलपीजी की कीमतों में गिरावट से वेज थाली पर खर्च कम हुआ तो दूसरी तरफ ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में उछाल ने मांसाहारी थाली को महंगा कर दिया है. 

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 रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में टमाटर के दाम 32 रुपये किलो से घटकर 23 रुपये किलो हो गए, जबकि एलपीजी सिलेंडर की कीमत 903 रुपये से घटकर 803 रुपये हो गई. इसके असर से वेज थाली के दाम फरवरी में 1 फीसदी कम हुए हैं. 

हालांकि, शाकाहारी थाली की लागत में ये गिरावट बाकी खाद्य पदार्थों की महंगाई की वजह से सीमित रही. प्याज, आलू और तेल की बढ़ती कीमतों ने महंगाई पर राहत के असर को कम कर दिया क्योंकि फरवरी में प्याज के दाम 11 फीसदी, आलू के 16 परसेंट, और वनस्पति तेल की कीमत में 18 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. 

वेज थाली थोड़ी सस्ती

क्रिसिल की रिपोर्ट नॉन वेज थाली की कीमतों को लेकर जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक इसके दाम में 6 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है, जिसकी मुख्य वजह ब्रॉयलर चिकन की कीमतों में आई 15 परसेंट की तेजी रही है. 

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ब्रॉयलर चिकन की महंगाई की वजह मक्का और दूसरे चारे की कीमतों में हुई बढ़ोतरी है. वेज थाली के दाम में मामूली गिरावट के बावजूद खाने-पीने के सामान की महंगाई आम जनता की जेब पर असर डाल रही है. यही नहीं, आने वाले महीनों में सप्लाई की स्थिति भी खाने की लागत पर असर डाल सकती है.

ऐसे में सरकार को सप्लाई को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने होगे जिससे महंगाई का असर कम किया जा सके. ऐसा करने में असफल होने पर मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के को सबसे ज्यादा मुश्किल हो सकती है. वैसे सरकार की इस कोशिश को इस साल अनाज उत्पादन में होने वाली संभावित बढ़ोतरी से भी मदद मिल सकती है. 

गेहूं के पैदावार में इजाफा संभव  

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन यानी FAO के अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में इस साल गेहूं उत्पादन बढ़कर 79.6 करोड़ टन पहुंचने की उम्मीद है जो 2024 के मुकाबले करीब एक फीसदी ज्यादा होगा. यूरोपीय संघ के देशों फ्रांस और जर्मनी में गेहूं की पैदावार में इजाफा हो सकता है, क्योंकि इन क्षेत्रों में बुवाई का रकबा बढ़ने की संभावना है.
 
हालांकि, पूर्वी यूरोप में सूखे और पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश की वजह से उत्पादन पर असर पड़ सकता है. अमेरिका में भी गेहूं का रकबा बढ़ने की उम्मीद है लेकिन सर्दियों में सूखे के चलते पैदावार मामूली घट सकती है. 

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इसी तरह 2024-25 में वैश्विक धान उत्पादन 54.3 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच सकता है जिसमें भारत, कंबोडिया और म्यांमार का बड़ा रोल रहेगा. लेकिन एक चिंता की बात ये भी है कि पैदावार के मुकाबले खपत ज्यादा रह सकती है. 

FAO ने वैश्विक अनाज उत्पादन पूर्वानुमान को बढ़ाकर 284.2 करोड़ टन कर दिया है. साथ ही 2024-25 में अनाज की कुल खपत 286.7 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना जताई है. ऐसे में मौके पैदा होने का साथ ही चिंताएं भी बरकरार है और इसके लिए बेहतर रणनीति बनाकर महंगाई से निपटा जा सकता है.

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