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मेरठ की रजिया सुल्ताना को मिलेगा मलाला अवार्ड

मेरठ की 15 साल की लड़की रजिया सुल्ताना ने अपने गांव से 48 बच्चों को बाल मजूदरी से मुक्त करा उनके स्कूल में पढ़ने की व्यवस्था कराई. वह अन्य गांवों में भी यह अभियान चला रही है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने उसे मलाला अवार्ड देने के लिए चुना है.

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मलाला यूसुफजई
मलाला यूसुफजई

मेरठ के एक छोटे से गांव की लड़की ने वो कर दिखाया है जो सरकारें भी नहीं कर पाई थीं. उसने अपने गांव में हो रही बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज उठाई और अपने गांव से बाल मजदूरी के अभिशाप को सदा-सदा के लिए मिटा दिया. इतना ही नहीं, उसने उन बाल मजदूरों को शिक्षा के मंदिर तक भी पहुंचा दिया. अब वह अन्य गांवों में जा-जाकर हो रही बाल मजदूरी के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है. इस बच्ची को अब मलाला अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है.

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यह कारनामा किया है कि 15 साल की छात्रा रजिया सुल्ताना ने. उसने अपने गांव से 48 बच्चों को बाल मजूदरी से मुक्त करा उनके स्कूल में पढ़ने की व्यवस्था भी कराई.

मेरठ के नंगला कुम्भा गांव में रहने वाली रजिया सुल्ताना एक गरीब परिवार से है. जब वह तीसरी कक्षा में थी तो पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल की सिलाई का काम भी करती थी. इस दौरान 'बचपन बचाओ आन्दोलन' संस्था की नजर रजिया पर पड़ी. संस्था ने रजिया को बाल मजदूरी से मुक्ती दिलाई और फिर उसने लगातार अपनी शिक्षा की तरफ ध्यान दिया.

इसके बाद रजिया ने गांव में ऐसे परिवारों को जागरुक करना शुरू कर दिया, जिनके बच्चे स्कूल जाने के बजाय बाल मजदूरी करते थे. शुरू में रजिया को अपनी मंजिल तक पहुंचने में काफी दिक्कत आई, लेकिन उसने हर चुनौती का डटकर मुकाबला किया और लम्बे संघर्ष के बाद उसने अपने पूरे गांव को बाल मजदूरी के मुक्ति दिला दी. रजिया की इस पहल ने उसे अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, जिसके चलते अब उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से मलाला अवॉर्ड देने की घोषणा की गई है.

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रजिया अब अपने गांव में बाल पंचायत की अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्तर पर सेक्रेटरी के पद पर काम कर रही है. जब रजिया को मलाला अवॉर्ड देने की घोषणा की गई तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा तो उसकी आंखों से आंसू छलक गये और उसके परिजन भी अपनी बेटी की इस सफलता पर नाज कर रहे हैं. उन्हें कभी यह उम्मीद ही नहीं थी कि उनकी बेटी अर्न्तराष्ट्रीय स्तर अपने अपने परिवार के साथ-साथ देश का नाम भी रोशन करेगी.

रजिया के साथ पढ़ने वाली उसकी सहेलियां भी अपने मित्र की इस सलफता पर अब महसूस करने लगी हैं कि अब वह भी उसी की तरह बनना चाहती हैं. हमेशा उसके साथ पढ़ने वाली छात्राओं ने उसे संघर्ष और कड़ी मेहनत करते हुए देखा है.

रजिया स्कूल में अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी लगी रही, लेकिन उसने अपने कार्यों को पढ़ाई में आड़े नहीं आने दिया और न ही उसकी स्कूल टीचर को इस बात की जानकारी हुई कि वह सामाजिक कार्यों में भी अपना समय देती है. जब आज उसकी टीचर को इस बात की जानकारी हुई कि रजिया को मलाला अवॉर्ड से नवाजा जा रहा है तो उनकी खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं है और वह अपनी इस होनहार छात्रा पर गर्व महसूस कर रही है.

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रजिया को मलाला अवॉर्ड से नवाजे जाने की सूचना जब 'बचपन बचाओ आंदोलन' संस्था से जुड़े लोगों को हुई तो वह भी रजिया को बधाई देने के लिए उसके गांव पहुंच गए. कभी इस संस्था के लोगों ने इस रजिया को बाल मजदूरी से मुक्त करा शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ने की ओर प्रेरित किया था. इसके बाद आज रजिया सबके सामने एक मिसाल बन गयी है.

मलाला और रजिया सुल्ताना जैसे होनहारों के लिए ही ये पंक्तियां बनी हैं- ‘पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है.'

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