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कोरोना

वायरस ऊर्जा के स्रोत, इनसे बनी हैं बैटरियां, MIT प्रोफेसर का दावा

वायरस ऊर्जा के स्रोत, इनसे बनी हैं बैटरियां, MIT प्रोफेसर का दावा
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साल 2009 की बात है. यानी 11 साल पहले एक बायोइंजीनियरिंग की प्रोफेसर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के पास पहुंची. ओबामा को राष्ट्रपति बने हुए कुछ ही महीने हुए थे. ये प्रोफेसर उनके पास गई थी एक ऐसा प्रेंजेटेशन देने जो बेहद अलग था. सबसे अनोखा. किसी ने उस समय ये सोचा भी नहीं होगा कि वायरस से बैटरी बनाई जा सकती है. जबकि, उस प्रोफेसर की थ्योरी को संभवतः सफलतापूर्वक शुरू किया जा सकता है. (फोटोः MIT)
वायरस ऊर्जा के स्रोत, इनसे बनी हैं बैटरियां, MIT प्रोफेसर का दावा
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उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा 2 बिलियन डॉलर की मदद देने वाले थे लिथियम-ऑयन बैटरियों के उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए. तभी उनके सामने मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी MIT की बायोइंजीनियरिंक की प्रोफेसर एंजेला बेल्शर प्रेजेंटेशन हुआ. ये कोई खास प्रेजेंटेशन नहीं था. यह भविष्य को बदलने का आइडिया था. (फोटोः MIT)
वायरस ऊर्जा के स्रोत, इनसे बनी हैं बैटरियां, MIT प्रोफेसर का दावा
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आज जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस कोविड-19 से संघर्ष कर रही है. तब ऐसे में प्रोफेसर एंजेला बेल्शर की थ्योरी में एक उम्मीद दिखाई देती है. करीब 11 साल बाद प्रो. एजेंला ने ऐसे वायरस बनाए जो दुनिया में मौजूद 150 वस्तुओं के साथ अलग-अलग मिलकर बैटरी बना सकते हैं. या ऊर्जा पैदा कर सकते हैं. (फोटोः MIT)
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प्रो. एंजेला बेल्शर वायरस से चलने वाली कार बनाना चाहती थी. हालांकि, ये संभव नहीं हुआ. लेकिन उनकी बैटरी वाला आइडिया सफल रहा है. प्रो. एंजेला बेल्शर ने कहा कि अगर नैनोइंजीनियरिंग के जरिए वायरस से बैटरी बनाई जाए तो यह पूरी तरह से संभव है. हम ऊर्जा को बेहद छोटी जगह में समाहित कर सकते हैं. उसे ज्यादा दिन चला सकते हैं. (फोटोः AFP)
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जॉन हॉपकिन्स एप्लाइड फीजिक्स लेबोरेटरी के सीनियर रिसर्चर कोंस्तातिनोस गेरासुपॉलोस ने कहा कि वायरस के साथ नैनोइंजीनियरिंग करने की जरूरत नहीं पड़ती. वे अपने आप में ही नैनो पार्टिकल्स हैं. नैनोइंजीनियरिंग केमिकल्स के लिए जरूरी है. बायोलॉजिकल मैटेरियल जैसे वायरस अगर अपनी रासायनिक प्रक्रिया से ऊर्जा पैदा करता है, तो उससे बैटरी बनाने में कोई हर्ज नहीं है. (फोटोः AFP)
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प्रो. एंजेला बेल्शर ने जिस वायरस के जरिए बैटरी बनाई है. उसका नाम है एम13 बैक्टीरियोफेज. यह सिगार के आकार का दिखता है. यह ऐसा वायरस है जो बाद में बैक्टीरिया में बदल जाता है. यह वायरस आसानी से नैनोइंजीनियरिंग के जरिए काम लाया जा सकता है. (फोटोः AFP)
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प्रो. बेल्शर ने कहा है कि इस वायरस का जीनोम स्ट्रक्चर इतना आसान है कि आप इसे अपनी जरूरत के मुताबिक बदल सकते हैं. अगर इसके डीएनए में थोड़ा बदलाव कर दें तो किसी खास तरह की वस्तु को खत्म कर सकता है. यानी नए वायरस पैदा कर सकता है. इससे काफी ऊर्जा पैदा होती है. (फोटोः गेटी)
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अगर इसी प्रक्रिया को तेजी से करा जाए तो काफी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा पैदा होगी. जिसे हम बैटरी में स्टोर कर सकते हैं. इसके लिए प्रो. बेल्शर ने जेनेटिकली मॉडिफाइड एम13 बैक्टीरियोफेज के बाहरी प्रोटीन को इस तरह का बना दिया कि उससे कोबाल्ट ऑक्साइड के कण आकर्षित होने लगे. (फोटोः विकीपीडिया)
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बैटरी के जिस हिस्से में कोबाल्ट ऑक्साइड ज्यादा हो उसे इलेक्ट्रोड की तरह उपयोग कर सकते हैं. यानी जिस हिस्से में कोबाल्ट ऑक्साइड है वह बैटरी का निगेटिव प्वाइंट और जिधर नहीं है वह पॉजिटिव. (फोटोः गेटी)
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प्रो. एंजेला बेल्शर की यह तकनीक जब बराक ओबामा ने देखी थी, वो दंग रह गए थे. उसके बाद से अब तक प्रो. बेल्शर ने वायरस से ऐसी बैटरियां बनाई हैं जो हवा से चलती हैं. यानी बैटरी में जब हवा लगती है तो उसमें मौजूद वायरस सक्रिय हो जाते हैं. वो बैटरी के अंदर मौजूद दूसरे तत्व को खाकर ऊर्जा पैदा करते हैं.
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प्रो. एंजेला बेल्शर ने कहा कि शुरुआत में लोगों ने मुझे बेवकूफ कहा. लेकिन अब मेरी वायरस से बैटरी बनाने वाली एसेंबली को कंपनियां फंड कर रही हैं. इसमें से एक है कैम्ब्रियोस टेक्नोलॉजीस जो वायरस से टच स्क्रीन बनवाती है. दूसरी कंपनी है सिलुरिया टेक्नोलॉजीस जो वायरस से मीथेल को प्रोसेस करके एथीलीन बनाता है. इस गैस का उपयोग हर जगह होता है. (फोटोः रॉयटर्स)
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