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सनी देओल के घर की नीलामी का मामला, जानिए कब बैंक लेता है फैसला? अब 'गदर' स्टार के पास क्या है विकल्प?

RBI की गाइडलाइंस के मुताबिक, अगर कोई ग्राहक होम लोन की पहली किस्त नहीं चुकाता है, तो बैंक या वित्तीय संस्थान उसे गंभीरता से नहीं लेता है, लेकिन जब ग्राहक लगातार दो EMI भरने से चूक जाता है, तब बैंक एक्शन मोड मैं आता है, लेकिन नीलामी उसके पास आखिरी विकल्प होता है.

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नीलामी से पहले लोन लेने वाले को कई मौके देता है बैंक
नीलामी से पहले लोन लेने वाले को कई मौके देता है बैंक

एक ओर जहां बॉलीवुड (Bollywood) अभिनेता सनी देओल की फिल्म 'Gadar-2' बॉक्स ऑफिर पर धमाल मचा रही है, तो वहीं दूसरी ओर बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) ने भी अभिनेता का बंगला 'सनी विला' नीलाम करने के लिए विज्ञापन देकर गदर मचा रखा है. बैंक ने सनी देओल पर 56 करोड़ रुपये के लोन का भुगतान करने में नाकाम रहने पर उनका यह घर नीलाम करने के लिए ऐड निकाला था.

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हालांकि, महज 24 घंटे के भीतर ही बैंक ऑफ बड़ौदा ने ई-ऑक्शन का नोटिस वापस भी ले लिया है और इसकी वजह टेक्निकल बताई गई है. भले ही ये नीलामी अब नहीं होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोई बैंक कब किसी व्यक्ति की प्रॉपर्टी को नीलाम करती है?, अगर नीलामी की जाती है, तो फिर व्यक्ति ऐसे मामले में क्या कर सकता है? आइए विस्तार से जानते हैं...

पहले नजर डाल लेते हैं उस मामले की जिसकी वजह से इस तरह के सवाल आम आदमी के मन में उठने लगे हैं. दरअसल, अभिनेता और भाजपा सांसद सनी देओल मुंबई के जुहू वाला बंगला 'Sunny Villa' नीलाम किए जाने के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था. बताया जाता है कि अजय सिंह देओल उर्फ Sunny Deol ने इस बंगले के लिए बैंक से Loan लिया था, जिसका  55 करोड़ 99 लाख 80 हजार 766 रुपए रुपये बकाया है, जिसे उन्होंने नहीं चुकाया है. ऐसे में बैंक उनके बंगले की नीलामी के लिए ई-ऑक्शन नोटिफिकेशन जारी कर 51.43 करोड़ रुपये मिनिमम अमाउंट तय किया था और बंगले की नीलामी 25 सितंबर 2023 को होने की जानकारी दी थी. 

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लंबे प्रोसेस के बाद होती है नीलामी 
अब सवाल ये कि आखिर कोई बैंक आपकी प्रॉपर्टी को आखिर कब नीलाम कर सकता है? तो बता दें ये प्रोसेस बैंक के लिए भी काफी लंबा होता है. दरअसल, बैंक किसी न किसी गारंटी के बदले ही जरूरतमंद को लोन देता है. इसकी गारंटी के रूप में लोन लेने वाला ग्राहक गारंटी के तौर पर बैंक में कोई ना कोई प्रॉपर्टी गिरवी रखता है. ये घर, जमीन या फिर दूसरे एसेट हो सकते हैं. इस संपत्ति को एक तय समय यानी टैन्योर के लिए बैंक अपने पास रख लेता है और लोन रिलीज कर देता है.

इसके बाद तय समय के लिए लोन की ईएमआई बांध दी जाती है, जिसे लोन लेने वाला चुकाता है. यहां बता दें कि खास तौर पर होम लोन (Home Loan) को सिक्‍योर लोन की कैटेगरी में रखा जाता है, इसलिए इसके बदले ग्राहक को गारंटी के तौर पर बैंक के पास किसी संपत्ति को गिरवी रखना होता है.

नीलामी Bank के पास मौजूद आखिरी विकल्प
अब अगर लोन लेने वाला व्यक्ति इस कर्ज को चुकाने में नाकाम रहता है, तो फिर उसकी गिरवी रखी गई संपत्ति को बैंक जब्त कर लेता है और फिर उसे नीलाम करने की तैयारी शुरू कर दी जाती है. लेकिन नीलामी झट से नहीं हो जाती है, इसके लिए कई कानूनी प्रक्रियाएं होती है, जिनमें समय भी काफी लगता है. दरअसल, Bank के पास किसी भी गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी या संपत्ति को नीलाम करना आखिरी विकल्प होता है. जबकि उसकी ये उम्मीद बिल्कुल खत्म हो जाती है, कि कर्ज लेने वाला ये लोन नहीं चुका पाएगा. लेकिन, ये फैसला लेने से पहले बैंक की ओर से ग्राहक को एक नहीं बल्कि कई मौके भी दिए जाते हैं. 

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पहले रिमाइंडर और फिर कानूनी नोटिस  
बैंकों की लोन प्रक्रिया के दौरान इस तरह की नीलामी के मामलों के लिए कई नियम-कानून बनाए गए हैं. RBI की गाइडलाइंस के मुताबिक, अगर कोई ग्राहक होम लोन की पहली किस्त (Home Loan EMI) नहीं चुकाता है, तो बैंक या वित्तीय संस्थान उसे गंभीरता से नहीं लेता है. बैंक को लगता है कि किसी कारणवश एक EMI में देरी हो रही है. लेकिन जब ग्राहक लगातार दो EMI भरने से चूक जाता है, तो फिर बैंक सबसे पहले ग्राहक को इस संबंध में रिमाइंडर भेजता है. लेकिन, रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद ग्राहक अगर तीसरी EMI की किस्त भुगतान करने में असफल रहता है, तो बैंक फिर लोन चुकाने के लिए उसे एक कानूनी नोटिस भेजता है.

ग्राहक को बचने के लिए मिलते हैं कई मौके
इस तरह से देखा जाए तो बैंक का एक्शन एक-दो नहीं बल्कि लगातार तीन EMI नहीं चुकाने के बाद शुरू होता है. लेकिन, नीलामी करने की नौबत अभी भी दूर की बात होती है. दरअसल, अगर कानूनी नोटिस के बाद भी लोन की ईएमआई नहीं चुकाई जाती है, तो फिर ऐसे ग्राहक को बैंक डिफॉल्टर घोषित कर देता है और उसे दिए गए लोन अमाउंट का बचा हुआ हिस्सा एनपीए (NPA) यानी फंसे हुए कर्ज की श्रेणी में डाल देता है. मतलब इस सारे प्रोसेस में देखें तो बैंक तीन महीने की ईएमआई नहीं चुकाने वाले ग्राहक को करीब दो महीने का और वक्त देता है. अगर ग्राहक इसमें भी चूक जाते हैं, तो बैंक ग्राहक संपत्ति के अनुमानित मूल्य के साथ नीलामी नोटिस भेजता है. अगर ग्राहक नीलामी की तारीख से पहले यानी नीलामी नोटिस मिलने के एक महीने बाद भी किश्त नहीं भरता है, तो बैंक नीलामी औपचारिकताओं के साथ आगे की प्रक्रिया को शुरू कर देता है. 

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'लॉस एसेट' की बैंक करता है नीलामी
अब यहां ये जान लेना जरूरी है कि क्या किसी गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी को एनपीए घोषित करने के साथ ही उनकी नीलामी शुरू कर दी जाती है, तो बता दें कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. NPA घोषित की गई प्रॉपर्टी को तीन तरह की कैटेगरी में डाला जाता है, इनमें सबस्टैंडर्ड असेट्स, डाउटफुल असेट्स और लॉस असेट्स शामिल हैं. ईएमआई नहीं चुकाने की स्थिति में सबसे पहले लोन अकाउंट 1 साल तक सबस्टैंडर्ड असेट्स अकाउंट की कैटेगरी में रखा जाता है. इसके बाद भी कोई आउटपुट ना आने पर इसे बैंक डाउटफुल असेट्स में डाल देता है, वहीं जब लोन रिकवरी की उम्मीद बिल्कुल खत्म हो जाती है और बैंक को लगने लगता है कि ग्राहक इसे नहीं चुका पाएगा, तो फिर गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी को 'लॉस असेट्स' मान लिया जाता है. बस, लॉस असेट बनने के बाद ही प्रॉपर्टी को नीलाम किया जाता है. नीलामी के लिए बैंक पब्लिक नोटिस जारी करती है और ऑक्शन की डेट सार्वजनिक करती है. 

लोन लेने वाला दे सकता है बैंक को चुनौती
बैंक की ओर से की जाने वाली नीलामी की प्रक्रिया इन बताए गए चरणों के बाद पूरी होती है. यानी लोन लेने वाले ग्राहक को अपनी प्रॉपर्टी नीलाम होने से बचाने के लिए लंबा समय मिलता है. इस अवधि में अगर वह किसी भी समय बैंक से संपर्क कर बकाया राशि का भुगतान कर मामले को सुलझा सकता है. ग्राहक बैंक को अपनी परेशानी बता सकता है, साथ ही दस्तावेज सौंप सकता है. यही नहीं लोन का पुनर्गठन से कुछ महीनों तक EMI टालने या ईएमआई की राशि कम करने में मदद मिल सकती है. हालांकि ऐसे मामले में होम लोन की टेन्योर जरूर आगे बढ़ जाता है.

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गौरतलब है कि किसी भी तरह की संपत्ति की बिक्री से पहले बैंक या उस वित्तीय संस्थान जहां से ग्राहक ने लोन लिया है, उसे एसेट का सही प्राइस बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस और नीलामी की तारीख-समय व शर्तों का उल्लेख करना पड़ता है. जिस व्यक्ति की प्रॉपर्टी नीलाम हो रही है और उसे ऐसा लगता है कि मेरी गिरवी प्रॉपर्टी का दाम कम रखा गया है तो वह इस नीलामी की प्रक्रिया को चुनौती दे सकता है. ये ग्राहक के लिए इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि नीलामी के दौरान प्रॉपर्टी अगर लोन अमाउंट से महंगी बिकती है, तो फिर अतिरिक्त रकम पर लोन लेने वाले का अधिकार होता है. 

 

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