भारत में सड़कों का जाल बढ़ता जा रहा है और इसके साथ ही टोल प्लाजा से होने वाली कमाई भी आसमान छू रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते 5 साल में देश के टॉप-10 टोल प्लाजा से 13,988 करोड़ रुपए मिले हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा कमाई वाला टोल प्लाजा गुजरात के एक छोटे से गांव भरथाना के पास मौजूद है. ये टोल प्लाजा दिल्ली और मुंबई को जोड़ने वाले सबसे व्यस्त हाइवे एनएच-48 के वडोदरा-भरुच हिस्से पर है. पिछले 5 साल में इस टोल प्लाजा ने हर साल औसतन 400 करोड़ रुपये की कमाई की है, जिससे यहां पर कुल 2,043.81 करोड़ रुपए का टोल कलेक्शन हुआ है. इसमें से 2023-24 में सबसे ज्यादा 472.65 करोड़ रुपए का टोल संग्रह हुआ है.
टोल कलेक्शन में NH-48 सबसे आगे!
इसके अलावा एनएच-48 पर ही राजस्थान का शाहजहांपुर टोल प्लाजा भी 378 करोड़ रुपये सालाना की कमाई के साथ दूसरे नंबर पर है. ये हाइवे उत्तर भारत के सूखे इलाकों से लेकर पश्चिमी तट के बंदरगाहों तक माल ढोने वाले ट्रकों से भरा रहता है. इसीलिए इन टोल प्लाजाओं की कमाई इतनी ज्यादा है. टोल कलेक्शन के मामले में GT रोड, दिल्ली-मुंबई हाईवे और पूर्वी तट राजमार्ग सबसे आगे हैं. तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल के जलाधुलागोरी शुल्क प्लाजा का स्थान है जिसने 5 साल में 1,538.91 करोड़ रुपये एकत्र किए हैं. ये NH-16 के धनकुनी-खड़गपुर सेक्शन पर स्थित है. चौथे स्थान पर उत्तर प्रदेश में NH-19 के इटावा-चकेरी (कानपुर) खंड पर स्थित बारजोर टोल प्लाजा है जिसने 5 साल में 1,480.75 करोड़ रुपये कमाए हैं. पांचवें नंबर पर NH-44 का पानीपत-जालंधर खंड पर स्थित घरौंदा टोल प्लाजा है जिसने 5 साल में 1,314.37 करोड़ रुपये का टोल संग्रह दर्ज किया है.
एक तिहाई हाईवेज पर टोल कलेक्शन!
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के 1.5 लाख किलोमीटर लंबे नेशनल हाइवे नेटवर्क में से करीब 45,000 किलोमीटर पर टोल वसूला जा रहा है. देशभर में 1063 टोल प्लाजा हैं जिनमें से 14 टोल प्लाजा हर साल 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर रहे हैं. पिछले 5 साल में नए हाइवे और एक्सप्रेसवे बनने के साथ ही फास्टैग से कलेक्शन किए जाने का असर भी नजर आ रहा है. फास्टैग की वजह से टोल चोरी कम हुई है और कमाई में बढ़ोतरी हुई है जो आंकड़े साफ साफ बयान कर रहे हैं. 2019-20 में देश में जहां कुल 27,504 करोड़ रुपये का टोल कलेक्शन हुआ था वहीं 2023-24 में ये दोगुना होकर 55,882 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. MoRTH के डेटा के मुताबिक 5 साल में कुल टोल कलेक्शन 1.9 लाख करोड़ रुपये रहा है.
टोल से ज्यादा देखभाल पर खर्च
5 साल में टोल कलेक्शन से मिले 1.9 लाख करोड़ रुपये भले ही एक भारी भरकम रकम नजर आती है लेकिन सरकार का दावा है कि ये रकम हाइवे बनाने और उनकी देखभाल पर खर्च होने वाले सालाना बजट के महज 20% के बराबर है. सरकार केवल ढाई लेन या इससे बड़े हाइवेज पर ही टोल वसूलती है और अब ज्यादा से ज्यादा हाइवेज को टोल के दायरे में लाने की कोशिश हो रही है. टॉप-10 के बाकी 5 टोल प्लाजा में गुजरात के NH-48 के भरूच-सूरत खंड पर चोरयासी टोल प्लाजा, एनएच-48, राजस्थान के जयपुर-किशनगढ़ खंड पर ठिकरिया/जयपुर प्लाजा, तमिलनाडु में NH-44 पर L&T कृष्णागिरी थोपपुर, उत्तर प्रदेश के NH-25 के कानपुर-अयोध्या खंड पर नवाबगंज और बिहार में NH-2 के वाराणसी-औरंगाबाद खंड पर सासाराम टोल प्लाजा शामिल हैं.
टोल कमाई में सबसे आगे ये राज्य!
राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 97 टोल प्लाजा हैं जिन्होंने 5 साल में सबसे ज्यादा 22,914 करोड़ रुपये की कमाई की है. वहीं, राजस्थान में सबसे ज्यादा 156 टोल प्लाजा हैं और वहां से 20,308 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. जिन हाइवेज पर बंदरगाहों और औद्योगिक इलाकों का कनेक्शन है वहां टोल की कमाई ज्यादा होती है. ऐसे टोल प्लाजा पर बड़े ट्रक और कमर्शियल गाड़ियां ज्यादा आती हैं जिनसे टोल की रकम भी ज्यादा मिलती है. इसीलिए निजी कंपनियों के लिए ये प्रोजेक्ट फायदेमंद रहते हैं. हालांकि, टोल की बढ़ती कमाई के बावजूद आम आदमी के लिए ये एक अतिरिक्त बोझ बन गया है क्योंकि हाइवे पर सफर करने का खर्च लगातारा बढ़ रहा है. सरकार का कहना है कि टोल से होने वाली कमाई सड़कों को बेहतर बनाने में काम आती है लेकिन लोगों को लगता है कि उनकी जेब पर बोझ बढ़ता जा रहा है. अगर टोल प्लाजा की संख्या और बढ़ी तो ये जेब पर ज्यादा भारी हो सकता है. ऐसे में सरकार को कमाई और लोगों की सुविधा के बीच संतुलन बनाने पर काम करना ही होगा.