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हिमाचल प्रदेश: सरकार का दावा OPS के लिए फंड मौजूद, लेकिन आंकड़े बयां कर रहे ये कहानी

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली बड़ा मुद्दा रहा है. कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी कर्मचारियों से वादा किया था कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनती है तो वो पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करेगी.

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हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू.
हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू.

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखबिंदर सिंह सुक्खू ने राज्य में पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) को फिर से लागू करने की घोषणा कर दी है. राज्य सरकार ने कहा है कि नई पेंशन स्कीम (NPS) के 1.36 लाख सब्सक्राइबर्स को पुरानी पेंशन स्कीम में तब्दील किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने अपने हालिया धर्मशाला दौरे के दौरान दावा किया कि ओपीएस को बहाल करने के लिए पहले ही बजट में प्रावधान किए जा चुके हैं, जिसे तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने एक अप्रैल 2004 को बंद कर दिया था.

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यह पूछे जाने पर कि सरकार ओपीएस को कैसे फंड करेगी? इसपर मुख्यमंत्री सुखबिंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि वित्तीय अनुशासन और खर्चों में कटौती के माध्यम से OPS के लिए पैसे जुटाए जाएंगे. दिलचस्प बात यह है कि एक छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों का अनुपात कई राज्यों की तुलना में अधिक है.

सरकार का खर्च

सरकार का दावा है कि राज्य के खजाने में पेंशन और अन्य प्रतिबद्ध खर्च के लिए पर्याप्त धन है. लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल विपरीत बताई जा रही है. क्योंकि राज्य की राजस्व प्राप्तियों का 77 प्रतिशत पहले से ही प्रतिबद्ध खर्च (42 प्रतिशत वेतन के रूप में) के रूप में जाता है. 21 प्रतिशत पेंशन के रूप में और 14 प्रतिशत ब्याज भुगतान के रूप में खर्च होता है. 

हिमाचल में 1.30 लाख पेंशनर्स के अलावा 1.60 लाख कार्यरत सरकारी कर्मचारी हैं. राज्य सरकार की योजना 1.36 लाख NPS सब्सक्राइबर्स को OPS में बदलने की है. चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार, रिक्तियों को भरने के बाद आने वाले वर्षों में और 60,000 सब्सक्राइबर्स जोड़े जाएंगे.

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पेंशन पर खर्च बढ़ता जा रहा है

सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन पर खर्च बढ़ रहा है क्योंकि सरकार पेंशन के अलावा उन्हें महंगाई भत्ता भी देती है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले 18 सालों में पेंशन पर खर्च करीब 12 फीसदी बढ़ा है. राज्य सरकार ने 2004-05 के दौरान पेंशन पर 591 करोड़ रुपये खर्च किए जो 2021-22 में बढ़कर 7082 करोड़ रुपये हो गया. साल 2021-22 के दौरान राजस्व का आंकड़ा 9,282 करोड़ रुपये रहा है. वहीं, वर्ष 2004-5 में राजस्व प्राप्ति का आंकड़ा 1252 करोड़ रुपये था.

'दिवालियापन की रेसिपी'

जाने-माने अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ओपीएस को बहाल करने के फैसले को एक बेतुका कदम और वित्तीय दिवालियापन की रेसिपी करार दिया था. भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने भी ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने के फैसले को आर्थिक रूप से 'बर्बाद' करार दिया है.

केंद्र सरकार पर निर्भर हिमाचल

हिमाचल प्रदेश एक विशेष श्रेणी का राज्य होने के कारण काफी हद तक केंद्र सरकार के वित्तीय मदद पर निर्भर है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि, महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह और 300 यूनिट मुफ्त जैसी सुविधाएं, जिनका चुनाव के दौरान वादा किया गया था, सभी सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालेंगी. राज्य के पिछले बजट कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में राजस्व सृजन के मामले में हमेशा अपने लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहा है.

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कल्याणकारी योजनाओं के लिए बजट

2022-23 के बजट में कहा गया है कि प्रत्येक 100 रुपये के खर्च में से 26 रुपये वेतन पर, 15 रुपये पेंशन पर, 10 रुपये ब्याज भुगतान पर और 11 रुपये ऋण अदायगी पर खर्च किए गए. कल्याणकारी योजनाओं के लिए मात्र 29 प्रतिशत बजट उपलब्ध है. सवाल यह है कि जब राज्य के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही प्रतिबद्ध व्यय पर खर्च किया जा रहा है, तो ओपीएस की बहाली और महिलाओं को 1500 रुपये के भुगतान के बाद शेष 29 प्रतिशत भी वास्तविक गरीबों के लिए क्या उपलब्ध होगा?

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