शायद ही किसी ने कल्पना की हो कि मौत के बाद दान किए हुए मानव शरीर की कागज से भी पतली त्वचा किसी को नई जिंदगी दे सकती है, लेकिन अब ऐसा संभव हो गया है स्किन बैंक की बदौलत.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट पर एक नजर डालें तो हमारे देश में किसी दुर्घटनावश या फिर साजिशन हर साल दस लाख से अधिक लोगों के आग से झुलसने के मामले सामने आते हैं. इस तरह के मामलों में दान में दी गई स्किन पीड़ितों की जान बचाने में खासी मददगार साबित हो सकती है. देश में आग, बिजली या फिर रसायनों से झुलसने के मामलों में महिलाओं और बच्चों की संख्या चौंकाने वाली है.
नेशनल बर्न सेंटर की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में हर साल 70 लाख लोगों के आग, बिजली, रसायनों या फिर विकिरणों की वजह से झुलसने के मामले दर्ज होते हैं, जिसमें 80 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे शामिल हैं.
हमारे देश में जितनी तेजी से दुर्घटनावश या फिर आपराधिक षड्यंत्रों के कारण झुलसने के मामले बढ़ रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए देश में बड़े स्तर पर स्किन बैंकों की जरूरत है.
आमतौर पर 50 फीसदी से अधिक झुलसने के मामले में पीड़ित के संक्रमित होने का खतरा अत्यधिक होता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति की स्वयं की त्वचा उपचार के लिए पर्याप्त नहीं होती, इसलिए दान में दी हुई स्किन से घायलों की झुलसी हुई त्वचा के उपचार में मदद मिलेगी. 80 प्रतिशत से अधिक जले हुए मामलों में तो पीड़ितों की जिंदगी तक बचाई जा सकती है.
स्किन बैंक मरणोपरांत दान में मिले मृतकों की त्वचा को सुरक्षित रख उसका उपयोग करता है. स्किन दान करने के लिए न्यूनतम 18 साल की आयु निर्धारित की गई है, जबकि अधिकतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है. मरणोपरांत सौ वर्ष के व्यक्ति की स्किन भी उपयोग में लाई जा सकती है.
स्किन दान करने के लिए दानकर्ता को उचित दिशा-निर्देशों के तहत फॉर्म भरना पड़ता है. दानकर्ता की मृत्यु के बाद छह घंटे के भीतर ही उसकी स्किन दान करना जरूरी होता है. स्किन निकालने की प्रक्रिया में 30 से 45 मिनट का ही समय लगता है. इस प्रक्रिया में एक डॉक्टर, दो नर्सो और एक सहायक शामिल होते हैं.
मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल के कॉस्मेटिक सर्जन सुनील केसवानी के मुताबिक, 'स्किन निकालने के लिए एक शल्य चिकित्सा उपकरण 'डर्मेटोम' का इस्तेमाल किया जाता है. यह उपकरण बैटरी चालित है. स्किन को सिर्फ दोनों पैरों, जांघों और पीठ से ही निकाला जाता है. ग्राफ्टिंग तकनीक की मदद से मरीज के झुलसे हुए स्थान पर स्किन चढ़ाई जाती है.'
मनुष्य की त्वचा की आठ परतें होती हैं, जिसमें से सबसे ऊपरी यानी आठवीं परत को ही निकाला जाता है. स्किन निकालने के बाद इसकी जांच की जाती है. इसे चार से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच ग्लिसरॉल के घोल में रखा जाता है. स्किन बैंक में इसे पांच साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
सुनील केसवानी का कहना है कि एचआईवी संक्रमित, हेपेटाइटिस बी और सी, त्वचा कैंसर, त्वचा रोग, यौन बीमारियों आदि से पीड़ित लोग स्किन दान नहीं कर सकते.
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ रोहित बत्रा का कहना है कि किसी भी उम्र के व्यक्ति की स्किन किसी को भी प्रत्यारोपित की जा सकती है, इसके लिए ब्लड ग्रुप का समान होना जरूरी नहीं होता. पीड़ित को चढ़ाई गई स्किन से उसके घाव भरने में मदद मिलती है, जिससे उसकी जान बन जाती है.
देश में मुंबई, पुणे, कोच्चि, बेंगलुरू और हाल ही में छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्किन बैंक की स्थापना की गई है. इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी स्किन बैंक खोलने की दिशा में काम चल रहा है.
इनपुट: IANS