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अगर आप में भी हैं ये 5 आदतें, सैलरी कितनी भी हो... खाक बचेगा पैसा!

इस बीच एक सवाल उठता है कि 'खर्च' और 'फिजूल खर्च' की पहचान कैसे करें? एक आदमी के लिए जो फिजूल खर्च है, वो दूसरे आदमी के लिए जरूरी खर्च है. ऐसे में दोनों को अलग-अलग करने का एक आसान तरीका है...

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फिजूल खर्च पर लगाम लगाने के तरीके
फिजूल खर्च पर लगाम लगाने के तरीके

कमाई तो बहुत है, सैलरी भी अच्छी है... फिर भी पैसे नहीं बचते. अधिकतर नौकरी-पेशा लोगों की यही शिकायतें होती हैं. इसके अलावा एक और बहाना होता है कि पैसे इसलिए नहीं बचा पाते हैं, क्योंकि खर्चे बहुत ज्यादा है. लेकिन ऐसे लोग 'खर्च' और 'फिजूल खर्च' में फर्क नहीं कर पाते हैं. 

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दरअसल, हर किसी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान सबसे पहले और सबसे जरूरी है. लेकिन आज के मॉडर्न युग में आमदनी बढ़ते ही खर्चे बढ़ जाते हैं. लाइफस्टाइल में बदलाव आ जाता है. ऐसे में जब कम आमदनी थी, तब भी जेब खाली थी, और जब आमदनी बढ़ गई तब भी एक रुपया नहीं बचा पाते हैं. 

इस बीच एक बड़ा सवाल उठता है कि 'खर्च' और 'फिजूल खर्च' की पहचान कैसे करें? एक आदमी के लिए जो फिजूल खर्च है, वो दूसरे आदमी के लिए जरूरी खर्च है. ऐसे में दोनों को अलग-अलग करने का एक बेहद आसान तरीका ये है कि हर आदमी को ये मानकर चलना चाहिए, कि वो किसी न किसी तरह से फिजूल खर्च करता है. एक अनुमान के मुताबिक, अधिकतर लोग अपनी आमदनी या सैलरी का 10-20 फीसदी हिस्सा फिजूल खर्ची में उड़ा देते हैं.

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फिजूल खर्च कैसे बचाएं?

उदाहरण के तौर पर 50 हजार रुपये महीने की आदमनी वाला इंसान हर महीने कम से कम 5000 रुपये फिजूल खर्च करता है, जिसे वो रोक सकता है. आप भी विचार कीजिए और महीने भर के उन खर्चों को जोड़िए, जो बेहद जरूरी नहीं है, लेकिन उसपर आप खर्च कर देते हैं. आपका भी आंकड़ा 10 से 20 फीसदी के बीच बैठेगा. हम यहां कुछ उदाहरण दे रहे हैं, जिसे आप फिजूल खर्च मान सकते हैं. हालांकि कुछ लोगों के लिए ये जरूरी खर्च हो सकता है लेकिन अधिकतर लोगों के लिए ये फिजूल खर्ची के दायरे में ही आता है, जिसे वो आसानी से रोक सकते हैं. 

बाहर खाना: बड़े शहरों में बाहर खाने का कल्चर तेजी से आगे बढ़ रहा है. अब तो लोग घर बैठे ऑनलाइन खाना मंगवा लेते हैं. हालांकि कभी-कभी खाना मंगाकर खाना मजबूरी हो सकती है. लेकिन अधिकतर टाइम लोग मेहनत से बचने के लिए खाना बाहर जाकर खा लेते हैं, या फिर ऑनलाइन ऑर्डर कर देते हैं. इस पर लगाम लगा सकते हैं. बाहर जितने पैसे खाने पर खर्च करते हैं, उससे एक चौथाई की लागत पर घर में खाना बनकर तैयार हो जाएगा. 

घूमना: अक्सर लोग देश-विदेश घूमने में मोटी रकम खर्च कर देते हैं. वैसे सालभर में दो बार घूमना आर्थिक बजट में ज्यादा असर नहीं डालता है. लेकिन कुछ लोग हर महीने Fun के नाम पर घूमने निकले जाते हैं. फिर ऐसे लोगों की सबसे बड़ी शिकायत होती है कि पैसे नहीं बचते हैं. आप खुद सोचें कि इस चक्कर में आप हर महीने कितने खर्च करते हैं. 

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बिना जरूरत की चीजें खरीदना: अक्सर लोग ऐसी चीजों को खरीद लेते हैं, जो उनके लिए जरूरी नहीं होती है. फिर बाद में पछताते हैं. खासकर लोग महंगे गैजेट्स खरीद लेते हैं और फिर इस्तेमाल नहीं करते. ऐसे खर्च अधिकतर लोग ऑफर और जेब में क्रेडिट कार्ड होने की वजह से करते हैं. जिसपर लगाम लगाना सबसे जरूरी है. इस खर्च को आप फिजूल खर्ची की कैटेगरी में रख सकते हैं. 

बिना लिस्ट शॉपिंग

शॉपिंग: जब आप बाजार जाते हैं, तो खरीदने होते हैं दो कपड़े, और खरीद डालते हैं चार. क्योंकि उस समय दिमाग कहीं और होता है. इसलिए जब भी शॉपिंग के लिए जाएं तो लिस्ट बनाकर घर से निकलें. ऑफर के चक्कर में न पड़ें. इसके अलावा सबसे महंगी और सबसे सस्ती चीजें खरीदने की आदत बदल डालें. लोग ब्रांड के चक्कर में बहुत ज्यादा पैसे खर्च कर देते हैं. वो इसे अपने स्टे्टस से जोड़कर देखते हैं, लेकिन ये सीधा फिजूल खर्ची है. 

शराब और सिगरेट: ये आदतें सेहत के साथ-साथ जेब के लिए भी हानिकारक है. लेकिन लोग मानते नहीं हैं. कुछ लोगों की पार्टी तो बिना शराब-सिगरेट की पूरी नहीं होती है, जो सरासर फिजूल खर्ची है. लोग हजारों रुपये हर महीने इस मद पर खर्च कर देते हैं. 

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इसके अलावा लोग स्पॉ, सैलून, मूवी के पीछे भी जरूरत से ज्यादा खर्च कर देते हैं. जब सैलून जाते हैं, उन्हें केवल सेविंग बनवाना होता है. लेकिन वहां वो फेशियल, ब्लीचिंग करवा कर आ जाते हैं. साथ ही अक्सर उस तरह के सैलून में जाते हैं तो बेहद महंगे हैं. इन खर्चों को आसानी से बचाया जा सकता है. इसलिए आप खुद एक लिस्ट बनाएं कि क्या जरूरत है और क्या नहीं करने से कोई नुकसान नहीं होगा.
 

 

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